क्या है नागा साधू की मूल अवधारणा - मोह-माया का त्याग या गांजा पीने और नंग-धडंग रहने की छूट?


जब आप कुंभ मेले पर लिखा कुछ भी पढ़ते हैं, तो सबसे पहले संभवतः उन दृश्यों का ख़्याल आपके मन में आता होगा जिन्हें समाचारों में ज़्यादातर दिखाया जाता है: गंगा की ओर दौड़ लगाते हुए हज़ारों नंगे पुरुष। अधिकतर लोगों को इस तथ्य की जानकारी है कि वो केवल पवित्र स्नान के लिए नंगे नहीं हुए हैं बल्कि निःवस्त्र रहना ही उनका वस्त्र है। उन्हें नागा साधू कहा जाता है और वो इतने रोचक तो हैं हीं कि मैं उन पर और उनके दर्शन पर एक लेख लिखूं।
नागा को सरल अर्थों में नंगा कह सकते हैं, तो वो सब नंगे साधू हैं। आप ये भी कह सकते हैं कि वो विरक्ति के चरम तक पहुंच चुके साधू हैं। एक साधू का सिद्धांत बेहद स्पष्ट है: वो मोह-माया से दूर रहते हैं। उन्होंने अपने परिवारों से हर प्रकार का संबंध तोड़ लिया है ताकि वो भावनात्मक बंधन से मुक्त रहें, वो हमेशा घूमते रहते हैं ताकि वो किसी भौगोलिक परिवेश से जुड़ाव न महसूस करने लगें और उनके पास धन-संपदा जैसी चीज़ें नहीं होती हैं। वो कुछ जमा करके या बचक करके नहीं रखते, उतना ही रखते हैं जितना हाथों में आता है और जितने से उस वक़्त का गुज़ारा हो जाएगा।
एक नागा साधू दुनियावी चीज़ों से एक क़दम और आगे बढ़ता है और वस्त्रों से भी अपना जुड़ाव समाप्त कर लेता है। अधिक से अधिक विरक्ति की प्रक्रिया में यह एक तार्किक अगला क़दम माना जाता है। जब आपके साथ आपके शरीर पर वस्त्रों के अलावा और कोई जुड़ाव नहीं रह गया तो वस्त्रों का परित्याग ही विरक्ति की दिशा में आपका अगला क़दम होगा। अगर आपके पास वस्त्र हैं, आपको उन्हें धोना होगा, तो ऐसे में आपके पास कपड़ों का एक दूसरा जोड़ा भी होना चाहिए। अगर आपके पास दो जोड़े पतलून हैं, तो एक आप पहनेंगे और दूसरे को रखने के लिए या तो एक थैला रखेंगे या कोई गठरीनुमा कपड़ा। अगर आपके पास एक थैला है तो आपको इस बात का ध्यान रखना होगा कि सोते हुए आप इसे कहां रखना है और यह ध्यान भी रखना होगा कि आप इसे कहीं भूल न जाएं। अगर कोई इसे चुरा लेता है, तो आप इसे एक तथ्य के रूप में स्वीकार नहीं कर पाएंगे, आपको दुख होगा: अंततः आप मोह-माया के चक्कर में आ ही गए। तो नागा साधू ने ऐसी किसी भी चीज़ों को रखने से ही इन्कार कर दिया।
नागा साधुओं को क़ायदे से ईश्वर के प्रति आकंठ प्रेम और अध्यात्म की गहराई में कुछ इस तरह रहना चाहिए कि उन्हें इस बात से फ़र्क़ ही न पड़े कि वो कैसे दिखते हैं या मौसम में धूप की रूखी तपिश है या ठंड की गला देने वाली कंपकपाहट। न ही उन्हें अपने शरीर से इतना जुड़ाव है कि वे उसे ताप या ठंड से बचाएं।
नागा साधू की मूल अवधारणा ये है और शायद प्राचीन समय में नागा साधू ऐसे ही होते थे। उनके पास कुछ भी नहीं हुआ करता था, कपड़े भी नहीं। आज आप देखेंगे कि उनके पास केवल वस्त्र नहीं हैं, उसके अलावा सबकुछ है। उनमें से कइयों के पास पैसे हैं, सोना है, ज़ेवर हैं, गाड़ी तक है, वो असल में विलासी साधू हैं! साधारण वस्त्रों वाले साधू ने कुंभ मेले में अपने अस्थायी पंडालों के निर्माण और उनकी सजावट में लाखों रुपये खर्च किए हैं! ठीक उसी तरह इधर-उधर घूमने वाले नागा साधू घूमते तो नंग-धडंग होकर हैं, लेकिन उनकी उंगली पर बेशकीमती अंगूठियां होंगी और अपना यौनांग दिखाने के लिए वो आपसे पैसे मांगेंगे। नागा साधुओं को मालूम है फ़ोटोग्राफ़र को कैसे पोज़ देना है, उन्हें यह भी मालूम है कि पश्चिम से इस मेले को देखने आईं युवा महिलाओं को कैसे अपनी नंगई दिखानी है, चूंकि वो जानते हैं उनकी तस्वीरें अंतरराष्ट्रीय मीडिया में छपेंगी, दिखायी जाएंगी। वो नशा करते रहते है, इसलिए सर्दी का उनपर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। क्या इसे विरक्ति कहेंगे?
सुनने में आया है कि इस बार के कुंभ मेले में महिला नागा साधुओं की भी एक जमात है, उनका शिविर अलग है, लोगों की पहुंच से दूर। अगर यह सत्य है, तो वे लोगों के बीच क्यूं नहीं आतीं जैसे पुरुष नागा कर रहे हैं? खै़र, क्या यह अजीबोगरीब बात नहीं है कि अगर कोई सामान्य आदमी सार्वजनिक रूप से से नंगा होकर घूमे, तो उसे अश्लील और आपराधिक माना जाएगा जबकि यही काम एक धार्मिक व्यक्ति करे, तो कोई समस्या नहीं! अगर आप ऐसा करेंगे तो यक़ीन मानिए आपको हिरासत में ले लिया जाएगा और ज़ुर्माना भी भरना पड़ेगा। अगर वो करते हैं, तो लोग उनकी तस्वीरें लेते हैं, तस्वीरें व्यापक पैमाने पर दुनिया भर में छपती हैं और लोग बाग़-बाग़ हो जाते हैं, न कि आहत होते हैं।
अजीब दुनिया नहीं है ये?
ग़ैर-हिन्दुओं के पास ऊंची हिन्दु पदवियां - उस धर्म में जो अपनाने से नहीं जन्म से मिलता है
पिछले कुछ समय से मैं कुंभ मेले के ऊपर लिख रहा था, स्पष्ट है कि इस दौरान मैंने हिन्दुओं पर, भारतीयों पर, यहां के तीर्थस्थानों पर और शायद बाहरी देशों में मौजूद तीर्थस्थानों पर भी बहुत लिखा। हालांकि इस दौरान मैंने उन गैर-भारतीय साधुओं और गुरुओं के बारे में नहीं लिखा जो ज़ाहिर है, कुंभ-मेले में तीर्थयात्री या पर्यटक बनकर नहीं आए हैं, बल्कि नुमाइश के इस खेल का हिस्सा हैं।
मैंने पहले भी इसकी व्याख्या की थी कि हिन्दुत्व धर्म-परिवर्तन करके हिन्दु बनने की इजाज़त नहीं देता। आप इस्लाम अपना सकते हैं, ईसाई बन सकते हैं, लेकिन हिन्दुत्व धारण करने का कोई उपाय या विकल्प नहीं है। आप केवल जन्म से ही हिन्दु हो सकते हैं। यही वो कारण है कि बनारस के विश्वनाथ मंदिर, उड़ीसा में पूरी के जगन्नाथ मंदिर और दक्षिण भारत के अधिकतर हिंदु मंदिरों में आज भी गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है। और यह संदेश मंदिर के बाहर लगे साइनबोर्ड पर साफ़-साफ़ लिखा होता है जिसके कारण कोई भी विदेशी मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकता। मैंने एक बार इस तरह के धार्मिक नस्लवाद की व्याख्या की थी, लेकिन यह भी एक प्रकार से धर्म-परिवर्तन करके हिन्दु बनने की अवधारणा को खारिज करता है।
हास्यास्पद बात तो यह है कि हिन्दुत्व के व्यापारी यानी धार्मिक नेताओं और गुरूओं ने नफ़ा-नुक़्सान के चक्कर में अपने धर्म की राह ख़ुद ही छोड़ दी है। अख़बारों में रोज़ इलाहाबाद के कुंभ मेले में अपनी छटा बिखेर रहे अमेरिका, रूस, स्वीडन और अन्य देशों के साधुओं के क़िस्से छप रहे हैं। वो किसी भारतीय गुरू के भक्त नहीं हैं, न कोई सामान्य साधु हैं, वो ख़ुद ही गुरू हैं जिनके बड़े-बड़े पंडाल लगे हैं और वो अपने आस-पास मौजूद भारतीय गुरुओं द्वारा पूरी तरह स्वीकार्य और मान्य हैं, क्योंकि उन्हें उस पद तक लाने में हिन्दुत्व के एक बहुत पुराने धार्मिक संगठन का योगदान है, जिसके पास एक व्यक्ति को महामंडलेश्वर (अनुयायियों के एक समूह का प्रधान) की उपाधि देने का अधिकार है। और उस संगठन ने ऐसी पदवियां विदेशियों को भी दी! हालांकि अब सबको मालूम है कि ऐसी उपाधियां ख़रीदी जा सकती हैं, बस आपके पास पर्याप्त पैसे होने चाहिए।
हिन्दु धर्म तो इस बात तक की अनुमति नहीं देता कि कोई विदेशी मंदिर में प्रवेश करे, तो फिर यह कैसे मुमकिन है कि इसी धर्म का एक प्राचीन संगठन उन्हीं विदेशियों को अपने साथ जोड़ता है और यहां तक कि उन्हें ऊंचे पदों पर बैठाता है? अब वो खुद गुरू हैं और उनके अनेक अनुयायी हैं, कुंभ मेले में उनके तंबू गड़े हैं, बड़े-बड़े पंडाल सजे हैं, उनकी पूजा दुनिया के हर हिस्से में की जाती है- ज़ाहिर है तकनीकी रूप से ग़ैर-हिन्दु गुरुओं के चरणों में आस्थावान भारतीय हिन्दु भी बिछे हैं जो शायद अपने ही धर्म ग्रंथों से अनभिज्ञ हैं।
बात और बदतर तब हो जाती है जब आप इन सबको एकसाथ मिलकर इस त्योहार में अपनी दुकानें चलाते हुए देखते हैं। पश्चिमी गुरुओं और साधुओं की ठाठ भारतीयों से रत्ती भर भी कम नहीं है, वो अपनी रईसी की नुमाइश में और महिला अनुयायियों का आनंद लेने में भारतीयों की तरह ही कोई कसर नहीं छोड़ रहे। हालांकि इन उपाधियों पर विराजमान संन्यासियों के लिए क़ायदे से एक महिला से बात तक करना उचित नहीं है! एक पश्चिमी गुरू एक चुटकी राख 1100 रुपये में बेचने के लिए विख्यात है - लगभग 20 अमेरिकन डॉलर! इस कुंभ के मेले में वो ख़ूब पैसा बना रहे हैं, जबकि इस दौरान क़ायदे की बात करें तो उन्हें भौतिकवाद से खुद को अलग रखना चाहिए था।
यही कारण है कि मैं धर्म को विशुद्ध व्यवसाय मानता हूं। सब धर्म को अपनी सुविधा के हिसाब से संशोधित करते हैं, अपने हिसाब से उसका मतलब निकालते हैं, अपनी ख़ुद की परंपरा का निर्माण कर लेते हैं और फिर धर्म और भगवान को बेचने वाली दुकान खोलकर बैठ जाते हैं।
मुझे मालूम है कि वो विदेशी जो खुद को हिन्दु बताते हैं, मेरी बातों से सहमत नहीं होंगे, बल्कि उनमें से कोई भी गुरू मेरी बातों से सहमत नहीं होगा जिनकी दुकान धर्म से चलती है। आख़िरी बार जब मैंने इस विषय पर लिखा था तो उनलोगों द्वारा बहुत सी रोषपूर्ण प्रतिक्रियाएं मिली जिन्हें लगा कि मैं सच को बाहर ले आया हूं। मैं यह भी जानता हूं कि धार्मिक लोग, अनुयायीगण नियमित तौर पर मुझे मेरी बातों के लिए खरी-खोटी सुनाते रहेंगे, लेकिन वो उन गुरुओं के सामने सिर और पैर एक करके बिछे रहेंगे, भले ही वो उनसे पैसे ऐंठकर रईसी की नुमाइश करे और धर्म के मूल सिद्धांतों की ऐसी-तैसी करता रहे। घूम-फिरकर मैं दुबारा इसी निष्कर्ष पर पहुंचता हूं कि यह या तो दुखद है या हास्यास्पद - मैं तो हंसना पसंद करूंगा।



मनुष्य की आयु घटाने व बढ़ाने वाले कर्म 

हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथों के अनुसार हम मनुष्यों की आयु लगभग 100 वर्ष या उससे अधिक मानी गयी है लेकिन वर्तमान समय में हमारे रहन सहन, विचारों, कर्मों के कारण हमारी आयु में लगातार कमी आती जा रही है। हम अपनी आयु को बढ़ाने, निरोगी रहने के तमाम प्रयत्न भी करते है लेकिन ज्यादातर लोगो को इसमें असफलता ही हाथ लगती है । 

इसका प्रमुख कारण हमारे द्वारा रोज किए जाने वाले कुछ ऐसे कार्य हैं, जो शास्त्रों में बिलकुल निषेध है। महाभारत के अनुशासव पर्व में मनुष्य की आयु को घटाने व बढ़ाने वाले हमारे कर्मों के बारे में पूरे विस्तार से बताया गया है।ये महत्वपूर्ण बातें भीष्म पितामाह जी ने युधिष्ठिर जी को बताई थी।

भीष्म पितामह के अनुसार जो व्यक्ति धर्म को नहीं मानते है नास्तिक है, कोई भी कार्य नहीं करते है, अपने गुरु और शास्त्र की आज्ञा का पालन नहीं करते है, व्यसनी, दुराचारी होते है उन मनुष्यों की आयु स्वत: कम हो जाती है। जो मनुष्य दूसरे जाति या धर्म की स्त्रियों से संसर्ग करते हैं, उनकी भी मृत्यु जल्दी होती है।

जो मनुष्य व्यर्थ में ही तिनके तोड़ता है, अपने नाखूनों को चबाता है तथा हमेशा गन्दा रहता है , उसकी भी जल्दी मृत्यु हो जाती है। जो व्यक्ति उदय, अस्त, ग्रहण एवं दिन के समय सूर्य की ओर अनावश्यक देखते है उनकी मृत्यु भी कम आयु में ही हो जाती है।यह बहुत ही छोटी छोटी बातें है जिनका हमें अवश्य ही ध्यान रखना चाहिए । 

शास्त्रों के अनुसार हम सभी मनुष्यों को मंजन करना,नित्य क्रिया से निवृत होना, अपने बालों को संवारना, और देवताओं कि पूजा अर्चना ये सभी कार्य दिन के पहले पहर में ही अवश्य कर लेने चाहिए। जो मनुष्य सूर्योदय होने तक सोता है तथा ऐसा करने पर प्रायश्चित भी नहीं करता है,जो ये समस्त कार्य अपने निर्धारित समय पर नहीं करते, जो पक्षियों से हिंसा करते है वे भी शीघ्र ही काल के ग्रास बन सकते हैं। 

शौच के समय अपने मल-मूत्र की ओर देखने वाले, अपने पैर पर पैर रखने वाले, माह कि दोनों ही पक्षों की चतुर्दशी,अष्टमी,अमावस्या व पूर्णिमा के दिन स्त्री से संसर्ग करने वाले व्यक्तियों कि अल्पायु होती है।अत: हमें इनसे अवश्य ही बचना चाहिए । 

सदैव ध्यान दें कि भूसा, कोई भी भस्म, किसी के भी बाल और मुर्दे की हड्डियों,खोपड़ी पर कभीभी न बैठें। दूसरे के नहाने में उपयोग किये हुए जल का कभी भी किसी भी रूप में प्रयोग न करें। भोजन सदैव बैठकर ही करे। जहाँ तक सम्भव हो खड़े होकर पेशाब न करें। किसी भी ,राख तथा गोशाला में भी मल, मूत्र-त्याग न करें। भीगे पैर भोजन तो करें लेकिए भीगे पैर सोए नहीं। उक्त सभी बातों का ध्यान में रखने वाला वाला मनुष्य सौ वर्षों तक जीवन धारण करता है।

जो मनुष्य सूर्य, अग्नि, गाय तथा ब्राह्णों की ओर मुंह करके और बीच रास्ते में मूत्र त्याग करते हैं, उन सब की आयु कम हो जाती है।

मैले, टूटे और गन्दे दर्पण में मुंह देखने वाला, गर्भवती स्त्री के साथ सम्बन्ध बनाने वाला,उत्तर और पश्चिम की ओर सर करके सोने वाला, टूटी, ढीली और गन्दी खाट / पलंग पर सोने वाला, किसी कोने ,अंधेरे में पड़े पलंग, चारपाई पर सोने वाला मनुष्य कि आयु अवश्य ही कम हो जाती है। 
मनुष्य की आयु घटाने व बढ़ाने वाले कर्म 

अपवित्र अवस्था में सूर्य, चंद्रमा और नक्षत्र की ओर देखने वाला, बड़े बुजुर्गो के आने पर खड़े होकर उनको प्रणाम नहीं करने वाला, उनका आदर सत्कार न करने वाला , घर में टूटे फूटे बर्तनों का उपयोग करने वाला, मात्र एक ही वस्त्र पहनकर भोजन करने वाला, नंगे बदन तथा अपवित्र अवस्था में ही सोने वाला मनुष्य भी अल्पायु होता है। सिर पर तेल लगाने के बाद उसी हाथ से बचा हुआ तेल शरीर के दूसरे अंगों पर नहीं लगाना चाहिए। जूठे मुंह, जूठे हाथों से पढ़ने -पढ़ाने से भी आयु का नाश होता है। बोए हुए खेत में, आबादी के पास तथा पानी में मल-मूत्र करने वाला, सामने परोसे हुए अन्न की निंदा करने वाला, भोजन से पूर्व हाथ मुँह न धोने वाला और भोजन करते समय बात करने वाले मनुष्य की आयु भी कम होती है। लंबी आयु चाहने वाले मनुष्यों को जूठन भी घर से दूर ही फेंकना चाहिए।

शास्त्रों के अनुसार पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके ही हजामत बनवाना चाहिए। हजामत बनवाकर बिना नहाए रहने से भी आयु का नाश होता है। व्यक्ति को किसी से ईष्र्या नहीं करना चाहिए। ईष्र्या करने से भी आयु का अवश्य ही नाश होता है। बिना बुलाए कहीं भी नहीं जाना चाहिए किंतु पूजा/यज्ञ देखने के लिए बिना निमंत्रण के भी चला जाना चाहिए है। जहां व्यक्ति का आदर न होता हो, अपमान हो वहां जाने से भी आयु का नाश होता है।निषिद्ध समय में कभी अध्ययन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से भी ज्ञान व आयु का नाश हो जाता है।

शास्त्रों के अनुसार गुरु के साथ कभी भी जिद नहीं करनी चाहिए। यदि गुरु नाराज़ हों तो भी उन्हें हर तरह से सम्मान देकर उन्हें मनाकर प्रसन्न करने की चेष्ठा अवश्य ही करनी चाहिए। गुरु जैसा भी बर्ताव करते हों तो भी उनके प्रति सदैव अच्छा ही बर्ताव करना चाहिए। क्योंकि गुरु की निंदा से मनुष्यों की आयु कम हो जाती है| इसी तरह महात्माओं की निंदा करने से भी मनुष्य की आयु कम होती है। 

जो मनुष्य अपने पर्वों/त्योहारों के दिन ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करता है , किसी भी व्यक्ति के साथ एक ही बर्तन में भोजन करता है, जो ऐसा अन्न खाता है तथा जिसमें से सार निकाल लिया गया हो, भोजन के बाद बाल संवारता है उसकी भी उम्र अधिक नहीं होती है। 

जो मनुष्य यदि शाम के समय सोता है, पढ़ता है या भोजन करता है। रात के समय श्राद्ध करता है, नहाता है व दही या सत्तू खाता है, रात के समय खूब डंटकर भोजन करता है, ऐसा मनुष्य भी अधिक उम्र तक जीवित नहीं रहता है। 

शास्त्रों के अनुसार जो कन्या किसी अंग से हीन हो अथवा अधिक अंग वाली हो, जिसका गोत्र अपने ही समान हो या जो नाना के कुल में ही उत्पन्न हुई हो, उसके साथ विवाह नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त, जो नीच कुल में पैदा हुई हो, जिसके कुल का पता न हो जिसके शरीर का रंग पीला हो तथा जो कुष्ठ रोग वाली हो, उसके साथ विवाह करने से मनुष्य की आयु अवश्य ही कम होती है।

जो मनुष्य अपवित्र मनुष्यों को देखता स्पर्श करता या उनके साथ रहता है, जो बहुत कामी होता है जो वासना में अंधा होकर कुमारी कन्या, चरित्रहीन स्त्री या वेश्या से सम्बन्ध बनाता है, जो पत्नी के साथ दिन में कभी भी तथा रजस्वला अवस्था में समागम करता है, उसे भी अवश्य ही अल्प आयु प्राप्त होती है।

जो मनुष्य भोजन करने के बाद हाथ-मुंह धोए बिना अपवित्र रहता है, और ऐसी अवस्था में ही अग्नि, गाय तथा ब्राह्मण का स्पर्श करता है ऐसे व्यक्ति को यमदूत शीघ्र ही ले जाते हैं। 

पलंग पर सदैव सीधा ही सोना चाहिए कभी भी तिरछा नहीं सोना चाहिए। नास्तिक मनुष्यों के साथ कभी भी संगत नही करनी चाहिए। आसन को कभी भी पैर से खींचकर नहीं बैठना चाहिए। स्नान किए बिना मनुष्य को चंदन नहीं लगाना चाहिए। बार-बार अपने मस्तक पर पानी नहीं डालना चाहिए। जो भी मनुष्य जाने अनजाने ये काम करता है, उसकी आयु भी अवश्य ही कम होती हैं। 
दीर्घ आयु के उपाय 

दिन में उत्तर दिशा की ओर मुंह करके मल-मूत्र का त्याग करने और रात में दक्षिणामुख होकर करने से आयु का नाश नहीं होता। दातून, मंजन किए बिना देवताओं की पूजा कदापि भी नहीं करनी चाहिए। नदी तालाब में नंगा होकर अथवा रात के समय नहाने से यथा संभव बचना चाहिए। नास्तिक मनुष्यों कि संगत से दूर रहने में ही भलाई है । नहाने के बाद गन्दे ,गीले वस्त्र कभी भी नहीं पहनना चाहिए। रजस्वला स्त्री के साथ कभी भी सम्बन्ध स्थापित नहीं करना चाहियें। उपरोक्त बातों का ध्यान रखने वाला मनुष्य 100 वर्षों तक आयु का सुख भोगता है। 

क्रोधहीन, सत्य बोलने वाले, प्राणियों से हिंसा न करने वाला, सभी को एक समान रूप से देखने वाला तथा छल कपट से दूर रहने वाले मनुष्य की आयु 100 वर्षों की होती है। प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर फिर नित्यकर्म - स्नान आदि करने के बाद प्रात:काल की संध्या व शाम के समय भी विधिपूर्वक संध्या करने वाले मनुष्य भी दीर्घ आयु को प्राप्त होते है।

कभी भी दूसरों के पहने हुए वस्त्र व जूते नहीं पहनने चाहिए। दूसरों की निंदा व चुगली बिलुक भी नहीं करनी चाहिए। किसी से भी क्रूरता का व्यवहार नही करना चाहिए। असहाय, अपंग व कुरूप की कदापि हंसी नहीं उड़ानी चाहिए। ब्राह्मण, गाय, राजा, स्त्री, दुर्बल, वृद्ध, गर्भिणी और बोझ लिए हुए मनुष्य यदि सामने आ जाएं तो उन्हें मार्ग देने के लिए स्वयं पीछे हट जाना चाहिए। इन बातों का ध्यान रखने वाले मनुष्य को अल्पायु नहीं होती है ।

अधिक उम्र चाहने वाले मनुष्य को पीपल, बड़ और गूलर के फल का तथा सन के साग का सेवन कभी भी नहीं करना चाहिए। हाथ में नमक लेकर नहीं चाटना चाहिए इससे बुद्धि, धन और आयु का नाश होता है। रात को चावल, दही, मूली और सत्तू नहीं खाना चाहिए। सुबह और शाम के समय ही सावधानी के साथ भोजन करना चाहिए, बीच में कुछ भी अनावश्यक खाना उचित नहीं है। शत्रु के श्राद्ध में कभी भूलकर भी अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए।उपरोक्त निर्देशों का पालन करने वाला सौ वर्ष की आयु प्राप्त करता है। 

बूढ़े-बुजुर्गो , परिवार के सदस्य और गरीब मित्र को अपने घर में अवश्य ही आश्रय देना चाहिए। परेवा, तोता और मैना आदि पक्षियों को घर में रहना बहुत ही मंगलकारी होता है। लेकिन यदि उल्लू, गिद्ध और जंगली कपोत घर में आ जाए तो तुरंत उसकी शांति करवानी चाहिए क्योंकि ये अमंगलकारी माने गए हैं। 



क्या है भद्रा 

हिन्दु धर्म शास्त्रों के अनुसार किसी भी शुभ कार्य में भद्रा योग का अवश्य ध्यान रखा जाता है। क्योंकि भद्रा काल में किसी भी शुभ कार्य का आरम्भ या अंत अशुभ माना जाता है। इसलिए भद्रा काल में कोई भी आस्थावान, बुद्धिमान व्यक्ति शुभ कार्य बिलकुल भी नहीं करता है।

हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार भद्रा भगवान सूर्य देव की पुत्री और शनि देव की बहन है। भगवान शनि देव की तरह ही इसका स्वभाव भी उग्र कहा गया है। अत: उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही परम पिता भगवान ब्रह्मा ने उन्हें पंचाग के एक प्रमुख अंग विष्टी करण में स्थान दिया है। कहते है कि जब भद्रा किसी पर्व काल में स्पर्श करती है तो जब तक वह रहती है उसे श्रद्धावास माना जाता है।

भद्रा का समय 7 से 13 घंटे 20 मिनट तक माना गया है, लेकिन बीच में नक्षत्र व तिथि के अनुक्रम तथा पंचक के पूर्वार्द्ध नक्षत्र के मान व गणना के कारण इसके समय में घट-बढ़ होती रहती है। भद्रायुक्त पर्व काल का वह समय छोड़ देना चाहिए, जिसमें भद्रा के मुख तथा मध्य का काल आता हो।

हिन्दु पंचांग के पांच प्रमुख अंग माने जाते हैं। यह है - तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण। इनमें करण एक महत्वपूर्ण अंग माना गया है । यह तिथि का आधा भाग होता है। करण की संख्या 11 होती है। यह चर और अचर दो भागों में बांटे गए हैं। इन 11 करणों में सातवें करण 'विष्टि' का नाम ही भद्रा है। भद्रा सदैव गतिशील रहती है। हिन्दु पंचाग शुद्धि में भद्रा का खास महत्व माना जाता है। 

वैसे तो भद्रा का शाब्दिक अर्थ कल्याण करने वाली है लेकिन इस अर्थ के बिलकुल विपरीत भद्रा या विष्टी करण में लगभग सभी शुभ कार्य निषेध माने जाते हैं। हमारे ज्योतिष विज्ञान के अनुसार भद्रा अलग-अलग सभी राशियों के अनुसार तीनों लोकों में घूमती है। लेकिन जब यह मृत्युलोक में होती है, तब सभी शुभ कार्यों में बाधक, उनका नाश करने वाली कही गई है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार जब चन्द्रमा, कर्क, सिंह, कुंभ व मीन इन चार राशि में विचरण करता है और भद्रा विष्टी करण का योग बनता है, तब भद्रा पृथ्वीलोक में रहती है। और इस समय सभी कार्य शुभ कार्य निषेध होते है। भद्राकाल में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश और रक्षा बंधन आदि शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। लेकिन भद्राकाल में स्नान करना, यज्ञ करना, स्त्री प्रसंग, अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग करना, शल्य क्रिया करना , कोर्ट में मुकदमा दायर करना, अग्नि जलाना , किसी वस्तु को काटना, भैंस, घोड़ा, ऊंट संबंधी कार्य करने के योग्य माने जाते हैं।

भद्रा के बारह नाम : - धान्या, दधि मुखी, भद्रा, महामारी, खरानना, कालरात्रि, महारूद्रा, विष्टिकरण, कुलपुत्रिका, भैरवी, महाकाली, असुरक्षयकारी हैं। 

भद्रा दोष निवारण के उपाय :शास्त्रों के अनुसार जिस दिन भद्रा हो और यदि उस दिन कोई शुभ कार्य करना ही पड़े तो उस दिन उपवास अवश्य ही करना चाहिए।
एक बात अवश्य ही ध्यान दे कि यदि भद्रा के समय कोई अति आवश्यक कार्य करना ही हो तो भद्रा की प्रारंभ की 5 घटी जो भद्रा का मुख होती है, उसे अवश्य ही त्यागना चाहिए।

भद्रा 5 घटी मुख में, 2 घटी कंठ में, 11 घटी ह्रदय में और 4 घटी पुच्छ में स्थित रहती है। यदि भद्रा के समय कोई अति आवश्यक कार्य करना हो तो भद्रा की प्रारंभ की 5 घटी जो भद्रा का मुख होती है, अवश्य त्याग देना चाहिए।

- जब भद्रा मुख में होती है तो कार्य का नाश होता है।
- जब भद्रा कंठ में होती है तो धन-समृद्धि का नाश होता है। 
- जब भद्रा हृदय में होती है तो प्राण का नाश होता है।
- जब भद्रा पुच्छ में होती है, तो सभी कार्यों में विजय प्राप्त होती है ।

कृष्णपक्ष की तृतीया,दशमी के उत्तरार्ध में एवं सप्तमी,चतुर्दशी,के पूर्वार्ध में भद्रा रहती है ।
शुक्लपक्ष की चतुर्थी, एकादशी के उत्तरार्ध में एवं शुक्लपक्ष की अष्टमी और पूर्णिमा के पूर्वार्ध में भद्रा रहती है ।

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घर के लिए अशुभ वृक्ष



Peepal Tree  पीपल का पेड़ कभी भूलकर भी घर में नहीं लगाना चाहिए । शास्त्रों में तो यहाँ तक भी लिखा है कि पीपल के पेड़ की छाया भी जिस घर में पड़ती है उसे त्यागना ही उचित है । लेकिन हर मनुष्य को अपने जीवन में किसी पार्क या सार्वजानिक जगह पर पीपल लगाकर उसकी सेवा अवश्य ही करनी चाहिए । 
kaktas Tree   वृहतसंहिता में कहा गया है कि ऐसे पेड़ जिनकी पत्तियों एवं टहनियों को तोड़ने पर दूध निकलता है उसे घर के पास नहीं लगना चाहिए इससे धन की हानि होती है। इसी प्रकार कांटे वाले पेड़ भी घर के मुख्य द्वार एवं घर के पास होना शुभ नहीं होता है इससे शत्रु भय बढ़ता है और कांटे नकारात्मक ऊर्जा भी उत्पन्न करते हैं। लेकिन गुलाब जैसे कांटेदार पौधे लगाए जा सकते हैं। 

Bonsai Tree बोनसाई पौधों को घर में कभी भी स्थान नहीं देना चाहिए । ये पौधे भी ना तो घर में तैयार करने चाहिए और न ही बाहर से लाकर लगाने चाहिए। बोनसाई पौधे घर वालों का विकास रोकते हैं। 

 MANGO TREE   ज्यादातर घरों में आम के पेड़ लगे होते हैं और लोग बड़े शौक से अलग-अलग तरह के आम का पेड़ लगाते हैं, लेकिन घर के पास आम का पेड़ होना आपके बच्चों पर बुरा असर डालता है। ऐसे पेड़ शौक से तो कभी न लगाएं और यदि पहले से मौजूद हो तो आप यह कर सकते हैं कि इस पेड़ के पास ऐसे पेड़ लगाएं जो शुभ माने जाते हैं। जैसे- नारियल, नीम, अशोक आदि का पेड़ आप लगा सकते हैं। 

Papaya Tree  वास्तु शास्त्र में पपीते के वृक्ष का घर में होना अषुभ कहा गया है। अतः घर में यदि यह उग आए तो प्रारंभ में ही इसे खोद कर अन्यत्र स्थानांतरित कर देना चाहिए। किंतु बड़ा हो जाने पर इसे काटें नहीं बल्कि जब इसमें फूल आना बंद हो जाए , फल लगना बंद हो जाएं तब इसके तने में एक छेद करके उसमें थोड़ी सी हींग भर दें। इससे यह स्वतः सुख जाएगा। लेकिन इस कार्य के बदले किसी एक शुभता प्रदान करने वाले पौधे का रोपन अवष्य ही करें।

Bair Tree  कभी भी अपने घर में बेर का पेड़ नहीं लगाना चाहिए । मान्यता है की बेर का वृक्ष जिस घर की सीमा में लगा होता है उस घर के लोगों की अन्य लोगों के साथ शत्रुता रहती है और शत्रु परेषान करते हैं।


Babool Tree   मेंहदी, पलाष, बबूल, अरंडी के पौधे को भी घर की सीमा के अंदर आरोहण नहीं करना चाहिए। बबूल लगाने से उस घर में काफी क्लेष होता है। और जिस घर में अरंडी का पौधा हो वहाँ समस्त कार्यों में रूकावटें आती हैं।
घर के लिए शुभ वृक्ष

हर व्यक्ति चाहता है कि यदि उसके पास जगह है तो वह अपने घर के बगीचे में तरह तरह के पेड़ पौधे लगाये लेकिन यह भी सच है कि उनमें से कई पेड़ पौधों का घर के आस-पास होना अशुभ माना जाता है और कई ऐसे होते है जो दोष निवारक माने गए हैं। आइए जानें, कौन सा पेड़ लगाना होता है अच्छा और कौन सा है अशुभ-

Tulsi Tree   हिन्दू धर्म में तुलसी के पौधे को एक तरह से लक्ष्मी का रूप माना गया है। कहते है की जिस घर में तुलसी की पूजा अर्चना होती है उस घर पर भगवान श्री विष्णु की सदैव कृपा दृष्टि बनी रहती है । आपके घर में यदि किसी भी तरह की निगेटिव एनर्जी मौजूद है तो यह पौधा उसे नष्ट करने की ताकत रखता है। हां, ध्यान रखें कि तुलसी का पौधा घर के दक्षिणी भाग में नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि यह आपको फायदे के बदले काफी नुकसान पहुंचा सकता है।

Bail Tree  भगवान शिव को बेल का वृक्ष अत्यंत प्रिय है। मान्यता है इस वृक्ष पर स्वयं भगवान शिव निवास करते हैं। भगवान शिवजी का परम प्रिय बेल का वृक्ष जिस घर में होता है वहां धन संपदा की देवी लक्ष्मी पीढ़ियों तक वास करती हैं। इसको घर में लगाने से धन संपदा की देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और सारे संकट भी दूर होते है ।

Shami Tree  शमी का पौधा घर में होना भी बहुत शुभ माना जाता है । शमी के पौधे के बारे में तमाम भ्रांतियां मौजूद हैं और लोग आम तौर पर इस पौधे को लगाने से डरते-बचते हैं। ज्योतिष में इसका संबंध शनि से माना जाता है और शनि की कृपा पाने के लिए इस पौधे को लगाकर इसकी पूजा-उपसना की जाती है। इसका पौधा घर के मुख्य द्वार के बाईं ओर लगाना शुभ है। शमी वृक्ष के नीचे नियमित रूप से सरसों के तेल का दीपक जलाएं, इससे शनि का प्रकोप और पीड़ा कम होगी और आपका स्वास्थ्य बेहतर बना रहेगा। विजयादशमी के दिन शमी की विशेष पूजा-आराधना करने से व्यक्ति को कभी भी धन-धान्य का अभाव नहीं होता।

Ashvgandha Tree  अश्वगंधा को भी बहुत ही शुभ माना जाता है । इसे घर में लगाने से समस्त वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं ।अश्वगंधा का पौधा जीवन में शुभता को बढ़ाकर जीवन को और भी अधिक सक्रिय बनाता है। यह एक अत्यन्त लोकप्रिय आयुर्वेदिक औषधि है।

Awla Tree यदि घर में आंवले का पेड़ लगा हो और वह भी उत्तर दिशा और पूरब दिशा में तो यह अत्यंत लाभदायक है। यह आपके कष्टों का निवारण करता है। आंवले के पौधे की पूजा करने से मनौती पूरी होती हैं। इसकी नित्य पूजा-अर्चना करने से भी समस्त पापों का शमन हो जाता है। 

Ashok Tree    घर में अशोक का पौधा लगाना भी बहुत शुभ माना गया है । अशोक अपने नाम के अनुसार ही शोक को दूर करने वाला और प्रसन्नता देने वाला वृक्ष है। इससे घर में रहने वालों के बीच आपसी प्रेम और सौहार्द बढ़ता है।

Shewtark Tree   श्वेतार्क गणपति का पौधा दूधवाला होता है। वास्तु सिद्धांत के अनुसार दूध से युक्त पौधों का घर की सीमा में होना अषुभ होता है। किंतु श्वेतार्क या आर्क इसका अपवाद है। श्वेतार्क के पौधे की हल्दी, अक्षत और जल से सेवा करें। ऐसा करने से इस पौधे की बरकत से उस घर के रहने वालों को सुख शांति प्राप्त होती है। ऐसी भी मान्यता है कि जिसके घर के समीप श्वेतार्क का पौधा फलता-फूलता है वहां सदैव बरकत बनी रहती है। उस भूमि में गुप्त धन
होता है या गृह स्वामी को आकस्मिक धन की प्राप्ति होती है ।

Gudhal Tree   गुडहल का पौधा ज्योतिष में सूर्य और मंगल से संबंध रखता है, गुडहल का पौधा घर में कहीं भी लगा सकते हैं, परंतु ध्यान रखें कि उसको पर्याप्त धूप मिलना जरूरी है। गुडहल का फूल जल में डालकर सूर्य को अघ्र्य देना आंखों, हड्डियों की समस्या और नाम एवं यश प्राप्ति में लाभकारी होता है। मंगल ग्रह की समस्या, संपत्ति की बाधा या कानून संबंधी समस्या हो, तो हनुमान जी को नित्य प्रात: गुडहल का फूल अर्पित करना चाहिए। माँ दुर्गा को नित्य गुडहल अर्पण करने वाले के जीवन से सारे संकट दूर रहते है ।

Nariyal Tree      नारियल का पेड़ भी शुभ माना गया है । कहते हैं, जिनके घर में नारियल के पेड़ लगे हों, उनके मान-सम्मान में खूब वृद्धि होती है।

Neem Tree   घर के वायव्य कोण में नीम केे वृक्ष का होना अति शुभ होता है। सामान्तया लोग घर में नीम का पेड़ लगाना पसंद नहीं करते, लेकिन घर में इस पेड़ का लगा होना काफी शुभ माना जाता है। पॉजिटिव एनर्जी
के साथ यह पेड़ कई प्रकार से कल्याणकारी होता है। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति नीम के सात पेड़ लगाता है उसे मृत्योपरांत शिवलोक की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति नीम के तीन पेड़ लगाता है वह सैकड़ों वर्षों तक सूर्य लोक में सुखों का भोग करता है।

Banana Tree    केले का पौधा धार्मिक कारणों से भी काफी महत्वपूर्ण माना गया है। गुरुवार को इसकी पूजा की जाती है और अक्सर पूजा-पाठ के समय केले के पत्ते का ही इस्तेमाल किया जाता है।
इसे भवन के ईशान कोण में लगाना चाहिए, क्योंकि यह बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधि वृक्ष है।इसे ईशान कोण में लगाने से घर में धन बढ़ता है। केले के समीप यदि तुलसी का पेड़ भी लगा लें तो अधिक शुभकारी रहेगा। इससे विष्णु और लक्ष्मी की कृपा साथ-साथ बनी रहती है। कहते हैं इस पेड़ की छांव तले यदि आप बैठकर पढ़ाई करते हैं तो वह जल्दी जल्दी याद भी होता चला जाता है।

Bans Tree   बांस का पौधा घर में लगाना अच्छा माना जाता है। यह समृद्धि और आपकी सफलता को ऊपर ले जाने की क्षमता रखता है।सामान्यता दूध या फल देने वाले पेड़ घर पर नहीं लगाने चाहिए, लेकिन नारंगी और अनार अपवाद है । यह दोनों ही पेड़ शुभ माने गए है और यह सुख एवं समृद्धि के कारक भी माने गए है । धन, सुख समृद्धि और घर में वंश वृद्धि की कामना रखने वाले घर के आग्नेय कोण (पूरब दक्षिण) में अनार का पेड़ जरूर लगाएं। यह अति शुभ परिणाम देता है।वैसे अनार का पौधा घर के सामने लगाना सर्वोत्तम माना गया है । घर के बीचोबीच पौधा न लगाएं। अनार के फूल को शहद में डुबाकर नित्यप्रति या फिर हर सोमवार भगवान शिव को अगर अर्पित किया जाए, तो भारी से भारी कष्ट भी दूर हो जाते हैं और व्यक्ति तमाम समस्याओं से मुक्त हो जाता है।





किस देवता की कितनी परिक्रमा करें

हिन्दु धर्म में देवी देवताओं की पूजा अर्चना के साथ साथ उनकी परिक्रमा का भी बहुत महत्व बताया गया है । अपने दक्षिण भाग की ओर से चलना / गति करना परिक्रमा कहलाता है। परिक्रमा में व्यक्ति का दाहिना अंग देवता की ओर होता है। हमेशा ध्यान रखें कि परिक्रमा सदैव दाएं हाथ की ओर से ही प्रारंभ करनी चाहिए, क्योंकि दैवीय शक्ति के आभामंडल की गति दक्षिणावर्ती होती है।

  बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर दैवीय शक्ति के आभामंडल की गति और हमारे अंदर विद्यमान परमाणुओं में टकराव पैदा होता है, जिससे हमारा तेज नष्ट हो जाता है। जबकि दाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर उस देवी / देवता की कृपा आसानी से प्राप्त होती है। सभी देवी-देवताओं की परिक्रमा की संख्या अलग-अलग बताई गई है जैसे - शास्त्रों के अनुसार श्री गणेश जी की तीन परिक्रमा करने का विधान है । इसको करने से श्री गणेश जी अपने भक्तो के सभी विघ्न दूर करते हुए उन्हें सुख समृद्धि प्रदान करते है ।- इसी तरह भगवान भोलेनाथ अर्थात शिवजी भगवान की आधी परिक्रमा करने का विधान है। भगवान भोलेनाथ अपने नाम के ही अनुसार बहुत ही भोले है और बहुत ही जल्द प्रसन्न होते हैं । भोलनाथ अपनी मात्र आधी परिक्रमा से ही प्रसन्न हो जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार भगवान शंकर की प्रदक्षिणा में सोम सूत्र अर्थात भगवान शिव को चढ़ाया गया जल जिस ओर गिरता है, उसे लाँघना नहीं चाहिए , वहीँ से वापस हो जाना चाहिए ।
माताजी की एक/तीन परिक्रमा की जाती है। माता अपने भक्तों को शक्ति प्रदान करती है। इसके अलावा अन्य किसी भी देवियों की एक ही परिक्रमा करने का विधान है|  
 सृष्टि के पालनकर्ता भगवान नारायण, श्री हरि अर्थात् विष्णु की चार परिक्रमा करने पर अनन्त पुण्य प्राप्त होता है।इस सृष्टि के एक मात्र प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्य की सात परिक्रमा करने पर व्यक्ति की सारी मनोकामनाएं जल्द ही पूरी हो जाती है।  
संकटमोचन, प्रभु श्रीराम के सबसे प्रिय श्री हनुमानजी की तीन परिक्रमा करने का विधान बताया गया है।इसलिए हनुमान भक्तों को इनकी तीन परिक्रमा ही करनी चाहिए।शनिदेव की सात परिक्रमा करने का विधान है ।    पीपल की परिक्रमा से ना केवल शनि दोष वरन सभी तरह के ग्रह जनित दोषो से छुटकारा मिलता है । पीपल की 7 परिक्रमा करनी चाहिए ।
 जिन देवताओं की परिक्रमा की संख्या का विधान मालूम न हो, उनकी तीन परिक्रमा की जा सकती है। तीन परिक्रमा के विधान को सभी जगह स्वीकार किया गया है ।
 सोमवती अमावस्या के दिन मंदिरों में देवता की 108 परिक्रमा को विशेष फलदायी बताया गया है ।
 जहाँ मंदिरों में परिक्रमा का मार्ग न हो वंहा भगवान के सामने खड़े होकर अपने पांवों को इस प्रकार चलाना चाहिए जैसे की हम चल कर परिक्रमा कर रहे हों। 

ये भी ध्यान रखें...

परिक्रमा करते समय बीच-बीच में रुकना नहीं चाहिए।परिक्रमा बीच में रोकने से वह पूर्ण नही मानी जाती है । परिक्रमा हाथ जोड़कर उनके किसी भी मन्त्र का जाप करते हुए करनी चाहिए, और परिक्रमा लगाते हुए, देवता की पीठ की ओर पहुंचने पर रुककर देवता को नमस्कार करके ही परिक्रमा को पूरा करना चाहिए। 

परिक्रमा के दौरान किसी से बातचीत नहीं करनी चाहिए वरन जिस देवता की परिक्रमा कर रहे हैं, उनका ही ध्यान करना चाहिए । परिक्रमा वहीं पूरी होती है जहां से परिक्रमा प्रारंभ की जाती है। अधूरी परिक्रमा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता है।