कबूतरबाजी
चूंकि 'कबूतर' शब्द से बना है, इसलिए इसके लिए कबूतर का होना जरूरी है। कबूतर कोई एनडेंजर्ड प्रजाति नहीं है। यह अभी भी बहुतायत में मिलता है। धर्म-कर्म वाले लोग शहर के चौराहों पर उनके लिए अब भी दाना डालते हैं। वैसे तो दाना डालने के बाद जाल डालने का भी रिवाज है। पर धर्म-कर्म वाले लोग ऐसा तो नहीं करते होंगे। खैर, कबूतर बहुत ही निरीह प्राणी होता है। इतना कि बिल्ली को देखकर आंखें बंद कर लेता है और बिल्ली भी कोई एनडेंजर्ड प्रजाति नहीं है। वह भी बहुतायत में मिलती है। वह हर उस जगह पर पहुंच जाती है, जहां खाने-पीने का जुगाड़ हो। वह दूध पी जाती है, मलाई खा जाती है। कबूतर उसके लिए दूध-मलाई जैसी ही चीज है। बल्कि उससे भी आसान। वह उसके सामने आंख मूंदकर बैठ जाता है- लीजिए, मैं हाजिर हूं।

कबूतर हमेशा इंसान के काम आया है। पहले के जमाने में वह संदेशवाहक का काम करता था। इधर उसका यह काम कुछ फिल्मों तक ही सीमित रह गया है। फिर वह शांति दूत बन गया। जैसे कभी खलील खां फाख्ते उड़ाया करता था, वैसे ही नेता शांति के लिए कबूतर उड़ाने लगे। अब न खलील खां के फाख्ते उड़ाने का जमाना रहा, न नेताओं के शांति कपोत उड़ाने का। यह तो बुश का जमाना है और इस जमाने में सिर्फ बमवर्षक उड़ते हैं।

वैसे तो बताते हैं कि कबूतर के और भी कई काम हैं। जैसे कहते हैं लक्का कबूतर के पंखों की हवा से लकवा ठीक हो जाता है। पर इधर कबूतर, कबूतरबाजी के ज्यादा काम आ रहा है। कबूतरबाजी एक पेशा है। यह इतना अच्छा और मलाईदार पेशा है कि कुछ साल पहले जो लोग भंगड़ेबाज थे, वे कबूतरबाज हो गए। गा-गाकर कबूतरों को आकर्षित करने लगे- साढे नाल रहोगे तो ऐश करोगे, दुनिया के सारे मजे कैश करोगे। फिर कैश खुद रख लेते थे और उसे ऐश करने के लिए फुर्र कर देते थे। नाल नहीं रखते थे। अब कबूतरों का तो ऐसा ही है जी। उनसे चाहे संदेशे भिजवा लो, प्यार और शांति के और चाहे भंगड़ा डलवा लो। और जब चाहो फुर्र कर दो।

खैर, यह पेशा लोगों को इतना पसंद आया कि गाने वाले गाना छोड़ कबूतरबाजी करने लगे। डांस वाले डांस छोड़ कबूतरबाजी करने लगे। कल्चर की तुक वैसे तो वल्चर से बैठती है, मगर कल्चर वाले, वल्चर को पसंद नहीं करते, पर कबूतरबाजी उन्हें बड़ी रास आई। पर ऐसा नहीं है कि कल्चर में ही कबूतरबाजी का योगदान रहा हो। कहते हैं कि खेल में और खासतौर से हॉकी में कबूतरबाजी का काफी योगदान है। देश में हॉकी की आज जो स्थिति है, उसे इस एंगल से भी समझा जा सकता है।

अब अगर पेशा इतना अच्छा हो, तो हर कोई उसकी ओर आकर्षित हो सकता है। आकर्षित होने के मामले में हमारे नेताओं का कोई जवाब नहीं। कभी जनता उनकी ओर आकर्षित होती थी, इधर वे कबूतरबाजी की ओर आकर्षित हो रहे हैं। बीच-बीच में वे अपनी पार्टी को छोड़कर दूसरी पार्टियों की ओर आकर्षित हो जाते हैं। बड़े-बड़े सेठों और कंपनियों की ओर आकर्षित हो जाते हैं। खैर, कबूतरबाजी की ओर वे खूब आकर्षित हो रहे हैं।

बाबूभाई कटारा को ही देख लीजिए। पहले वह हिंदुत्व की ओर आकर्षित हुए। फिर वह हिंदुत्व के बाहुबली हो गए। जी हां, सबके अपने-अपने बाहुबली होते हैं। कोई समाजवाद का बाहुबली तो कोई हिंदुत्व का बाहुबली। फिर गुजरात के हैं और गोधरा के पड़ोसी हैं तो दंगों ने उन्हें आकर्षित कर लिया और पूरी फैमिली दंगों के बिजनेस में आ गई। बताते हैं उनके और उनके बेटों पर अभी दंगों के केस चल रहे हैं। पर दंगे तो हमेशा होते नहीं रह सकते न और वे ठहरे आकर्षण के मारे। सो वे कबूतरबाजी की ओर आकर्षित हो गए। विचारधारा का कोई संकट तो था नहीं। हिंदुत्व वाले हवाला, तहलका वगैरह सबकी ओर आकर्षित होते रहते हैं, तो उन्हें क्या संकट था। फिर यूएस, यूके, कनाडा में हिंदुत्व का प्रसार हो रहा था। भई, उनके कबूतर संदेश तो ले जाते होंगे न। और वे हिंदुत्व का संदेश नहीं ले जाएंगे तो क्या प्रेम का संदेश ले जाएंगे? 
सर विलियम बैवरीज के अनुसार ‘‘संसार में पाँच आर्थिक राक्षस मानव जाति को ग्रसित करन के लिए तैयार हैं- निर्धनता, अज्ञानता, गन्दगी, बीमारी और बेरा जगारी, परन्तु इनमें बेरा जगारी सबस भयंकर है।’’ बेरोजगारी का अर्थ है, काम करन या ग्य एवं काम करने के इच्छुक व्यक्तिया ं के लिए काम का अभाव। कोई भी व्यक्ति ब रोजगार तब कहलायेगा, जबकि वह काम करने के या ग्य है तथा काम करना चाहता है, किन्तु उसे काम नही मिलता। अर्थात् जो शारीरिक व मानसिक दृष्टि से काम करने की क्षमता रखता है एव काम करना चाहता है परन्तु उसे कार्य नहीं मिलता 187 अथवा काम से अलग होने के लिए बाध्य किया जाता है। वर्तमान में बेरोजगारी की समस्या विश्व व्यापी समस्या है, किन्तु यहाँ भारत के संदर्भ में विचार करें तो पाते हैं कि भारत में बेरोजगारी विभिन्न रूपों में पायी जाती है। जब काम ढूँढने पर भी लोगों को काम नहीं मिलता है तो ऐसी स्थिति को खुली बेरोजगारी कहते हैं। व्यवसाय में नियुक्त ऐसी जन शक्ति के कुछ भाग को, जब उस क्षेत्र से हटाकर किसी अन्य व्यवसाय में लगा दिया जाता है तो भी उससे व्यवसाय के कुल उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इस प्रकार की बेरोजगारी को अदृश्य बेरोजगारी कहते हैं। जब किसी व्यक्ति को वर्ष के किसी विशिष्ट समय के लिए रोजगार मिले और वह शेष अवधि के लिए बेरोजगार बैठा रहे तो वह मौसमी बेरोजगारी कहलाती है। मंदी के दिनों में प्रभावपूर्ण माँग में कमी के कारण जो बेरोजगारी फैलती है, उसे चक्रीय बेरोजगारी कहते हैं। इनके अतिरिक्त अस्थिर बेरोजगारी, शिक्षित बेरोजगारी तथा तकनीकी बेरोजगारी भी भारत में देखी जा सकती है। जनसंख्या की वृद्धि को भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख कारण माना जाता है। देश में प्रतिवर्ष जिस दर से जनसंख्या बढ़ रही है, पर रोजगार के अवसर उसी अनुपात में नहीं बढ़ रहे हैं। यद्यपि भारत एक कृषि प्रधान देश है तथापि भारतीय कृषि के पिछड़ेपन के कारण अतिरिक्त रोजगार के अवसरों का सृजन बहुत कम है। साथ ही भारत के विविध प्राकृतिक साधन अभी तक अविकसित होने से कृषि एवम् औद्योगिक विकास धीमी गति से हो रहा है। पारिवारिक और सामाजिक कारणों के कारण लोग अपना निवास छोड़कर अन्यत्र जाना पसंद नहीं करते जिससे भारतीय श्रम भी गतिहीनता का शिकार हो गया है। दरिद्रता और बेरोजगारी का तो मानो चोली दामन का साथ है। एक व्यक्ति गरीब है क्योंकि वह बेरोजगार है तथा वह बेरोजगार है इसलिए गरीब है। वर्तमान दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली भी विद्यार्थियों को रचनात्मक कार्यौं में लगाने, स्वावलम्बी बनाने तथा आत्मविश्वास पैदा करने में असफल रही है। फलतः आज पढ़ा लिखा व्यक्ति रोजगार के लिए मारा-मारा फिर रहा है। भारत में माँग व प्रशिक्षण की सुविधाओं में समन्वय के अभाव में कई विभागों में प्रशिक्षित श्रमिकों की कमी है। उक्त कारणों के अतिरिक्त भारत में विद्युत की कमी, परिवहन की असुविधा, कच्चा माल तथा औद्योगिक अशान्ति के कारण नये उद्योग स्थापित नहीं हो रहे हैं, वहीं उत्पादन में तकनीकी विधियों को लागू करने से भी बेरोजगारी में वृद्धि हो रही है। हस्त व लघु उद्योगों की अवनति, त्रुटिपूर्ण नियोजन, यन्त्रीकरण एवं अभिनवीकरण, स्त्रियों द्वारा नौकरी करना, विदेशों से भारतीयों का आगमन आदि कारण भी बेरोजगारी समस्या के लिए उत्तरदायी हैं। बेरोजगारी की समस्या समाज में आज अत्यन्त भयंकर एवं गम्भीर समस्या बन गयी है। देश का शिक्षित एवं बेरोजगार युवक अपने आक्रोश की अभिव्यक्ति हड़तालें करने, बसें जलाने एवं राष्ट्रीय सम्पत्ति को क्षति पहुँचाने में कर रहा है वहीं कई बार वह कुंठित हो आत्महत्या जैसा भयंकर कुकृत्य कर बैठता है। कहते हैं खाली दिमाग शैतान का घरकहावत को हमारे युवक चरितार्थ कर रहे हैं। सच भी है मरता क्या नहीं करता, आवश्यकता सब पापों की जड़ है, अतः वह चोरी, डकैती, अपहरण, तस्करी, आतंकवादी गतिविधियों में सक्रिय हो रहा है। देश की जनशक्ति का सदुपयोग नहीं हो रहा है, फलतः आर्थिक ढाँचा चरमरा रहा है। भारत जैसे विकासशील देश को अपनी बेरोजगारी के उन्मूलन हेतु सर्वप्रथम जनसंख्या नियन्त्रण कार्यक्रम को हाथ में लेकर परिवार नियोजन, महिला शिक्षा, शिशु स्वास्थ्य के कार्य अपनाने होंगे। कृषि विकास के लिए शोध गति से विस्तार एवं कृषि में उन्नत बीजों को अपनाना होगा। नियोजन की प्रभावी नीति, पिछड़े क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना, कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास किया 188 जाना चाहिए तथा उन्हें कच्चा माल, औजार, लाइस स व अन्य आधार भूत सुविधाएँ उपलब्ध करानी चाहिए। सरकार द्वारा विद्युत आपूर्ति, परिवहन सम्बन्धी अड़चन द र करने का प्रयत्न किया जाय। वर्तमान शिक्षा पद्धति को रोजगारोन्मुख बनाए जाने की महती आवश्यकता है। यदि माध्यमिक शिक्षा के बाद औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं तथा अन्य तकनीकी संस्थाओं की अधिकाधिक स्थापना कर युवकों को प्रशिक्षित कर वित्त, कच्च माल व विपणन की सुविधा देकर स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित किया जाय तो इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता। साथ ही प्राकृतिक साधना ं का सर्वेक्षण, गाँवों में रा जगारोन्मुख नियोजन, युवा शक्ति का उपयोग किया जाना चाहिए। वैस सरकार की आ र स इस दिशा में प्रयत्न हेतु एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं। इस विश्व व्यापी समस्या के समाधान हेतु उपाय अपने अपने देश की परिस्थितियों के अनुसार ही सार्थक, प्रभावशाली एवं उचित सिद्ध हा ंगे। केवल सरकारी योजनाओं से इसका निराकरण स भव नहीं होगा। आवश्यकता है-इस हेतु युवका ं को ही आगे आकर अपने लिए मार्ग का निर्धारण करना हा गा। हाथ पर हाथ धरे बैठे रहन से कुछ होने का नहीं। नौकरी के लिए भटकने की अपेक्षा अपनी रुचि उद्या गा क प्रति जाग्रत करनी होगी, तभी इसका कोई स्थायी समाधान हो सकेगा, अन्यथा नहीं।

                                लोहड़ी




      मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व उत्तर भारत विशेषतः पंजाब में लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है। किसी न किसी नाम से मकर संक्रांति के दिन या उससे आस-पास भारत के विभिन्न प्रदेशों में कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन तमिल हिंदू पोंगल का त्यौहार मनाते हैं। इस प्रकार लगभग पूर्ण भारत में यह विविध रूपों में मनाया जाता है।

मकर संक्रांति की पूर्व संध्या को  पंजाब, हरियाणा व पड़ोसी राज्यों में बड़ी धूम-धाम से 'लोहड़ी '  का त्यौहार मनाया जाता है।  पंजाबियों  के लिए लोहड़ी खास महत्व रखती है।  लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही  छोटे बच्चे  लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी हेतु लकड़ियां, मेवे, रेवड़ियां, मूंगफली  इकट्ठा करने लग जाते हैं।  लोहड़ी की संध्या को आग जलाई जाती है। लोग अग्नि के चारो ओर चक्कर काटते हुए नाचते-गाते हैं व आग मे रेवड़ी, मूंगफली, खील, मक्की के दानों की आहुति देते हैं। आग के चारो ओर बैठकर लोग आग सेंकते हैं व रेवड़ी,  खील, गज्जक, मक्का खाने का आनंद लेते हैं। जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उन्हें विशेष तौर पर बधाई दी जाती है।  प्राय:  घर मे नव वधू या और बच्चे  की पहली लोहड़ी बहुत विशेष होती है। 

लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था। यह शब्द तिल तथा रोड़ी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों के मेल से बना है, जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के रुप में प्रसिद्ध हो गया।

ऐतिहासिक संदर्भ -  किसी समय में सुंदरी एवं मुंदरी नाम की दो अनाथ लड़कियां थीं जिनको उनका चाचा विधिवत शादी न करके एक राजा को भेंट कर देना चाहता था। उसी समय में दुल्ला भट्टी नाम का एक नामी डाकू हुआ है। उसने दोनों लड़कियों,  'सुंदरी एवं मुंदरी' को जालिमों से छुड़ा कर उन की शादियां कीं। इस मुसीबत की घडी में दुल्ला भट्टी ने लड़कियों की मदद की और लडके वालों को मना कर एक जंगल में आग जला कर सुंदरी और मुंदरी का विवाह करवाया। दुल्ले ने खुद ही उन दोनों का कन्यादान किया। कहते हैं दुल्ले ने शगुन के रूप में उनको शक्कर दी थी।

जल्दी-जल्दी में शादी की धूमधाम का इंतजाम भी न हो सका सो दुल्ले ने उन लड़कियों की झोली में एक सेर शक्कर डालकर ही उनको विदा कर दिया। भावार्थ यह है कि डाकू हो कर भी  दुल्ला भट्टी ने निर्धन लड़कियों के लिए पिता की भूमिका निभाई।

यह भी कहा जाता है कि संत कबीर की पत्नी लोई की याद में यह पर्व मनाया जाता है. इसीलिए इसे लोई भी कहा जाता है।

ऐसा टोटका जो भूत-पिशाच की समस्या सुलझाएगा

घर के किसी बीमार व्यक्ति, जिसकी जल्द ही मौत होने वाली हो, के ऊपर से सुई लगा नींबू वार कर चौराहे पर रख देना और सामने खड़े होकर यह प्रतीक्षा करना कि शायद कोई व्यक्ति उस नींबू को लांघ जाएगा. अगर आपकी नजरों के सामने कोई ऐसा कर लेता है तो आपको यह आश्वासन हो जाता है कि जिस व्यक्ति की लंबी उम्र की कामना किए आपने यह सब किया है, उसकी बीमारी उसे लग जाएगी जिसने नींबू को लांघा है और आपका परिजन पूरी तरह ठीक हो जाएगा.

यह एक ऐसा टोटका है, जिसे अधिकांशत: प्रयोग में लाया जाता है. लोगों का मानना है कि ऐसा करने से एक व्यक्ति के कष्ट दूसरे व्यक्ति तक बड़ी आसानी से पहुंचाए जा सकते हैं. मानवीय दृष्टिकोण से तो यह सही नहीं है लेकिन जो अपने लोगों की जान बचाना चाहता है, उन्हें खुश देखना चाहता है उसे मजबूरन ऐसा करना पड़ता है. हम आपको बताते हैं कि नींबू का टोटका कब और क्यों प्रयोग में लाया जाता है.


व्यापार में होने वाले नुकसान से बचने के लिए: प्राय: ऐसा माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति व्यापार में लगातार हानि का ही सामना कर रहा है या किसी के घरेलू हालात खराब हैं तो अगर वह अपने ऊपर से सुई लगा नींबू वार कर चौराहे पर रख दे या घर के बाहर नींबू मिर्ची लटका दे तो उसके हालात सुधर सकते हैं. इसीलिए आपने कई बार चौराहों पर सुई से जुदा नींबू और घरों या दुकानों के बाहर नींबू-मिर्ची लटकी जरूर देखी होगी.

बीमारी से बचने के लिए: बहुत से लोग इस बात पर विश्वास करते हैं कि अगर सुई लगा नींबू किसी बीमार के सिर पर से 7 बार वार कर चौराहे पर रख दिया जाए और अगर उस नींबू को पार कर कोई चला जाए तो उस बीमार व्यक्ति की सारी बीमारी उस व्यक्ति को लग जाती है.




भूत बाधा को दूर करने के लिए: भारत अंधविश्वासों में यकीन करने वाला देश है. यहां कदम-कदम पर भूत-प्रेत-पिशाचों से जुड़ी कहानियां सुनाई देती हैं. लोगों का मानना है कि अगर किसी व्यक्ति पर किसी बुरी आत्मा का साया है तो उसके ऊपर से नींबू वार कर चौराहे पर रख दें. अगर कोई व्यक्ति उसे लांघकर चला जाता है या किसी गाड़ी के नीचे वह नींबू कुचला जाता है तो वह आत्मा उस व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाती है.

धन प्राप्ति के टोटके: हनुमान जी की पूजा करने वाले भक्तों को हर परेशानी से बजरंगबली बचाते हैं. बजरंगबली को लेकर कई टोटके भी हैं. कहा जाता है कि इन टोटक़ों को ‍विशेष रूप से धन प्राप्ति के लिए किया जा सकता है. इतना ही नहीं ये टोटके हर प्रकार का अनिष्ट भी दूर करते हैं.

पीपल के वृक्ष की जड़ में तेल का दीपक जला दें. फिर वापस घर आ जाएं और पीछे मुड़कर न देखें. इससे आपको धन लाभ के साथ ही हर बिगड़ा काम बन जाएगा.


ये छ: करिश्माई अक्षर आपके भाग्य को बदल सकते हैं

दरिद्रता या धन की कमी इंसान के गुण, रूप व शक्ति को लील जाती है। यही वजह है कि हर इंसान जरूरतों की पूर्ति व अभावों से बचने के लिए ज्यादा से ज्यादा धन बटोरने की कोशिश करता है। धार्मिक उपायों के जरिए ऐसी ही कोशिशों में भगवान गणेश की पूजा, बुद्धि, ज्ञान व बल द्वारा सुख-समृद्धि देने वाली मानी जाती है।


सुख-वैभव की कामनापूर्ति के लिए शास्त्रों में गणेश उत्सव के दौरान (चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक) कुछ विशेष मंत्रों से भगवान गणेश का ध्यान बहुत मंगलकारी बताया गया है। इनमें षडाक्षरी गणेश मंत्र अर्थ, यानी धन व सुख-सुविधाओं के साथ धर्म, काम व मोक्ष देने वाला भी माना गया है।

मान्यता है कि यह सिद्ध मंत्र ब्रह्मदेव ने सृष्टि रचना के लिए प्रकट हुई चतुर्थी स्वरूपा देवी को श्रीगणेश की भक्ति के लिए दिया था। जानिए यह मंत्र विशेष व पूजा उपाय  श्रीगणेश की केसरिया चंदन, अक्षत, दूर्वा, सिंदूर से पूजा व गुड़ के लड्डुओं का भोग लगाने के बाद इस गणेश मंत्र का स्मरण करें या पूर्व दिशा की ओर मुख कर पीले आसन पर बैठ करें।

अगली स्लाइड पर जानिए कौन सा है षडाक्षरी मंत्र व इसे कैसे और कितनी बार स्मरण करें -
षडाक्षरी मंत्र स्मरण हल्दी या चन्दन की माला से कम से कम 108 बार जप करें। मंत्र जप के बाद भगवान गणेश की चंदन धूप व गोघृत आरती कर वैभव व यश की कामना करें। यह सरल मंत्र है -
वक्रतुण्डाय हुम्।।

काला जादू से ज्यादा शैतानी है यह धर्म !!

अभी तक आपने ऐसे नए धर्म के बारे में सुना होगा जिसके अनुसार व्यक्ति अपनी आत्मा के बल पर अपने सभी  बुरे अनुभवों से पीछा छुड़ा सकता है। इसे साइंटोलॉजी नाम से जाना जाता है और इस नए धर्म से हॉलीवुड के ख्‍यात हीरो टॉम क्रूज को भी जुड़ा बताया जाता रहा है, लेकिन अब नया धर्म सामने आ गया है जिसे ‘शैतानी सेक्सी धर्म’ कहा जाता है।इसके संस्थापक एलिस्टर क्राउली ने खुद को विश्व का सबसे बुरा आदमी घोषित किया था। 1875 में पैदा हुए क्राउली ने खुद को ‘द ग्रेट बीस्ट, 666′ की शैली में ढाला था। यह एक ऐसा धर्म था जिसे मानने वाले गोपनीय तरीके से रहते हैं और इसके बारे में भी बहुत कम ही जाना जाता है

पर अब इस धर्म की सबसे ग्लैमरस और चर्चित प्रचारक पीचेस गेडोफ हैं, जो कहती हैं कि उनका विलीफ सिस्टम दिन-प्रतिदिन के जीवन में भी प्रयोग किया जाता है और इससे व्यक्ति को बहुत शांति मिलती है। लेकिन पीचेस गेडोफ ने जब अपनी धार्मिक मान्यताओं के बारे में ट्‍विटर पर अपने एक लाख 48 हजार सहयोगियों को बताया तो दुनिया को एक ऐसे धर्म की जानकारी मिली जो शैतानों की जीवनशैली लगती है।  चौबीस वर्षीय पीचेस ओटीओ (ओर्डो टेम्पली ओरिएंटिस) की भक्त हैं। ओटीओ उन्होंने अपनी बाईं बांह पर गुदवा भी लिया है। हालांकि उनके लिए धर्म जैसी किसी बात का पालन करना फैशन से ज्यादा नहीं है। पीचेस एक समय साइंटोलॉजिस्ट थीं, बाद में इसे छोड़कर वे यहूदी धर्म मानने लगीं, लेकिन हाल में उन्होंने इस नए धर्म को न केवल मानने की ठानी वरन इसका वे प्रचार-प्रसार भी करती हैं। अब एक निगाह ओटीओ और इसके संस्थापक एलिस्टर क्राउली के में जानें। वे इस धर्म के संस्थापक पैगम्बर थे। वे 1875 में एक सम्पन्न ब्रिटिश परिवार में पैदा हुए थे, पर उन्होंने खुद को ‘द ग्रेट बीस्ट 666′ का दर्जा दिया था। वह जादू-टोनों और गूढ़ विद्याओं को मानने वाला था। 1947 में मौत से पहले उसे इस बात का गर्व था कि वह ‘‍दुनिया का सबसे दुष्कर्मी प्राणी’ है।पीचेस एक समय साइंटोलॉजिस्ट थीं, बाद में इसे छोड़कर वे यहूदी धर्म मानने लगीं, लेकिन हाल में उन्होंने इस नए धर्म को न केवल मानने की ठानी वरन इसका वे प्रचार-प्रसार भी करती हैं।

 


हॉलीवुड की एक और हस्ती जे जेड के बारे में भी ऐसा ही कहा जाता है। रैपर जे जेड के बारे में कहा जाता है कि वे क्राउली की किताबों से संग्रहित बातों को फैलाने में यकीन रखते हैं। प्रसिद्ध गायिका रिहाना के बारे में भी कहा जाता है कि उनके कुछ वीडियोज में इनका असर दिखता है। पीजेस से जब उनके एक टि्वटर अनुयायी ने पूछा कि वह थेल्मा (क्राऊली की शिक्षाओं) के बारे में कै‍से जान सकती हैं, पीचेस ने कहा उनकी किताबें पढ़ो जो सुपर इंट्रेस्टिंग हैं।कुछ लोग इसको कारोबारी अवसरवाद भी कहते हैं क्योंकि उनका मानना है कि इस तरह की किताबें और क्रियाकलाप युवा लोगों को बहुत जल्दी प्रभावित कर सकते हैं। लेकिन इसके मानने वाले युवा नहीं वरन ऐसे लोग हैं जो क्राउली की किताबों में बताए गए धार्मिक क्रियाओं, तंत्र-मंत्र को आजमाते हैं। ब्रिटेन में ओटीओ के प्रमुख जॉन बोनर (62) का कहना है कि हम मास अपील वाले संगठन नहीं हैं। ब्रिटेन में हमसे सैकड़ों लोग जुड़े हैं और सारी दुनिया में हमारे मानने वालों की संख्‍या हजारों में हो सकती है। ईस्ट ससेक्स में रहने वाले बोनर का कहना है कि एक तरीके से आप हमें सेक्स धर्म वाले भी कह सकते हैं क्योंकि हम इसे मानते, स्वीकार करते हैं और पूजते हैं।



वो तो बस चाहता था कि उसका बेटा ठीक हो जाए…



क्या सच में उसमें शक्तियां थीं? क्या सच में वो एक जादूगर था जो इस दुनिया को तबाह कर देता और इसीलिए उन चुड़ैलों ने उसे मार डाला…? क्या उन्होंने  ऐसा कर के ठीक किया या यह उनकी सबसे बड़ी भूल थी? यह कहानी है एक ऐसे काले जादू की जिसने पूरे परिवार को ही निगल लिया… और ना जानें कितनी जानें लेना बाकी है अभी!

वो तो बस चाहता था कि उसका बेटा ठीक हो जाए…

भारत एक ऐसा देश है जहां कभी भी किसी भी समय कोई अजीबोगरीब व विचित्र घटना घट सकती है, जिसका आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते. भारत का इतिहास  साक्षी है कि भारत के कोने-कोने में अंधविश्वास व क्रूरता समाई है. आप विश्वास करें या ना करें, यहां के लोग आपको इस घेरे में डाल ही देते हैं. यहां आएदिन कोई ना कोई अंधविश्वासों की बलि चढ़ता रहता है और इसी बात का शिकार हुआ मध्य प्रदेश का रहने वाला बृजलाल चोपड़ा.

black magic

उसका बीमार बेटा ठीक नहीं हो रहा था और परिवार को ऐसा लगा कि जरूर बच्चे के ऊपर कोई काला साया मंडरा रहा है. वो उसे पास में मौजूद एक कबीले में ले गए जहां काले जादू से निजात पाया जा सकता है, लेकिन वहां जो हुआ उसे सुनकर भी रूंह कांप उठे.



वो चीखता-चिल्लाता रहा लेकिन जालिम हंसते रहे

कबीले की सरदार है पार्वती, जिसके साथियों ने ऐसा जाल बिछाया कि बृजलाल, उसकी पत्नी व उसका 10 साल का बेटा उससे बाहर ना निकल सके. बृजलाल अपने बेटे को लेकर अभी कबीले में गया ही था कि वहां मौजूद लोगों ने बृजलाल को ही एक जादूगर कह कर उसे घेर लिया. उनका कहना था कि बृजलाल एक बहुत बड़ा जादूगर है और इसका मरना इस संसार के लिए बहुत आवश्यक है.

scary

पार्वती ने अपने कबीले के लोगों को बृजलाल को मारने का आदेश दिया. उन्होंने बृजलाल को घेर लिया, उसके आस-पास नाचने लगे, किसी के हाथ में त्रिशूल था तो किसी के हाथ में तेज-तरार कुल्हाड़ी. उनमें से एक तेजी से ब्रिजलाल  की ओर बड़ा और उसने उसके हाथ काट दिए. बृजलाल चीखा, चिल्लाया, बार-बार कहता रहा कि मैं कोई जादूगर नहीं हूं, लेकिन उसकी आवाज उन सबके गाने व हंसने में दब सी गई. उन जालिमों ने बृजलाल को मिट्टी के तेल से भीगे हुए कपड़ों के चीथड़ों की मदद से जिंदा जला डाला और देखते ही देखते बृजलाल का शरीर राख में तब्दील हो गया.



क्यों की ऐसी हैवानियत?

बृजलाल को एक जादूगर कहने के बाद पार्वती ने अपने लोगों से यह कहा कि इसकी सारी शक्तियां इसके हाथों में है इसीलिए उन्होंने बिना कुछ सोचे समझे बृजलाल के दोनों हाथ काट डाले. इसके बाद ब्रिजलाल कभी भी किसी पर हावी ना हो सके और उसकी सारी शक्तियां भस्म हो जाएं, इसके लिए उन्होंने बृजलाल को जिंदा जला डाला.

Witches Burned Victim Alive In Front Of Family

यह सारा दृश्य ब्रजलाल के 10 साल के बेटे व उसकी पत्नी के सामने घटा. वे दोनों मदद की गुहार लगाते रहे, चिल्लाए, बृजलाल की जान की भीख मांगी लेकिन उन्होंने उनकी एक ना सुनी. इस सब हरकत को अंजाम देने कें बाद उन्होंने ब्रिजलाल की पत्नी सुष्मा व उसके बेटे को वहां से जाने की अनुमति दे दी लेकिन उन्हें एक चेतावनी दी कि अगर उन्होंने इस बारे में किसी से भी कुछ भी कहा तो अंजाम बहुत बुरा होगा.

नहीं बच पाया वो परिवार…

अपने पति की मौत और पूरे परिवार को खत्म सा होता देख सुष्मा रात भर पुलिस स्टेशन के चक्कर काटती रही. मां-बेटे ने पुलिस को एक-एक बात बताई कि किस तरह से उन चुड़ैलों ने बृजलाल को जिंदा भस्म कर डाला.

Witches Burned Victim Alive In Front Of Family

फिल्हाल चुड़ैलों के इस पूरे गुट को उनकी सरदार पार्वती समेत पुलिस द्वारा हिरासत में ले लिया गया है और कहा जा रहा है कि जल्द ही उन्हें सजा-ए-मौत सुनाई जा सकती है. कानून अब इस हादसे को किस तरह का मोड़ देता है यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन इस घटना ने एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सच में दुनिया में काला जादू होता है और यदि होता है तो क्या इस वजह से हर रोज किसी निर्दोश को बलि पर चढ़ना होगा? सवाल तो अनेक हैं लेकिन शायद जवाब मिलना काफी मुश्किल है.



प्राचीन काल से लेकर अब तक भारतीय समाज तंत्र विद्या, काली शक्तियों और जादू-टोने जैसी विधाओं में बहुत विश्वास करता है. तर्क विज्ञान का समाज में अपनी पहुंच बना लेने के बावजूद आज भी कई ऐसे प्रश्न हैं जिनका जवाब ना तो विज्ञान के पास है और ना ही किसी तर्क-वितर्क के जरिए ऐसी घटनाओं की वजह समझी जा सकती है. जिस देश में हमेशा से ही तंत्र साधना का महत्व रहा हो वहां कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं जो क्यों हुईं, कैसे हुईं, इनके पीछे वजह क्या है, यह सब सवाल मस्तिष्क में चोट तो करते हैं लेकिन इनका जवाब कभी कोई नहीं जान पाता. आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताएंगे जहां तंत्र-साधना से जुड़े कई ऐसे रहस्य छिपे हैं जिनका जवाब आज तक कोई नहीं ढूंढ़ पाया है.

 

देश का पहला शून्य मंदिर जिसे गुरु मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, ऐसा ही एक स्थान है जहां कई वर्षों से तंत्र साधना की जाती रही है. आपको यकीन नहीं होगा लेकिन सच यही है कि इस मंदिर का निर्माण तक सिर्फ तंत्र साधना के ही उद्देश्य से करवाया गया था. तीन मंजिला इस मंदिर का हर दरवाजा, यहां तक कि इसकी आकृति भी अष्टकोणीय है. पुरातत्व वैज्ञानिक, इतिहासकार और यहां तक कि जादू-टोने में सिद्ध व्यक्ति भी यह जानने की कोशिश में हैं कि इस मंदिर में कौन-कौन सी तांत्रिक क्रियाएं होती थीं.

 

क्षेत्रीय जानकारों का कहना है कि इस मंदिर के हर तल पर अलग-अलग देवताओं के मंदिर हैं. प्रथम तल पर गुरु वरिष्ठ, दूसरे तल पर राधा और तीसरे तल पर किसी देवता की मूर्ति नहीं है इसीलिए इसे शून्य का प्रतीक माना जाता है.


इस मंदिर की खासियत यह है कि इसमें मौजूद आठ द्वारों में से मात्र एक गुरु का था और बाकी सात सप्तपुरियों (अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, अवंतिका और पुरी) के नाम पर रखे गए थे.


बंगाल के तत्कालीन महाराज जयनारायण घोषाल ने जब सन 1814 में इस मंदिर का निर्माण करवाया था तब यह चौरासी बीघा जमीन पर फैला था लेकिन अब इसका ढांचा टूटने लगा है. योग और तंत्र साधना करने के उद्देश्य से बनाए गए ऐसे मंदिर भारत में सिर्फ दो जगहों पर ही हैं. पहला यही मंदिर जो बंगाल के हतेश्वरी में स्थित है और दूसरा दक्षिण भारत के भदलपुर में है.

 

योग साधकों और तांत्रिकों का मानना है कि इस मंदिर के तीनों तलों पर स्थित मंदिरों में सबसे ज्यादा अहमियत शून्य मंदिर का है क्योंकि शून्य को प्राप्त कर लेना ही सबसे बड़ी तपस्या है. ब्रह्मांड शून्य है, पृथ्वी शून्य है. उनका कहना है कि शून्य की साधना अद्भुत है, इसका संबंध सीधे ईश्वर पर केन्द्रित है, इसीलिए शून्य को प्राप्त कर लेने वाला ही सबसे बड़ा साधक है. तंत्र साधना करने वालों का कहना है कि कोई भी साधना तभी पूरी मानी जाती है जब आपका कोई गुरु या मार्गदर्शक हो. पहले तल पर गुरु और तीसरे तल पर शून्य के होने का यही अर्थ है कि गुरु से होती हुई यह साधना शून्य पर जाकर खत्म होती है और शून्य को प्राप्त कर लेना साधना की चरम सीमा है. यह वो अवस्था है जब हर चीज अनंत होने लगती है. मंदिर के हर तल पर अष्टकोणीय सात ऐसे खाने बने हैं जहां बैठकर प्राचीन काल में लोग तांत्रिक क्रियाएं और योग साधनाएं किया करते थे. इस मंदिर के भीतर बंगला भाषा में गुरु के शब्द भी लिखे हैं और कुछ ऐसी आकृतियां भी बनी हुई हैं जिनके पीछे के रहस्य आज तक शोध का ही एक विषय बने हुए हैं. इनके पीछे छिपी हकीकत को समझा नहीं जा पा रहा है.

 






दोस्तों की भीड़ में दुश्मनों को पहचानना मुश्किल हो जाता है. आप नहीं समझ सकते कि कब कौन आपके पीठ पीछे वार कर आपको धोखा देकर चला जाए. दोस्ती और प्यार के नाम पर दगा देने वाले भी बहुत लोग होते हैं. आपकी कोई बात किसी को कितनी बुरी लग गई और इसका बदला लेने के लिए वो किस हद तक पहुंच जाएगा आप इस बात का अंदाजा भी नहीं लगा सकते.

 


बगलामुखी, एक ऐसी तंत्र साधना है जिसके जरिए लोग वशीकरण, मारण, उच्चाटन आदि जैसी क्रियाओं को अंजाम देते हैं. अपने दुश्मन को हर तरह की हानि पहुंचाने के लिए लोग इस तंत्र साधना का प्रयोग करते हैं और तंत्र-मंत्र पर विश्वास करने वाले लोगों की मानें तो इससे बेहतर और कोई विकल्प हो भी नहीं सकता.

मरने के बाद वो उसकी लाश के साथ रहता था !!



तांत्रिक साधना करने वाले लोगों का कहना है कि मुकद्दमा जीतना हो या फिर किए गए टोने के असर को शिथिल करना हो तो बगलामुखी इसका रामबाण इलाज है. जानकारों की मानें तो बाहरी शत्रु इतना नुकसान नहीं पहुंचा सकते जितना आपके अपने साथी और संबंधी पहुंचा सकते हैं. अगर परिवार का कोई सदस्य अपने ही परिवार के सदस्य के साथ कुछ गलत कर रहा है तो भी बगलामुखी के द्वारा उस टोने के असर को पलटा जा सकता है.


कर्ण पिशाचिनी भविष्य नहीं देख सकती



बगलामुखी साधना के दौरान बरती जाने वाली सावधानियां:
1. बगलामुखी साधना के दौरान पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना अत्याधिक आवश्यक है.
2. इस क्रम में स्त्री का स्पर्श, उसके साथ किसी भी प्रकार की चर्चा या सपने में भी उसका आना पूर्णत: निषेध है. अगर आप ऐसा करते हैं तो आपकी साधना खण्डित हो जाती है.
3. किसी डरपोक व्यक्ति या बच्चे के साथ यह साधना नहीं करनी चाहिए. बगलामुखी साधना के दौरान साधक को डराती भी है. साधना के समय विचित्र आवाजें और खौफनाक आभास भी हो सकते हैं इसीलिए जिन्हें काले अंधेरों और पारलौकिक ताकतों से डर लगता है, उन्हें यह साधना नहीं करनी चाहिए.
4. साधना से पहले आपको अपने गुरू का ध्यान जरूर करना चाहिए.
5. मंत्रों का जाप शुक्ल पक्ष में ही करें. बगलामुखी साधना के लिए नवरात्रि सबसे उपयुक्त है.
6. उत्तर की ओर देखते हुए ही साधना आरंभ करें.
7. मंत्र जाप करते समय अगर आपकी आवाज अपने आप तेज हो जाए तो चिंता ना करें.
8. जब तक आप साधना कर रहे हैं तब तक इस बात की चर्चा किसी से भी ना करें.
9. साधना करते समय अपने आसपास घी और तेल के दिये जलाएं.
10. साधना करते समय आपके वस्त्र और आसन पीले रंग का होना चाहिए.


 

शिव जगत पिता हैं
तथा इस संसार की संरचना में उनकी इच्छा को मूर्त रूप देने के लिए उनकी शक्ति ही प्रकृति का रूप धारण करती है। यह शक्ति ईश्वर की प्रतिछाया बनकर महाकाली, महालक्ष्मी एवं महासरस्वती के रूप में इस सृष्टि के संचालन में प्रभु का सहयोग करती है। प्रकृति ईश्वर की माया शक्ति, जीवन शक्ति एवं नैसर्गिक गुण है। जिस प्रकार सूर्य एवं उसकी रोशनी, आग एवं उसकी प्रज्जवलन क्षमता को अलग नहीं किया जा सकता ​है उसी प्रकार प्रकृति को भी उस चैतन्य प्रभु की छवि के रूप में देखा जा सकता है।

प्रकृति शब्द का यदि संधि विच्छेद किया जाए तो प्र+कृति बनता है। प्र का अर्थ है सर्वोच्च, असाधारण एवं सर्वोत्कृष्ट एवं कृति का अर्थ है रचना। इस प्रकार प्रकृति ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट रचना है। इसे और अधिक गहराई से देखें तो प्र का अर्थ है सत्व, कृ का अर्थ है राजस एवं ति का अर्थ है तमस। अर्थात ईश्वर की वह सर्वोच्च कृति जो कि तीनों गुणों की अधिष्ठात्री एवं संचालिका है। मनुष्य को इस संसार के कालचक्र से यही शक्ति मुक्ति दिला सकती है इस शक्ति को वेदों मे महाविद्या की संज्ञा दी गई है।मनुष्य के मष्तिष्क, शरीर एवं अन्तर्मन पर इसी शक्ति का आधिपत्य है। अपने नित्य स्वरूप में यह भक्तों को कर्म फल से मुक्ति दिलाती है। संसार चक्र में घोर कष्ट पा रही जीवात्मा इसी देवी की आराधना करके सांसरिक बंधनों से मुक्ति पाकर उस परमपिता परमेश्वर की ओर अग्रसर हो सकती है।


यह शक्ति मनुष्य के अन्तर्मन मे स्थापित होकर उसकी बुद्धि, मेधा, घृती, स्मृति, लक्ष्मी, शोभा, श्रद्धा, क्षमा आदि सभी गुणों को नियंत्रित करती है।

यही देवी मनुष्य की 72 हजार नाड़ियों की स्वामिनी है। यही आध्याशक्ति विश्व के ज्ञान की प्रवर्तक एवं संचालिका है। परम पिता परमेश्वर से लेकर विश्व के कण-कण फर इसी शक्ति का आधिपत्य है। आधुनिक विज्ञान भी इस तथ्य को स्वीकारता है क्योंकि विज्ञान के अनुसार भी शक्ति के अभाव में वस्तु का कोई महत्व नहीं है। शक्ति विन्यास ही स्वयं वस्तु का स्वरूप निर्धारित करता है।

तंत्र-शास्त्र
तंत्र-शास्त्र में इसी शक्ति की आराधना की जाती है। तंत्र-शास्त्र से तात्पर्य उन गूढ़ साधनाओं से है जिनके द्वारा इस संसार को संचालित करने वाली विभिन्न दैवीय शक्तियों का आव्हान किया जाता है। तंत्र-शास्त्र में विभिन्न पूजा विधियों का इस प्रकार से प्रयोग किया जाता है जिससे वह साधक के मन, मष्तिष्क एवं व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन ला सकें। जिससे उसमें सद्गुणों का विकास हो एवं वह जीवन के परम पुरुषार्थ, धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की क्रमिक प्राप्ति कर सके।

तंत्र साधना के समय उच्चारित मंत्र, विभिन्न मुद्रायें एवं क्रियाएं अत्यंत व्यस्थित, नियमित एवं नियंत्रित तरीके से होती हैं। इसमें जरा सी भी चूक होने से परिणाम अत्यंत नकारात्मक हो सकते हैं अत: इस प्रक्रिया के समय साधक को अत्यंत सजग एवं सचेत रहने की आवश्यकता होती है।

किसी भी साधक के लिए तंत्र साधना को यंत्रवत करना असंभव है। इस प्रकार तंत्र साधना के द्वारा साधक में जागरूकता, सजगता, चेतना एवं नियमबद्दता आदि गुणों का विकास किया जाता है।

आधुनिक युग में कुछ लोगों ने तंत्र साधना का दुरुपयोग करके तंत्र साधना की विश्वसनीयता के बारे में सवाल खड़े कर दिए हैं। परंतु शास्त्रों में वर्णित तंत्र साधनाएँ इस प्रकार की साधनाओं से पूर्णतः भिन्न हैं। तंत्र में श्मशान, उजाड़ स्थान आदि को इसलिए चुना जाता है जिससे कि साधक का जीवन के अंतिम सत्य से साक्षात्कार हो सके तथा उसे ईश्वर की सार्वभौमिकता एवं जीवन की निरर्थकता का आभास हो।

इस प्रकार सच्चा तांत्रिक एक सात्विक व्यक्ति होता है एक योगी होता है जो कि ईश्वर के दैवी रूप की साधना करता है। तथा इस तंत्र साधना का उद्देश्य साधक मे सद्गुणों का विकास करना, उसे सांसारिक मोह माया से दूर करना एवं अध्यात्म की ओर अग्रसर करना है।

तंत्र मे ईष्ट का अर्थ ज्योतिष मे प्रयुक्त ईष्ट से भिन्न है। ज्योतिष मे ईष्ट का अर्थ सुकर्मों में वृद्धि एवं आशीर्वाद प्राप्त करना है। जबकि तंत्र में ईष्ट का अर्थ बुराई एवं कष्ट का अंत है। तंत्र शास्त्र की मान्यता है कि बुराई एवं कष्ट अविद्या का परिमाण है। तथा इस अविद्या, बुराई एवं कष्टों से मुक्ति शक्ति की आराधना से ही मिल सकती है।

शक्ति का शाब्दिक अर्थ है दैवीय शक्ति, उन्नति एवं बल। इस शक्ति को भगवती भी कहा जा सकता है जिसका अर्थ भी उन्नति, धन, बल एवं यश प्रदान करना है।