गुरू एक किसान




पूर्व के सिद्ध संतोंने गुरू को भगवानसे भी बड़ा माना है , क्योंकि उस जमानेके गुरू होते थे ही ऐसे l उन गुरुओंके तुलनामें आज कल के गुरू कही भी बैठते नहीं है फिर भी स्वयं को भगवान जैसा पुजवाते है l जैसा एक किसान अपने खेत में बीज बोता है तो उसकी पूरी निगरानी रखता है ,ऐसा ही गुरुका काम होता है , जिस साधक के ह्रदय में दीक्षा के माध्यम से मंत्र रूपी बीज बोया है , उस बीज को साधक ठीक ढंग से सिंचाई कर रहा है या नहीं इसकी ओर बार बार देखने का काम गुरू का होता है , उसे अपनेसे से भी ऊँचा उठानेका काम गुरुका होता है लेकिन आज कल के गुरू साधक को जीवनभर अज्ञानी रखकर अपनी तिजोरी भरते रहते है l  दूसरी बात यह है कि आज के ज़माने के गुरू को डर यह होता है , मेरा चेला मेरी दुकान तो बंद नहीं कर देगा ,इसकारण आज के ज़माने के गुरू अपने गुरुत्व के प्रति उतने ईमानदार नहीं होते है , जहाँ - तहाँ  धोकाही ही धोका है l अत: सावधान होकर गुरुका चुनाव करना चाहिए l