सर विलियम बैवरीज के अनुसार ‘‘संसार में पाँच आर्थिक राक्षस मानव जाति को ग्रसित करन के लिए तैयार हैं- निर्धनता, अज्ञानता, गन्दगी, बीमारी और बेरा जगारी, परन्तु इनमें बेरा जगारी सबस भयंकर है।’’ बेरोजगारी का अर्थ है, काम करन या ग्य एवं काम करने के इच्छुक व्यक्तिया ं के लिए काम का अभाव। कोई भी व्यक्ति ब रोजगार तब कहलायेगा, जबकि वह काम करने के या ग्य है तथा काम करना चाहता है, किन्तु उसे काम नही मिलता। अर्थात् जो शारीरिक व मानसिक दृष्टि से काम करने की क्षमता रखता है एव काम करना चाहता है परन्तु उसे कार्य नहीं मिलता 187 अथवा काम से अलग होने के लिए बाध्य किया जाता है। वर्तमान में बेरोजगारी की समस्या विश्व व्यापी समस्या है, किन्तु यहाँ भारत के संदर्भ में विचार करें तो पाते हैं कि भारत में बेरोजगारी विभिन्न रूपों में पायी जाती है। जब काम ढूँढने पर भी लोगों को काम नहीं मिलता है तो ऐसी स्थिति को खुली बेरोजगारी कहते हैं। व्यवसाय में नियुक्त ऐसी जन शक्ति के कुछ भाग को, जब उस क्षेत्र से हटाकर किसी अन्य व्यवसाय में लगा दिया जाता है तो भी उससे व्यवसाय के कुल उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इस प्रकार की बेरोजगारी को अदृश्य बेरोजगारी कहते हैं। जब किसी व्यक्ति को वर्ष के किसी विशिष्ट समय के लिए रोजगार मिले और वह शेष अवधि के लिए बेरोजगार बैठा रहे तो वह मौसमी बेरोजगारी कहलाती है। मंदी के दिनों में प्रभावपूर्ण माँग में कमी के कारण जो बेरोजगारी फैलती है, उसे चक्रीय बेरोजगारी कहते हैं। इनके अतिरिक्त अस्थिर बेरोजगारी, शिक्षित बेरोजगारी तथा तकनीकी बेरोजगारी भी भारत में देखी जा सकती है। जनसंख्या की वृद्धि को भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख कारण माना जाता है। देश में प्रतिवर्ष जिस दर से जनसंख्या बढ़ रही है, पर रोजगार के अवसर उसी अनुपात में नहीं बढ़ रहे हैं। यद्यपि भारत एक कृषि प्रधान देश है तथापि भारतीय कृषि के पिछड़ेपन के कारण अतिरिक्त रोजगार के अवसरों का सृजन बहुत कम है। साथ ही भारत के विविध प्राकृतिक साधन अभी तक अविकसित होने से कृषि एवम् औद्योगिक विकास धीमी गति से हो रहा है। पारिवारिक और सामाजिक कारणों के कारण लोग अपना निवास छोड़कर अन्यत्र जाना पसंद नहीं करते जिससे भारतीय श्रम भी गतिहीनता का शिकार हो गया है। दरिद्रता और बेरोजगारी का तो मानो चोली दामन का साथ है। एक व्यक्ति गरीब है क्योंकि वह बेरोजगार है तथा वह बेरोजगार है इसलिए गरीब है। वर्तमान दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली भी विद्यार्थियों को रचनात्मक कार्यौं में लगाने, स्वावलम्बी बनाने तथा आत्मविश्वास पैदा करने में असफल रही है। फलतः आज पढ़ा लिखा व्यक्ति रोजगार के लिए मारा-मारा फिर रहा है। भारत में माँग व प्रशिक्षण की सुविधाओं में समन्वय के अभाव में कई विभागों में प्रशिक्षित श्रमिकों की कमी है। उक्त कारणों के अतिरिक्त भारत में विद्युत की कमी, परिवहन की असुविधा, कच्चा माल तथा औद्योगिक अशान्ति के कारण नये उद्योग स्थापित नहीं हो रहे हैं, वहीं उत्पादन में तकनीकी विधियों को लागू करने से भी बेरोजगारी में वृद्धि हो रही है। हस्त व लघु उद्योगों की अवनति, त्रुटिपूर्ण नियोजन, यन्त्रीकरण एवं अभिनवीकरण, स्त्रियों द्वारा नौकरी करना, विदेशों से भारतीयों का आगमन आदि कारण भी बेरोजगारी समस्या के लिए उत्तरदायी हैं। बेरोजगारी की समस्या समाज में आज अत्यन्त भयंकर एवं गम्भीर समस्या बन गयी है। देश का शिक्षित एवं बेरोजगार युवक अपने आक्रोश की अभिव्यक्ति हड़तालें करने, बसें जलाने एवं राष्ट्रीय सम्पत्ति को क्षति पहुँचाने में कर रहा है वहीं कई बार वह कुंठित हो आत्महत्या जैसा भयंकर कुकृत्य कर बैठता है। कहते हैं खाली दिमाग शैतान का घरकहावत को हमारे युवक चरितार्थ कर रहे हैं। सच भी है मरता क्या नहीं करता, आवश्यकता सब पापों की जड़ है, अतः वह चोरी, डकैती, अपहरण, तस्करी, आतंकवादी गतिविधियों में सक्रिय हो रहा है। देश की जनशक्ति का सदुपयोग नहीं हो रहा है, फलतः आर्थिक ढाँचा चरमरा रहा है। भारत जैसे विकासशील देश को अपनी बेरोजगारी के उन्मूलन हेतु सर्वप्रथम जनसंख्या नियन्त्रण कार्यक्रम को हाथ में लेकर परिवार नियोजन, महिला शिक्षा, शिशु स्वास्थ्य के कार्य अपनाने होंगे। कृषि विकास के लिए शोध गति से विस्तार एवं कृषि में उन्नत बीजों को अपनाना होगा। नियोजन की प्रभावी नीति, पिछड़े क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना, कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास किया 188 जाना चाहिए तथा उन्हें कच्चा माल, औजार, लाइस स व अन्य आधार भूत सुविधाएँ उपलब्ध करानी चाहिए। सरकार द्वारा विद्युत आपूर्ति, परिवहन सम्बन्धी अड़चन द र करने का प्रयत्न किया जाय। वर्तमान शिक्षा पद्धति को रोजगारोन्मुख बनाए जाने की महती आवश्यकता है। यदि माध्यमिक शिक्षा के बाद औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं तथा अन्य तकनीकी संस्थाओं की अधिकाधिक स्थापना कर युवकों को प्रशिक्षित कर वित्त, कच्च माल व विपणन की सुविधा देकर स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित किया जाय तो इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता। साथ ही प्राकृतिक साधना ं का सर्वेक्षण, गाँवों में रा जगारोन्मुख नियोजन, युवा शक्ति का उपयोग किया जाना चाहिए। वैस सरकार की आ र स इस दिशा में प्रयत्न हेतु एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं। इस विश्व व्यापी समस्या के समाधान हेतु उपाय अपने अपने देश की परिस्थितियों के अनुसार ही सार्थक, प्रभावशाली एवं उचित सिद्ध हा ंगे। केवल सरकारी योजनाओं से इसका निराकरण स भव नहीं होगा। आवश्यकता है-इस हेतु युवका ं को ही आगे आकर अपने लिए मार्ग का निर्धारण करना हा गा। हाथ पर हाथ धरे बैठे रहन से कुछ होने का नहीं। नौकरी के लिए भटकने की अपेक्षा अपनी रुचि उद्या गा क प्रति जाग्रत करनी होगी, तभी इसका कोई स्थायी समाधान हो सकेगा, अन्यथा नहीं।