शुभता और शुद्धता का प्रतीक दीपावली

कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला दीपावली पर्व हिन्दू धर्म का सबसे अधिक प्राचीन पर्वों में से एक है| इस पर्व को वर्तमान नजरिये से शुद्धता का भी पर्व कह सकते हैं, क्योंकि इस त्यौहार की तैयारी में घर की साफसफाई कर, कूड़े-कचरे आदि से मुक्त कर दिया जाता है| लेकिन यह शुद्धता सिर्फ घर तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसके सांस्कृतिक,आध्यात्मिक,भौतिक और आर्थिक आयाम भी है।

यह त्यौहार प्रकाश का पर्व है इसके साथ अनेक धार्मिक, पौराणिक और वैज्ञानिक मान्यताएं भी जुडी हैं| वहीं शास्त्रों के अनुसार दीपावली पर लक्ष्मी पूजा के दौरान हमारे घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर शुभ-लाभ और स्वस्तिक का चिन्ह बनाया जाना चाहिए| ऐसे पौराणिक मान्यता है कि ऐसा करने से शुभ पक्ष का आगमन शुरू हो जाता है और हमारे जीवन से जुड़े अशुभ पक्षों का खात्मा शुरू हो जाता है। सिंदूर या कुमकुम से शुभ और लाभ लिखने के पीछे ऐसी मान्यता है कि इससे महालक्ष्मी सहित श्री गणेश भी प्रसन्न होते हैं| यह इकलौता ऐसा पर्व है जिसमें भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की एक साथ अराधाना होती है।