सफलता और समृद्धि के योग
किसी कुण्‍डली में क्‍या संभावनाएं हैं, यह ज्‍योतिष में योगों से देखा जाता है। भारतीय ज्‍योतिष में हजारों योगों का वर्णन है जो कि ग्रह, राशि और भावों इत्‍यादि के मिलने से बनते हैं। हम उन सारे योगों का वर्णन न करके, सिर्फ कुछ महत्‍वपूर्ण तथ्‍यों का वर्णन करेंगे जिससे हमें पता चलेगा कि जातक कितना सफल और समृद्ध होगा। सफतला, समृद्धि और खुशहाली को मैं 'संभावना' कहूंगा।

किसी कुण्‍डली की संभावना निम्‍न तथ्‍यों से पता लगाई जा सकती है
1- लग्‍न की शक्ति
2- चन्‍द्र की शक्ति
3- सूर्य की शक्ति
4- दशम भाव की शक्ति
5- योग

लग्‍न, सूर्य, चंद्र और दशम भाव की शक्ति पहले दिए हुए 14 नियमों के आधार पर निर्धारित की जा सकती है। योग इस प्रकार हैं -

योगकारक ग्रह
सूर्य और चंन्‍द्र को छोडकर हर ग्रह दो राशियों का स्‍वामी होता हैं। अगर किसी कुण्‍डली में कोई ग्रह एक साथ केन्‍द्र और त्रिकोण का स्‍वामी हो जाए तो उसे योगकारक ग्रह कहते हैं। योगकारक ग्रह उत्‍तम फल देते हैं और कुण्‍डली की संभावना को भी बढाते हैं।

उदाहरण कुम्‍भ लग्‍न की कुण्‍डली में शुक्र चतुर्थ भाव और नवम भाव का स्‍वामी है। चतुर्थ केन्‍द्र स्‍थान होता है और नवम त्रिकोण स्‍थान होता है अत: शुक्र उदाहरण कुण्‍डली में एक साथ केन्‍द्र और त्रिकोण का स्‍वामी होने से योगकारक हो गया है। अत: उदाहरण कुण्‍डली में शुक्र सामान्‍यत: शुभ फल देगा यदि उसपर कोई नकारात्‍मक प्रभाव नहीं है।

राजयोग
अगर कोई केन्‍द्र का स्‍वामी किसी त्रिकोण के स्‍वामी से सम्‍बन्‍ध बनाता है तो उसे राजयोग कहते हैं। राजयोग शब्‍द का प्रयोग ज्‍योतिष में कई अन्‍य योगों के लिए भी किया जाता हैं अत: केन्‍्द्र-त्रिकोण स्‍वा‍मियों के सम्‍बन्‍ध को पारा‍शरीय राजयोग भी कह दिया जाता है। दो ग्रहों के बीच राजयोग के लिए निम्‍न सम्‍बन्‍ध देखे जाते हैं -
1 युति
2 दृष्टि
3 परिवर्तन

युति और दृष्टि के बारे में हम पहले ही बात कर चुके हैं। परिवर्तन का मतलब राशि परिवर्तन से है। उदाहरण के तौर पर सूर्य अगर च्ंद्र की राशि कर्क में हो और चन्‍द्र सूर्य की राशि सिंह में हो तो इसे सूर्य और चन्‍द्र के बीच परिवर्तन सम्‍बन्‍ध कहा जाएगा।

धनयोग
एक, दो, पांच, नौ और ग्‍यारह धन प्रदायक भाव हैं। अगर इनके स्‍वामियों में युति, दृष्टि या परिवर्तन सम्‍बन्‍ध बनता है तो इस सम्‍बन्‍ध को धनयोगा कहा जाता है।

दरिद्र योग
अगर किसी भी भाव का युति, दृष्टि या परिवर्तन सम्‍बन्‍ध तीन, छ:, आठ, बारह भाव से हो जाता है तो उस भाव के कारकत्‍व नष्‍ट हो जाते हैं। अगर  तीन, छ:, आठ, बारह का यह सम्‍बन्‍ध धन प्रदायक भाव (एक, दो, पांच, नौ और ग्‍यारह) से हो जाता है तो यह दरिद्र योग कहलाता है।

जिस कुण्‍डली में जितने ज्‍यादा राजयोग और धनयोग होंगे और जितने कम दरिद्र योग होंगे वह जातक उतना ही समृद्ध होगा।
 हथेली और आपका व्यक्तित्व

सामुद्रिक ज्योतिष जिसे बोलचाल की भाषा में हस्त रेखा विज्ञान के नाम से जाना जाता है, अपने आप में समृद्ध ज्योतिषशास्त्र है। इसमें शरीर के अंग, त्वचा का रंग, हथेली पर फैली रेखाओं, चिन्हों एवं नाखूनों के साथ ही हथेली के आकार का भी अध्ययन होता है। सामु्द्रिक ज्योतिष के अनुसार हमारी हथेली का आकार भी हमारे विषय में काफी कुछ बयां कर जाती है।

सामुद्रिक ज्योतिष का जन्म आज से 5000 ई. पू. माना जाता है। सामुद्रिक ज्योतिष के सम्बन्ध में कहा जाता है कि शिव जी की प्रेरणा से कार्तिकेय ने इसकी रचना की, रचना के समय ही गणेश जी ने उसे उठाकर समुद्र में फेंक दिया फिर समु्द्र ने शिव जी के कहने से उसे वापस लौटा दिया इस तरह ज्योतिष की यह विधा सामुद्रिक ज्योतिष कहलायी। इस सदर्भ में यह भी कहा जाता है कि ऋषि समुद्र ने इसे पुष्पित और पल्लवित किया जिसके कारण भी यह सामुद्रिक ज्योतिष के नाम से विख्यात है। वर्तमान में "किरो" ने हस्तरेखा विज्ञान का प्रचार प्रसार किया।

हस्तरेखा विज्ञान के अन्तर्गत सिर्फ हाथ की रेखाएं ही नहीं बोलती हैं बल्कि नाखून, हथेली का रंग और हाथों का आकार भी काफी कुछ कहता है, हस्त ज्योतिष के इस सिद्धान्त को विज्ञान भी प्रमाणित करता है। आप खुद भी अपनी हथेली को देखकर अपने व्यक्तित्व की विशेषता को जान सकते हैं और दूसरों के व्यक्तित्व को समझ सकते हैं। लेकिन यह तभी संभव जब आप जानें कि हाथ कितने प्रकार के होते हैं और अलग अलग हाथों की क्या अलग अलग विशेषता होती है।

बहुत छोटी हथेली (Very small Palm):
सामुद्रिक ज्योतिष कहता है जिनकी हथेली बहुत छोटी होती है वे स्वार्थी स्वभाव के होते हैं, वे हर चीज़ में पहले अपना फायदा देखते हैं लेकिन दूसरों के लिए मुश्किल से ही भला सोचते हैं। अपने छोटे से फायदे के लिए ये लड़ाई झगड़ा करने के लिए भी तैयार रहते हैं। परोपकार और सामाज सेवा के प्रति इनमें उदासीनता देखी जाती है। इनकी सोच निम्न स्तर की होती है और ये किसी पर भी भरोसा नही करते।  

छोटी हथेली ( Small Palm)
हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार छोटी हथेली को भी अच्छा नहीं माना जाता है। जिनकी हथेली छोटी होती है उनके विषय में सामुद्रिक ज्योतिष कहता है कि ये व्यक्ति ख्याली पुलाव पकाने वाले होते हैं, हलांकि इनमें काफी गुण और क्षमता होती है परंतु ये अपनी क्षमता का सही उपयोग नहीं कर पाते हैं। इस तरह की हथेली वाले व्यक्ति स्वभाव से आलसी होते हैं अपने आलसपन के कारण अपने सपनो को साकार करने की दिशा में कदम नहीं बढ़ा पाते हैं। इन्हें डींगे मारने में भी काफी मज़ा आता है यानी माया के जहान में खुद भी सैर करते हैं और दूसरों को भी सैर करते हैं। अपने इस अव्यवहारिक स्वभाव के कारण जीवन के अंतिम दिनों में अफसोस के सिवा इनके पास कुछ भी नहीं रहता है।

बड़ी हथेली (Long Palm):
जिनकी हथेली बड़ी होती है उनके विषय मे यह माना जाता है कि ये अपने काम में व्यवहारिक होते हैं और अपना काम ये लगन पूर्वक करते हैं। इन्हें चतुर भी कहा जाता है क्योंकि ये होशियारी से अपना काम निकाल लेते हैं। इस तरह की हथेली वाले व्यक्ति भी भरोसा किया जा सकता है। इनमें एक यह खूबी होती है कि ये समस्या का हल ढूंढना जानते क्योंकि समस्या का कारण क्या है यह उसे पहचाना जानते हैं। समाज में ये सक्रिय रहते हैं। सामाजिक कार्यों में इनकी प्रत्यक्ष भूमिका रहती है।

बहुत बड़ी हथेली: (Very Long Palm)
यहां "अति सर्वत्र वर्जयेत" वाली कहावत चरितार्थ होती है। लम्बा हाथ होना अच्छा है लेकिन बहुत होने पर व्यक्ति में साहस की कमी होती है, इनके सामने जैसे ही कठिन स्थिति आती है ये घबरा जाते हैं और चिंता में डूब जाते हैं। किसी भी प्रकार की चुनौती आने पर ये अपने आपको लाचार स्थिति में पाते हैं। इस तरह की हथेली वाले व्यक्ति में भावुकता अधिक देखी जाती है। ये कल्पना के सागर में डूबते उतरते रहते हैं।

सामान्य हथेली (Common Palm)
सामान्य हथेली वालों के लिए हस्तरेखीय ज्योतिष कहता है कि ये सामाजिक तौर पर काफी व्यवहारिक होते हैं। ये लोगों के साथ बात चीत एवं व्यवहार का तरीका बखूबी जानते हैं। जीवन में इन्हें हलांकि काफी संघर्ष करना पड़ता है परंतु ये संघर्ष से पीछे नहीं हटते और अपनी मेहनत व क्षमताओ से कठिनाईयों पर विजय प्राप्त कर परिस्थितियों को अपनी ओर मोर लेते हैं।

चौकोर हथेली (Square Palm):
हथेली का एक प्रकार यह भी है। इस प्रकार की हथेली देखने में मुलायम और कोमल नज़र आती है लेकिन इनमें काफी गांठें होती है। दोनों हाथ में अगर समानता नहीं होती है तो इस प्रकार के हाथ वाले व्यक्ति पैसों को अहमियत नहीं देते। ये ज्ञान और बुद्धि को सबसे अधिक तरजीह देते हैं। ये सामाजिक तौर पर काफी आदरणीय होते हैं और समाज की अगुआई करते हैं। आपकी हथेली भी इस तरह की है तो आप दर्शनिक, कलाकार या मनोचिकित्सक बन सकते हैं।

मुख्य हथेली (Primary palm):
मांसल, भारी और रूखे ये मुख्य रूप से पाये जाने वाले हाथ हैं। इस तरह की हथेली वालों की दोनों हथेली में समानता नहीं रहती है। इनकी दोनो हाथों की उंगली में अंतर पाया जाता है। इस तरह के हथेली जिनकी होती है वे सभ्रांत होते हैं परंतु उनमें धन के प्रति बहुत अधिक लगाव देखा जाता है। ये काफी परिश्रमी होते हैं मेहनत में काफी पीछे नहीं हटते। इनके लिए जीवन मूल्य सिर्फ भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। ये जीवन को खाना, पीना, मस्त रहना समझते हैं। परिस्थिति अनुकूल नहीं होने पर अपनी चाहतों को पूरा करने के लिए ये अपराध जगत से भी जुड़ सकते हैं।

परिश्रमी हथेली (Labourious Palm)
परिश्रमी हाथ देखने में काफी चौड़ा होता है। इस तरह की हथेली काफी भारी होती है व इनकी हथेली पर पर्वत काफी सख्त होते हैं। इस तरह की हथेली वाले व्यक्ति खाली बैठना पसंद नहीं करते हैं। इनकी जिन्दगी में कामयाबी इनकी मेहनत के बदौलत आती है। आपकी हथेली भी इस तरह की है तो अपने अन्दर के गुण को पहचानिये और जुट जाइये मेहनत के साथ आप निश्चय ही मंजिल को पाएंगे और कामयाबी भरी जिन्दगी का लुत्फ लेंगे।

कलाकार हथेली (Philospher Palm)
कलाकार हाथ कलाकार की तरह ही नाजुक, कोमल और उनकी कला की तरह खूबसूरत होते हैं। इनकी हथेली का रंग गुलाबी होता है और उंगली के सभी पोर्स बराबार होते हैं। इनकी उंगली लम्बी और पतली होती है। इस तरह की हथेली वाले व्यक्ति कला और सौन्दर्य के दीवाने होते हैं। ये कला जगत में तो काफी प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं परंतु दुनियांदारी के मामले में पीछे रह जाते हैं।

शनि साढेसाती के तीन चरण
 Three Steps of Shani Sade Sati and you


शनि साढेसाती (Shani Sade Sati) में शनि तीन राशियों पर गोचर करते है. तीन राशियों पर शनि के गोचर को साढेसाती (Shani Sade Sati) के तीन चरण के नाम से भी जाना जाता है. अलग- अलग राशियों के लिये शनि के ये तीन चरण अलग - अलग फल देते है. शनि कि साढेसाती के नाम से ही लोग भयभीत रहते है.

जिस व्यक्ति को यह मालूम हो जाये की उसकी शनि की साढेसाती चल रही है, वह सुनकर ही व्यक्ति मानसिक दबाव में आ जाता है. आने वाले समय में होने वाली घटनाओं को लेकर तरह-तरह के विचार उसके मन में आने लगते है. 

शनि की साढेसाती को लेकर जिस प्रकार के भ्रम देखे जाते है. वास्तव में साढेसाती का रुप वैसा बिल्कुल नहीं है.  आईये शनि के चरणों को समझने का प्रयास करते है-साढेसाती चरण-फल विभिन्न राशियों के लिये
साढेसाती का प्रथम चरण (first step of Shani Sade Sati) - वृ्षभ, सिंह, धनु राशियों के लिये कष्टकारी होता है. द्वितीय चरण या मध्य चरण- मेष, कर्क, सिंह, वृ्श्चिक, मकर राशियों के लिये अनुकुल नहीं माना जाता है. व अन्तिम चरण- मिथुन, कर्क, तुला, वृ्श्चिक, मीन राशि के लिये कष्टकारी माना जाता है.
इसके अतिरिक्त तीनों चरणों के लिये शनि की साढेसाती निम्न रुप से प्रभाव डाल सकती है-प्रथम चरण First Step of Shani Sade Sati
इस चरणावधि में व्यक्ति की आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है. आय की तुलना में व्यय अधिक होते है. विचारें गये कार्य बिना बाधाओं के पूरे नहीं होते है. धन विषयों के कारण अनेक योजनाएं आरम्भ नहीं हो पाती है. अचानक से धन हानि होती है. व्यक्ति को निद्रा में कमी का रोग हो सकता है. स्वास्थय में कमी के योग भी बनते है. विदेश भ्रमण के कार्यक्रम बनकर -बिगडते रह्ते है. यह अवधि व्यक्ति की दादी के लिये विशेष कष्टकारी सिद्ध होती है. मानसिक चिन्ताओं में वृ्द्धि होना सामान्य बात हो जाती है. दांम्पय जीवन में बहुत से कठिनाई आती है. मेहनत के अनुसार लाभ नहीं मिल पाते है. 

द्वितीय चरण Second Step of Shani Sade Sati
व्यक्ति को शनि साढेसाती की इस अवधि में पारिवारिक तथा व्यवसायिक जीवन में अनेक उतार-चढाव आते है. उसे संबन्धियों से भी कष्ट होते है. व्यक्ति को अपने संबन्धियों से कष्ट प्राप्त होते है. उसे लम्बी यात्राओं पर जाना पड सकता है. घर -परिवार से दूर रहना पड सकता है. व्यक्ति के रोगों में वृ्द्धि हो सकती है. संपति से संम्बन्धित मामले परेशान कर सकते है. 

मित्रों  का सहयोग समय पर नहीं मिल पाता है. कार्यो के बार-बार बाधित होने के कारण व्यक्ति के मन में निराशा के  भाव आते है. कार्यो को पूर्ण करने के लिये सामान्य से अधिक प्रयास करने पडते है.  आर्थिक परेशानियां भी बनी रह सकती है. 

तीसरा चरण third Step of Shani Sade Sati

शनि साढेसाती के तीसरे चरण में व्यक्ति के भौतिक सुखों में कमी होती है. उसके अधिकारों में कमी होती है. आय की तुलना में व्यय अधिक होते है. स्वास्थय संबन्धी परेशानियां आती है. परिवार में शुभ कार्यो बाधित होकर पूरे होते है. वाद-विवाद के योग बनते है. संतान से विचारों में मतभेद उत्पन्न होते है. संक्षेप में यह अवधि व्यक्ति के लिये कल्याण कारी नहीं रह्ती है. जिस व्यक्ति की जन्म राशि पर शनि की साढेसाती का तीसरा चरण चल रहा हों, उस व्यक्ति को वाद-विवादों से बचके रहना चाहिए. 


 कलयुग में हनुमान को ही पूजने का नियम है
मंदिर, दर्गा, बाबा, गुरु, देवी-देवता आदि सभी जगहों पर भटकने के बाद भी कोई शांति और सुख नहीं मिलता और संकटों का जरा भी समाधान नहीं होता है। साथ ही मृत्युतुल्य कष्ट हो रहा हो तो सिर्फ हनुमान की भक्ति ही बचा सकती है। ऐसे व्यक्ति को हनुमनजी की शरण में आना ही पड़ता है, लेकिन जो पहले से ही उनकी शरण में हैं उन्हें किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता। हनुमानजी सर्वशक्तिमान और एकमात्र ऐसे देवता हैं जिनका नाम जपने से ही संकट शरीर और मन से दूर हटने शुरू हो जाते हैं।
शास्त्रों अनुसार कलयुग में हनुमानजी की भक्ति को सबसे जरूरी, प्रथम और उत्तम बताया गया है लेकिन अधिकतर जनता भटकी हुई है। वह ज्योतिष और तथाकथित बाबाओं, गुरुओं को ही अपना सबकुछ मानकर बैठी है। ऐसे भटके हुए लोगों को राम ही बचाने वाले हैं।
हनुमानजी की भक्ति सबसे सरल और जल्द ही फल प्रदान करने वाली मानी गई है। यह भक्ति जहां हमें भूत-प्रेत जैसी न दिखने वाली आपदाओं से बचाती है, वहीं यह ग्रह-नक्षत्रों के बुरे प्रभाव से भी बचाती है। जो व्यक्ति‍ प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढ़ता है उसके साथ कभी भी घटना-दुर्घटना नहीं होती।
श्रीराम के अनन्य भक्त श्रीहनुमान अपने भक्तों और धर्म के मार्ग पर चलने वाले लोगों की हर कदम पर मदद करते हैं, शर्त यह है कि 'और देवता चित्त न धरहीं।'
हनुमानजी को मनाने के लिए सबसे सरल उपाय है हनुमान चालीसा का नित्य पाठ। हनुमानजी की यह स्तुति का सबसे सरल और सुरीली है। तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा बहुत प्रभावकारी है। इसकी सभी चौपाइयां मंत्र ही हैं। जिनके निरंतर जप से ये सिद्ध हो जाती है और पवनपुत्र हनुमानजी की कृपा प्राप्त हो जाती है।
यदि आप मानसिक अशांति झेल रहे हैं, कार्य की अधिकता से मन अस्थिर बना हुआ है, घर-परिवार की कोई समस्यां सता रही है तो ऐसे में इसके पाठ से चमत्कारिक फल प्राप्त होता है, इसमें कोई शंका या संदेह नहीं है।-शतायु

गुड़, चने और चूरमे से कीजिए मनोकामनाए पूरी

हनुमानजी को प्रसन्न करने के लिए साधक कई उपाय करते हैं। कहते हैं हनुमानजी की कृपा जिस पर भी होती है, उसकी हर मनोकामना पूरी हो जाती है। आज हम आपको हनुमानजी का एक ऐसा ही अचूक और असरदार उपाय बता रहे हैं, जिसे विधि-विधान से पूर्ण करने पर हनुमानजी अपने भक्त की हर मनोकामना पूरी कर देते हैं।
ये उपाय 21 दिनों का है। इस उपाय में गुड़, चने और चूरमे से ही हनुमानजी प्रसन्न हो जाते हैं। गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित हनुमान अंक के अनुसार ये उपाय अनुभव सिद्ध है यानी इसका लाभ कई लोग ले चुके हैं। इस उपाय को करते समय कई बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। जैसे-
इन बातों का ध्यान रखें
1- ये उपाय किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के मंगलवार से शुरू कर सकते हैं परंतु इस बात का विशेष ध्यान रखें कि उस दिन चतुर्थी, नवमी व चतुर्दशी तिथि नहीं होना चाहिए।
2- मृत्यु सूतक या जन्म सूतक के दौरान भी यह उपाय शुरू नहीं करना चाहिए। यदि उपाय के दौरान ऐसा कोई संयोग आ जाए तो किसी विद्वान ब्राह्मण के द्वारा ये उपाय पूर्ण करवाना चाहिए, बीच में नहीं छोडऩा चाहिए।
3- पुरुषों के अलावा महिलाएं भी ये उपाय कर सकती हैं, लेकिन केवल वे ही महिलाएं ये उपाय कर सकती हैं, जिसका प्रौढ़ावस्था के बाद प्राकृतिक रूप से मासिक धर्म सदा के लिए बंद हो चुका हो।
4- उपाय के दौरान क्षौर कर्म (दाढ़ी बनवाना, नाखून काटना आदि) नहीं करना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए सात्विक आहार ही ग्रहण करना चाहिए। एक ही समय भोजन करें तो अति उत्तम रहेगा।
इस प्रकार करें उपाय
उपाय प्रारंभ करने के लिए जिस मंगलवार का चयन करें, उसके पहले दिन सोमवार को सवा पाव अच्छा गुड़, थोड़े से भूने चने और सवा पाव गाय के शुद्ध घी का प्रबंध कर लें। गुड़ के छोटे-छोटे 21 टुकड़े कर लें। साफ रूई लेकर इसकी 22 फूल बत्तियां बनाकर घी में भिगो दें। इन सभी वस्तुओं को अलग-अलग साफ बर्तनों में लेकर किसी स्वच्छ स्थान पर रख दें।
साथ ही माचिस और एक छोटा बर्तन व छन्नी आदि, जिसमें रोज ये वस्तुएं आसानी से ले जाई सकें, भी रख दें। ये उपाय करने के लिए अब हनुमान के किसी ऐसे मंदिर का चयन करें, जहां अधिक भीड़ न आती हो और जो एकांत में हो।
जिस मंगलवार से उपाय शुरू करना हो, उस दिन ब्रह्म मुहूर्त से पहले उठ जाएं और स्नान आदि कर स्वच्छ वस्त्र पहन लें। माथे पर रोली या चंदन का तिलक लगाएं। इसके बाद एक साफ बर्तन में एक गुड़ की डली, 11 चने, एक घी की बत्ती और माचिस लेकर साफ कपड़े से इस ढंक लें। अब नंगे पैर ही हनुमानजी के मंदिर की ओर जाएं। घर से निकलने से लेकर रास्ते में या मंदिर में किसी से कोई बात न करें। और न ही पीछे पलटकर या इधर-उधर देखें।
मंदिर पहुंचने के बाद हनुमानजी की मूर्ति के सामने मौन धारण किए हुए ही सबसे पहले घी की बत्ती जलाएं। इसके बाद 11 चने और 1 गुड़ की डली हनुमानजी के सामने रखकर साष्टांग प्रणाम कर अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए मन ही मन श्रद्धा व विश्वास से प्रार्थना करें फिर श्री हनुमानचालीसा का पाठ भी मौन रहकर ही करें।
अब मंदिर से जाने से लेकर घर पहुंचने तक न तो पीछे पलटकर या इधर-उधर देखें और न ही किसी से बात करें। घर पहुंचने के बाद यह पूरी सामग्री उचित स्थान रखकर 7 बार राम-राम बोलकर ही अपना मौन भंग करें। रात में सोने से पहले 11 बार श्री हनुमानचालीसा का पाठ करें व अपनी मनोकामना सिद्धि के लिए प्रार्थना करें। ये प्रक्रिया लगातार 21 दिन तक करें।
22 वे दिन मंगलवार को सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर सवा किलो आटे का एक रोट बनाकर गाय के गोबर से बने उपले में इसे पका लें। यदि सवा किलो का एक रोट न बना सकें तो 5 रोटियां बनाकर सेक लें। अब इसमें आवश्यकतानुसार गाय का शुद्ध घी, और गुड़ मिलाकर उसका चूरमा बना लें। 21 डलियों के बाद जो गुड़ बचा हो, उसे भी चूरमे में मिला दें।
इस चूरमे को थाली में रखकर बचे हुए सारे चने व 22वीं अंतिम बत्ती लेकर प्रतिदिन की तरह ही मौन धारण कर, बिना आगे-पीछे देखे मंदिर जाएं। फिर हनुमानजी की मूर्ति के सामने बत्ती जलाकर चने एवं चूरमे का भोग लगाएं। अब एक छोटे से बर्तन में थोड़ा से चूरमा लेकर हनुमानजी के सामने रख दें और शेष अपने साथ ले आएं। घर पहुंचने के बाद ही मौन भंग करें। जो भी यह प्रयोग करे वह उस दिन दोनों समय सिर्फ उसी चूरमे का भोजन ग्रहण करे। शेष चूरमे को प्रसाद के रूप में बांट दें।
ये उपाय विधि पूर्वक करने से श्रीहनुमानजी की कृपा से साधक की हर मनोकामना पूरी हो जाती है।
हनुमान चालीसा की 7 चौपाइयां, जानिए इनके जप से क्या होता है
धर्म डेस्क |
उज्जैन। हनुमानजी को मनाने और उनकी कृपा प्राप्त करने का सबसे आसान उपाय है हनुमान चालीसा का पाठ करना। हनुमान चालीसा बहुत ही सरल और मन को शांति प्रदान करने वाली स्तुति है।
 जो लोग धन अभाव से ग्रस्त हैं या घर-परिवार में परेशानियां चल रही हैं या ऑफिस में समस्याएं आ रही हैं या समाज में सम्मान नहीं मिल रहा है या स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हैं तो इन्हें दूर करने के लिए हनुमान चालीसा का जप करना चाहिए। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार हनुमान चालीसा के जप से कुछ ही समय में सभी परेशानियां दूर हो सकती हैं।
 यहां जानिए हनुमान चालीसा की सात चौपाइयों का अर्थ और इनके जप से कौन-कौन सी परेशानियां दूर होती है...
 जो लोग मस्तिष्क से संबंधित कार्य में लगे रहते हैं और मानसिक तनाव का सामना करते हैं तो रोज रात को सोने से पहले हनुमान चालीसा का जप करते हुए ध्यान करें।
यदि आप पूरी हनुमान चालीसा का जप नहीं कर सकते हैं तो इन पंक्तियों का जप कम से कम 108 बार करें...
 बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरो पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहू कलेश विकार।।
 इस पंक्ति में हनुमान से यही प्रार्थना की गई है कि हे प्रभु मैं खुद को बुद्धि हीन मानकर आपका ध्यान करता हूं। कृपा करें और मुझे शक्ति, बुद्धि, विद्या दीजिए। मेरे सभी कष्ट-क्लेश दूर कीजिए। इसके नियमित जप मानसिक शांति मिलती है।
बुरे सपनों और डर से बचने के लिए
 जिन लोगों को बुरे सपने आते हैं, सोते समय डर लगता हैं, उन्हें सोने से पहले इन पंक्तियों का जप करना चाहिए...
भूत-पिशाच निकट नहीं आवे।
महाबीर जब नाम सुनावे।।
इस पंक्ति के माध्यम से भक्त द्वारा हनुमान से भूत-पिशाच आदि के डर से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की जाती है। सोने से पहले जो भी व्यक्ति इस पंक्ति का जप पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ करता है, उसे न तो बुरे सपने आते हैं और न ही कोई भय सताता है।
  बीमारियों से बचने के लिए
 यदि कोई व्यक्ति भयंकर बीमारी से ग्रस्त है और दवाओं का असर भी ठीक से नहीं हो पा रहा है तो सोने से पहले इस पंक्ति का जप करना चाहिए...
नासे रोग हरे सब पीरा।
जो सुमिरे हनुमंत बलबीरा।।
इस पंक्ति से हम बजरंग बली से सभी प्रकार रोगों और पीड़ाओं से मुक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। जो भी बीमार व्यक्ति इन पंक्तियों का जप करके सोता है, उसकी बीमारी जल्दी ठीक हो जाती है। ध्यान रखें इस उपाय के साथ ही डॉक्टर्स द्वारा बताई गई सावधानियों का ध्यान रखें, दवाइयां समय पर लेते रहें।
मान-सम्मान पाने के लिए
 यदि कोई व्यक्ति सर्वगुण संपन्न बनना चाहता है और घर-परिवार, समाज में वर्चस्व बनाना चाहता है, मान-सम्मान पाना चाहता है तो उसे सोने से पहले इस पंक्ति का जप करना चाहिए...
 अष्ट-सिद्धि नवनिधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
 इस पंक्ति के अनुसार हनुमानजी अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों के दाता है जो कि उन्हें माता सीता ने प्रदान की है। जिन लोगों के पास ये सिद्धियां और निधियां आ जाती हैं, वे समाज में और घर-परिवार में मान-सम्मान, प्रसिद्धि पाते हैं। इस पंक्ति के जप से हनुमानजी भक्त पर अपनी कृपा बरसाते हैं और दुख दूर करते हैं। मान-सम्मान पाने के लिए स्वयं हमें भी सही प्रयास करने चाहिए।
 बुरे विचारों से मुक्ति के लिए
 महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
 यदि कोई व्यक्ति हनुमान चालीसा की इस पंक्ति का जप करता है तो उसे सुबुद्धि प्राप्त होती है। इस पंक्ति का जप करने वाले लोगों के कुविचार नष्ट होते हैं और सुविचार बनने लगते हैं। बुराई से ध्यान हटता है और अच्छाई की ओर मन लगता है।
 इस पंक्ति का अर्थ यह है कि बजरंगबली महावीर हैं और हनुमानजी कुमति को निवारते हैं यानी कुमति को दूर करते हैं। बजरंग बली सुमति यानी अच्छे विचारों को बढ़ाते हैं।
शत्रुओं पर विजय पाने के लिए
 भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्रजी के काज संवारे।।
 जब आप शत्रुओं से परेशान हो जाएं और कोई रास्ता दिखाई न दे तो हनुमान चालीसा की इस चौपाई का कम से कम 108 बार जप करें। यदि एकाग्रता और भक्ति के साथ हनुमान चालीसा की सिर्फ इस पंक्ति का जप किया जाए तो शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। श्रीराम की कृपा प्राप्त होती है।
 इस पंक्ति का अर्थ यह है कि श्रीराम और रावण के बीच हुए युद्ध में हनुमानजी ने भीम रूप यानी विशाल रूप धारण किया था। इसी भीम रूप से असुरों-राक्षसों का संहार किया। श्रीराम के काम पूर्ण करने में हनुमानजी ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। जिससे श्रीराम के सभी काम संवर गए।
  विद्या धन पाने के लिए
 बिद्यबान गुनी अति चातुर।
रामकाज करीबे को आतुर।।

यदि किसी व्यक्ति को विद्या धन चाहिए तो उसे इस पंक्ति का विशेष रूप से जप करना चाहिए। इस पंक्ति के जप से हमें विद्या और चतुराई प्राप्त होती है। इसके साथ ही हमारे हृदय में श्रीराम की भक्ति भी बढ़ती है।
 इस चौपाई का अर्थ है कि हनुमानजी विद्यावान और गुणवान हैं। हनुमानजी बहुत चतुर भी हैं। वे सदैव ही श्रीराम सेवा करने के लिए तत्पर रहते हैं। जो भी व्यक्ति इस चौपाई का जप करता है, उसे हनुमानजी से विद्या, गुण, चतुराई के साथ ही, श्रीराम की भक्ति प्राप्त होती है।
हनुमान जयंती के दिव्य और अचूक टोटके


हनुमान जयंती के टोटके विशेष फल प्रदान करते हैं। हनुमान जयंती का दिन हनुमानजी और मंगल देवता की विशेष पूजा का दिन है। यह टोटके हनुमान जयंती से आरंभ कर प्रति मंगलवार को करने से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
इस युग में हनुमानजी की पूजा सबसे जल्दी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली मानी गई है। 
* मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति की सेवा हनुमान जयंती के दिन और बाद में महीने में किसी भी एक मंगलवार को करने से आपका मानसिक तनाव हमेशा के लिए दूर हो जाएगा।
* हनुमान जयंती पर और बाद में साल में एक बार किसी मंगलवार को अपने खून का दान करने से आप हमेशा दुर्घटनाओं से बचें रहेंगे।
* 'ॐ क्रां क्रीं क्रों स: भौमाय नम:' मंत्र का एक माला जाप हनुमान जयंती व मंगलवार को करना शुभ होता है।
* 5 देसी घी के रोट का भोग हनुमान जयंती पर लगाने से दुश्मनों से मुक्ति मिलती है।
* व्यापार में वृद्धि के लिए हनुमान जयंती को सिंदूरी रंग का लंगोट हनुमानजी को पहनाइए।


* हनुमान जयंती पर मंदिर की छत पर लगाइए लाल झंडा और आकस्मिक संकटों से मुक्ति पाइए।
* तेज और शक्ति बढ़ाने के लिए हनुमान जयंती के दिन हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, सुंदरकांड, रामायण, राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करें।



  हनुमानजी का यह उपाय बचाता है शनि से
ज्योतिष के अनुसार शनि को सबसे क्रूर देवता माना गया है। इन्हें न्यायाधीश का पद प्राप्त है। इसी वजह से इस ग्रह का स्वभाव क्रूर है कि यह व्यक्ति के अच्छे और बुरे कर्मों का वैसा फल प्रदान करता है। साथ ही यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि अशुभ स्थिति में हो तो उसे कई प्रकार के बुरे प्रभाव झेलना पड़ते हैं और जीवन में छोटी-छोटी सफलताओं के लिए भी कड़ी मेहनत करना पड़ती है।
शनि देव के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए ज्योतिष में कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं। इन्हें अपनाने से शुभ परिणाम प्राप्त होने लगते हैं। शनि के कोप से बचने के लिए हनुमानजी की भक्ति भी काफी सटीक उपाय है। हनुमानजी के भक्तों को शनिदेव से किसी प्रकार का कोई भय नहीं रहता है।
यदि आप शनि के बुरे प्रभावों से जल्द मुक्ति पाना चाहते हैं तो शनिवार के दिन से प्रतिदिन किसी भी हनुमान मंदिर में जाएं। हनुमानजी के सामने तेल का दीपक लगाएं और दीपक में 5 दाने काले उड़द के डालें।
यह उपाय आपको प्रतिदिन करना है। इससे बहुत ही जल्द आपकी कई समस्याओं का नाश हो जाएगा। ध्यान रहे इस उपाय के साथ ही आपको अपनी ओर से प्रयास करने होंगे। हनुमानजी की उपासना करने वाले भक्तों को सभी प्रकार के अधार्मिक कृत्यों से बचना चाहिए। ॐ हं हनुमंतये नम: मंत्र का जप करें। 
* हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट् का रुद्राक्ष की माला से जप करें। * राम-राम नाम मंत्र का 108 बार जप करें। 
* हनुमान को नारियल, धूप, दीप, सिंदूर अर्पित‍ करें। 
* हनुमान अष्टमी के दिन हनुमान चालीसा का पाठ करें। 
* राम रक्षा स्त्रोत, बजरंगबाण, हनुमान अष्टक का पाठ करें।
* हनुमान आरती, हनुमत स्तवन, राम वन्दना, राम स्तुति, संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ करें। 
* ‍परिवार सहित मंदिर में जाकर मंगलकारी सुंदरकांड पाठ करें।
* हनुमान को चमेली का तेल, सिंदूर का चोला चढ़ाएं। 
* गुड-चने और आटे से निर्मित प्रसाद वितरित करें। 
* श्रद्धानुसार भंडारे का आयोजन कराएं। 
मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान म‍ंदिर में जाकर रामभक्त हनुमान का गुणगान करें और उनसे अपने पापों के लिए क्षमायाचना करें। 








     हनुमान चालीसा के चमत्कार जानेंगे तो आप भी रटेंगे इसे



त्रेता युग हो या द्वापर युग हो या कलियुग हो, हर युग में हनुमानजी असंभव काम को भी संभव कर देते हैं। जो भी व्यक्ति इनकी पूजा करता है, ध्यान करता है उसके जीवन में सभी समस्याएं निश्चित ही समाप्त हो जाती हैं। हनुमानजी को प्रसन्न को करने का सर्वाधिक लोकप्रिय उपाय है हनुमान चालीसा का पाठ। यहां जानिए हनुमान चालीसा की एक पंक्ति या लाइन के चमत्कारी प्रभाव से जुड़ी खास बातें..हनुमान चालीसा में चालीसा दोहे होते हैं और इन दोहों की हर एक पंक्ति का चमत्कारी असर होता है। इन चालीस पंक्तियों में सबसे अधिक लोकप्रिय पंक्ति है: भूतपिशाच निकट नहीं आवे। महाबीर जब नाम सुनावे। इस पंक्ति के जप से भक्त के सभी प्रकार के डर दूर हो जाते हैं और मन को शांति मिलती है। इसके साथ ही इस पंक्ति के जप से कई अन्य लाभ भी प्राप्त होते हैंभूतपिशाच निकट नहीं आवे। महाबीर जब नाम सुनावे। इस पंक्ति का अर्थ इस प्रकार है- जो व्यक्ति महावीर (हनुमान) का नाम जपता है तो उसके आसपास भूत-पिशाच नहीं भटकते। मुख्य रूप से यही माना जाता है कि इस पंक्ति से भूत बाधा और बुरी नजर के दोष दूर होते हैं।यह हनुमान चालीसा की एक लोकप्रिय पंक्ति है। लोग वर्षों से लोग इसे मंत्र के रूप में जपते हैं। बच्चों को तो विशेषकर ये पंक्तियां सिखाई जाती हैं। गोस्वामी तुलसीदासजी ने ये पंक्तियां इसलिए लिखी थीं कि मनुष्य निर्भय हो जाए। आज भी जब हम इस पंक्ति को जपते हैं तो हमारे सभी प्रकार के डर दूर हो जाते हैंबचपन से ही हमें सिखाया गया है कि अगर कभी भी मन अशांत लगे या फिर किसी चीज से डर लगे तो, हनुमान चालीसा पढ़ो। ऐसा करने से मन शांत होता है और डर भी नहीं लगता। हिंदू धर्म में हनुमान चालीसा का बड़ा ही महत्‍व है। हनुमान चालीसा पढ़ने से शनि ग्रह और साढे़ साती का प्रभाव कम होता है।
हनुमान जी राम जी के परम भक्त हुए हैं। प्रत्येक व्यक्ति के अंदर हनुमान जी जैसी सेवा-भक्ति विद्यमान है। हनुमान-चालीसा एक ऐसी कृति है, जो हनुमान जी के माध्यम से व्यक्ति को उसके अंदर विद्यमान गुणों का बोध कराती है। इसके पाठ और मनन करने से बल बुद्धि जागृत होती है। हनुमान-चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति खुद अपनी शक्ति, भक्ति और कर्तव्यों का आंकलन कर सकता हैहनुमान चालीसा का पाठ पढ़ने का लाभ- 1. बुरी आत्‍माओं को भगाए: हनुमान जी अत्‍यंत बलशाली थे और वह किसी से नहीं डरते थे। हनुमान जी को भगवान माना जाता है और वे हर बुरी आत्‍माओं का नाश कर के लोगों को उससे मुक्‍ती दिलाते हैं। जिन लोगों को रात मे डर लगता है या फिर डरावने विचार मन में आते रहते हैं, उन्‍हें रोज हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिये। 2. साढे़ साती का प्रभाव कम करे: हनुमान चालीसा पढ़ कर आप शनि देव को खुश कर सकते हैं और साढे साती का प्रभाव कम करने में सफल हो सकते हैं। कहानी के मुताबिक हनुमान जी ने शनी देव की जान की रक्षा की थी, और फिर शनि देव ने खुश हो कर यह बोला था कि वह आज के बाद से किसी भी हनुमान भक्‍त का कोई नुकसान नहीं करेगें।3. पाप से मुक्‍ती दिलाए: हम कभी ना कभी जान बूझ कर या फिर अनजाने में ही गल्‍तियां कर बैठते हैं। लेकिन आप उसकी माफी हनुमान चालीसा पढ़ कर मांग सकते हैं। रात के समय हनुमान चालीसा को 8 बार पढ़ने से आप सभी प्रकार के पाप से मुक्‍त हो सकते हैं। 4. बाधा हटाए: जो भी इंसान हनुमान चालीसा को रात में पढे़गा उसे हनुमान जी स्‍वंय आ कर सुरक्षा प्रदान करेगें
 रत्न है हनुमान चालीसा

हनुमान जी राम जी के परम भक्त हुए हैं। प्रत्येक व्यक्ति के अंदर हनुमान जी जैसी सेवा-भक्ति विद्यमान है। हनुमान-चालीसा एक ऐसी कृति है, जो हनुमान जी के माध्यम से व्यक्ति को उसके अंदर विद्यमान गुणों का बोध कराती है। इसके पाठ और मनन करने से बल बुद्धि जागृत होती है। हनुमान-चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति खुद अपनी शक्ति, भक्ति और कर्तव्यों का आंकलन कर सकता है। हनुमान चालीसा का एक एक दोहा, चौपाई हमें कुछ न कुछ सिखाता है। 
रामभक्त हनुमानजी धन-संपदा से संबंधित नौ निधियों के दाता



हिन्दू धर्मग्रंथों में 9 निधियों का विस्तार से जिक्र मिलता है। कहा जाता है कि धन के बिना जीवन के किसी भी आयाम को सार्थक रूप देना संभव नहीं हो पाता है। कहा भी गया है कि 'पहला सुख निरोगी काया/ दूजा सुख घर में हो माया', इसलिए धन यानी लक्ष्मी को धर्म के बाद दूसरा स्थान दिया गया है।रामभक्त हनुमानजी को अष्ट सिद्धि नौनिधि का दाता माना गया है। दाता अर्थात देने वाला। हनुमान के भक्त को जहां अष्ट सिद्धियां प्राप्त होती हैं वही श्रेष्ठ और सात्विक निधि का वरदान भी मिलता है। 

हर व्यक्ति के थोड़ा-सा निष्ठापूर्ण परिश्रम करने से, साधना करने से कुछ न कुछ निधियां उसे प्राप्त हो ही जाती हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को धन-संपन्न होना ही चाहिए जिसके लिए हर व्यक्ति प्रयत्नशील भी रहता है। नौ निधियों का संबंध मुख्यतः संपदा से ही है। संपदा में चल और अचल संपत्ति होती है।


प्रत्येक व्यक्ति के धन प्रा‍प्ति के साधन अलग-अलग होते हैं और उनका धन कमाने का उद्देश्य भी अलग-अलग होता है। धन कमाने के 3 तरीके हैं- सात्विक, राजसिक और तामसिक। सात्विक तरीके से कमाया गया धन सात्विक फल देता है और तामसिक तरीके से कमाया हुआ तामसिक। हालांकि यहां पर निम्न निधियों का संबंध कमाने के तरीके से नहीं है। तो क्या हैं ये नौ निधियां? और इनके नाम क्या हैंनव निधियां : 1. पद्म निधि, 2. महापद्म निधि, 3. नील निधि, 4. मुकुंद निधि, 5. नंद निधि, 6. मकर निधि, 7. कच्छप निधि, 8. शंख निधि और 9. खर्व या मिश्र निधि। माना जाता है कि नव निधियों में केवल खर्व निधि को छोड़कर शेष 8 निधियां पद्मिनी नामक विद्या के सिद्ध होने पर प्राप्त हो जाती हैं, परंतु इन्हें प्राप्त करना इतना भी सरल नहीं है।

  1.  क्या करें जब घर में हो नकारात्मक ऊर्जा                 


हम जिस स्थान पर रहते हैं, उसे वास्तु कहते हैं। इसलिए जिस जगह रहते हैं, उस मकान में कौन-सा दोष है, जिसके कारण हम दुःख-तकलीफ उठाते हैं, इसे स्वयं नहीं जान सकते। हमें यह भी पता नहीं रहता कि उस घर में नकारात्मक ऊर्जा है या सकारात्मक। किस स्थान पर क्या दोष है, लेकिन यहां पर कुछ सटीक वास्तुदोष निवारण के उपाय दिए जा रहे हैं, जिसके प्रयोग से हम आप सभी लाभान्वित होंगे। 
ईशान अर्थात ई-ईश्वर, शान-स्थान। इस स्थान पर भगवान का मंदिर होना चाहिए एवं इस कोण में जल भी होना चाहिए। यदि इस दिशा में रसोई घर हो या गैस की टंकी रखी हो तो वास्तुदोष होगा। अतः इसे तुरंत हटाकर पूजा स्थान बनाना चाहिए या फिर इस स्थान पर जल रखना चाहिए।

पूर्व दिशा में बाथरूम शुभ रहता है। खाना बनाने वाला स्थान सदैव पूर्व अग्निकोण में होना चाहिए।

भोजन करते वक्त दक्षिण में मुंह करके नहीं बैठना चाहिए।

शयन कक्ष प्रमुख व्यक्तियों का नैऋत्य कोण में होना चाहिए। बच्चों को वायण्य कोण में रखना चाहिए।

शयनकक्ष में सोते समय सिर उत्तर में, पैर दक्षिण में कभी न करें।

अग्निकोण में सोने से पति-पत्नी में वैमनस्यता रहकर व्यर्थ धन व्यय होता है।

ईशान में सोने से बीमारी होती है।

पश्चिम दिशा की ओर पैर रखकर सोने से आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है। 

उत्तर की ओर पैर रखकर सोने से धन की वृद्धि होती है एवं उम्र बढ़ती है। 

बेडरूम में टेबल गोल होना चाहिए।

बीम के नीचे व कालम के सामने नहीं सोना चाहिए।

बच्चों के बेडरूम में कांच नहीं लगाना चाहिए।

मिट्टी और धातु की वस्तुएं अधिक होना चाहिए।

ट्यूबलाइट की जगह लैम्प होना चाहिए।

फेंगशुई के अनुसार घर का मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व व अग्नि कोण के द्वार का रंग सदैव हरा या ब्ल्यू रखना चाहिए। 

दक्षिण दिशा के प्रवेश द्वार का रंग हरा, लाल, बैंगनी, केसरिया होना चाहिए। नैऋत्य और ईशान कोण का प्रवेश द्वार हरे रंग का या पीला केसरी या बैंगनी होना चाहिए। पश्चिम और वायव्य दिशा का प्रवेश द्वार सफेद या सुनहरा होना चाहिए। 

उत्तर दिशा का प्रवेश द्वार आसमानी सुनहरा या काला होना चाहिए।





मार्कण्डेय पुराण में ब्रह्माजी ने मनुष्यों के रक्षार्थ परमगोपनीय साधन, कल्याणकारी देवी कवच एवं परम पवित्र उपाय संपूर्ण प्राणियों को बताया, जो देवी की नौ मूर्तियां-स्वरूप हैं, जिन्हें 'नवदुर्गा' कहा जाता है, उनकी आराधना आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी तक की जाती है। 

श्री मनोरथ सिद्धि के लिए किया जाता है, क्योंकि श्री दुर्गा सप्तशती दैत्यों के संहार की शौर्य गाथा से अधिक कर्म, भक्ति एवं ज्ञान की त्रिवेणी हैं। यह श्री मार्कण्डेय पुराण का अंश है। यह देवी महात्म्य धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्रदान करने में सक्षम है। सप्तशती में कुछ ऐसे भी स्रोत एवं मंत्र हैं, जिनके विधिवत पारायण से इच्छित मनोकामना की पूर्ति होती है।