क्या है नागा साधू की मूल अवधारणा - मोह-माया का त्याग या गांजा पीने और नंग-धडंग रहने की छूट?
जब आप कुंभ मेले पर लिखा कुछ भी पढ़ते हैं, तो सबसे पहले संभवतः उन दृश्यों का ख़्याल आपके मन में आता होगा जिन्हें समाचारों में ज़्यादातर दिखाया जाता है: गंगा की ओर दौड़ लगाते हुए हज़ारों नंगे पुरुष। अधिकतर लोगों को इस तथ्य की जानकारी है कि वो केवल पवित्र स्नान के लिए नंगे नहीं हुए हैं बल्कि निःवस्त्र रहना ही उनका वस्त्र है। उन्हें नागा साधू कहा जाता है और वो इतने रोचक तो हैं हीं कि मैं उन पर और उनके दर्शन पर एक लेख लिखूं।
नागा को सरल अर्थों में नंगा कह सकते हैं, तो वो सब नंगे साधू हैं। आप ये भी कह सकते हैं कि वो विरक्ति के चरम तक पहुंच चुके साधू हैं। एक साधू का सिद्धांत बेहद स्पष्ट है: वो मोह-माया से दूर रहते हैं। उन्होंने अपने परिवारों से हर प्रकार का संबंध तोड़ लिया है ताकि वो भावनात्मक बंधन से मुक्त रहें, वो हमेशा घूमते रहते हैं ताकि वो किसी भौगोलिक परिवेश से जुड़ाव न महसूस करने लगें और उनके पास धन-संपदा जैसी चीज़ें नहीं होती हैं। वो कुछ जमा करके या बचक करके नहीं रखते, उतना ही रखते हैं जितना हाथों में आता है और जितने से उस वक़्त का गुज़ारा हो जाएगा।
एक नागा साधू दुनियावी चीज़ों से एक क़दम और आगे बढ़ता है और वस्त्रों से भी अपना जुड़ाव समाप्त कर लेता है। अधिक से अधिक विरक्ति की प्रक्रिया में यह एक तार्किक अगला क़दम माना जाता है। जब आपके साथ आपके शरीर पर वस्त्रों के अलावा और कोई जुड़ाव नहीं रह गया तो वस्त्रों का परित्याग ही विरक्ति की दिशा में आपका अगला क़दम होगा। अगर आपके पास वस्त्र हैं, आपको उन्हें धोना होगा, तो ऐसे में आपके पास कपड़ों का एक दूसरा जोड़ा भी होना चाहिए। अगर आपके पास दो जोड़े पतलून हैं, तो एक आप पहनेंगे और दूसरे को रखने के लिए या तो एक थैला रखेंगे या कोई गठरीनुमा कपड़ा। अगर आपके पास एक थैला है तो आपको इस बात का ध्यान रखना होगा कि सोते हुए आप इसे कहां रखना है और यह ध्यान भी रखना होगा कि आप इसे कहीं भूल न जाएं। अगर कोई इसे चुरा लेता है, तो आप इसे एक तथ्य के रूप में स्वीकार नहीं कर पाएंगे, आपको दुख होगा: अंततः आप मोह-माया के चक्कर में आ ही गए। तो नागा साधू ने ऐसी किसी भी चीज़ों को रखने से ही इन्कार कर दिया।
नागा साधुओं को क़ायदे से ईश्वर के प्रति आकंठ प्रेम और अध्यात्म की गहराई में कुछ इस तरह रहना चाहिए कि उन्हें इस बात से फ़र्क़ ही न पड़े कि वो कैसे दिखते हैं या मौसम में धूप की रूखी तपिश है या ठंड की गला देने वाली कंपकपाहट। न ही उन्हें अपने शरीर से इतना जुड़ाव है कि वे उसे ताप या ठंड से बचाएं।
नागा साधू की मूल अवधारणा ये है और शायद प्राचीन समय में नागा साधू ऐसे ही होते थे। उनके पास कुछ भी नहीं हुआ करता था, कपड़े भी नहीं। आज आप देखेंगे कि उनके पास केवल वस्त्र नहीं हैं, उसके अलावा सबकुछ है। उनमें से कइयों के पास पैसे हैं, सोना है, ज़ेवर हैं, गाड़ी तक है, वो असल में विलासी साधू हैं! साधारण वस्त्रों वाले साधू ने कुंभ मेले में अपने अस्थायी पंडालों के निर्माण और उनकी सजावट में लाखों रुपये खर्च किए हैं! ठीक उसी तरह इधर-उधर घूमने वाले नागा साधू घूमते तो नंग-धडंग होकर हैं, लेकिन उनकी उंगली पर बेशकीमती अंगूठियां होंगी और अपना यौनांग दिखाने के लिए वो आपसे पैसे मांगेंगे। नागा साधुओं को मालूम है फ़ोटोग्राफ़र को कैसे पोज़ देना है, उन्हें यह भी मालूम है कि पश्चिम से इस मेले को देखने आईं युवा महिलाओं को कैसे अपनी नंगई दिखानी है, चूंकि वो जानते हैं उनकी तस्वीरें अंतरराष्ट्रीय मीडिया में छपेंगी, दिखायी जाएंगी। वो नशा करते रहते है, इसलिए सर्दी का उनपर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। क्या इसे विरक्ति कहेंगे?
सुनने में आया है कि इस बार के कुंभ मेले में महिला नागा साधुओं की भी एक जमात है, उनका शिविर अलग है, लोगों की पहुंच से दूर। अगर यह सत्य है, तो वे लोगों के बीच क्यूं नहीं आतीं जैसे पुरुष नागा कर रहे हैं? खै़र, क्या यह अजीबोगरीब बात नहीं है कि अगर कोई सामान्य आदमी सार्वजनिक रूप से से नंगा होकर घूमे, तो उसे अश्लील और आपराधिक माना जाएगा जबकि यही काम एक धार्मिक व्यक्ति करे, तो कोई समस्या नहीं! अगर आप ऐसा करेंगे तो यक़ीन मानिए आपको हिरासत में ले लिया जाएगा और ज़ुर्माना भी भरना पड़ेगा। अगर वो करते हैं, तो लोग उनकी तस्वीरें लेते हैं, तस्वीरें व्यापक पैमाने पर दुनिया भर में छपती हैं और लोग बाग़-बाग़ हो जाते हैं, न कि आहत होते हैं।
अजीब दुनिया नहीं है ये?
जब आप कुंभ मेले पर लिखा कुछ भी पढ़ते हैं, तो सबसे पहले संभवतः उन दृश्यों का ख़्याल आपके मन में आता होगा जिन्हें समाचारों में ज़्यादातर दिखाया जाता है: गंगा की ओर दौड़ लगाते हुए हज़ारों नंगे पुरुष। अधिकतर लोगों को इस तथ्य की जानकारी है कि वो केवल पवित्र स्नान के लिए नंगे नहीं हुए हैं बल्कि निःवस्त्र रहना ही उनका वस्त्र है। उन्हें नागा साधू कहा जाता है और वो इतने रोचक तो हैं हीं कि मैं उन पर और उनके दर्शन पर एक लेख लिखूं।
नागा को सरल अर्थों में नंगा कह सकते हैं, तो वो सब नंगे साधू हैं। आप ये भी कह सकते हैं कि वो विरक्ति के चरम तक पहुंच चुके साधू हैं। एक साधू का सिद्धांत बेहद स्पष्ट है: वो मोह-माया से दूर रहते हैं। उन्होंने अपने परिवारों से हर प्रकार का संबंध तोड़ लिया है ताकि वो भावनात्मक बंधन से मुक्त रहें, वो हमेशा घूमते रहते हैं ताकि वो किसी भौगोलिक परिवेश से जुड़ाव न महसूस करने लगें और उनके पास धन-संपदा जैसी चीज़ें नहीं होती हैं। वो कुछ जमा करके या बचक करके नहीं रखते, उतना ही रखते हैं जितना हाथों में आता है और जितने से उस वक़्त का गुज़ारा हो जाएगा।
एक नागा साधू दुनियावी चीज़ों से एक क़दम और आगे बढ़ता है और वस्त्रों से भी अपना जुड़ाव समाप्त कर लेता है। अधिक से अधिक विरक्ति की प्रक्रिया में यह एक तार्किक अगला क़दम माना जाता है। जब आपके साथ आपके शरीर पर वस्त्रों के अलावा और कोई जुड़ाव नहीं रह गया तो वस्त्रों का परित्याग ही विरक्ति की दिशा में आपका अगला क़दम होगा। अगर आपके पास वस्त्र हैं, आपको उन्हें धोना होगा, तो ऐसे में आपके पास कपड़ों का एक दूसरा जोड़ा भी होना चाहिए। अगर आपके पास दो जोड़े पतलून हैं, तो एक आप पहनेंगे और दूसरे को रखने के लिए या तो एक थैला रखेंगे या कोई गठरीनुमा कपड़ा। अगर आपके पास एक थैला है तो आपको इस बात का ध्यान रखना होगा कि सोते हुए आप इसे कहां रखना है और यह ध्यान भी रखना होगा कि आप इसे कहीं भूल न जाएं। अगर कोई इसे चुरा लेता है, तो आप इसे एक तथ्य के रूप में स्वीकार नहीं कर पाएंगे, आपको दुख होगा: अंततः आप मोह-माया के चक्कर में आ ही गए। तो नागा साधू ने ऐसी किसी भी चीज़ों को रखने से ही इन्कार कर दिया।
नागा साधुओं को क़ायदे से ईश्वर के प्रति आकंठ प्रेम और अध्यात्म की गहराई में कुछ इस तरह रहना चाहिए कि उन्हें इस बात से फ़र्क़ ही न पड़े कि वो कैसे दिखते हैं या मौसम में धूप की रूखी तपिश है या ठंड की गला देने वाली कंपकपाहट। न ही उन्हें अपने शरीर से इतना जुड़ाव है कि वे उसे ताप या ठंड से बचाएं।
नागा साधू की मूल अवधारणा ये है और शायद प्राचीन समय में नागा साधू ऐसे ही होते थे। उनके पास कुछ भी नहीं हुआ करता था, कपड़े भी नहीं। आज आप देखेंगे कि उनके पास केवल वस्त्र नहीं हैं, उसके अलावा सबकुछ है। उनमें से कइयों के पास पैसे हैं, सोना है, ज़ेवर हैं, गाड़ी तक है, वो असल में विलासी साधू हैं! साधारण वस्त्रों वाले साधू ने कुंभ मेले में अपने अस्थायी पंडालों के निर्माण और उनकी सजावट में लाखों रुपये खर्च किए हैं! ठीक उसी तरह इधर-उधर घूमने वाले नागा साधू घूमते तो नंग-धडंग होकर हैं, लेकिन उनकी उंगली पर बेशकीमती अंगूठियां होंगी और अपना यौनांग दिखाने के लिए वो आपसे पैसे मांगेंगे। नागा साधुओं को मालूम है फ़ोटोग्राफ़र को कैसे पोज़ देना है, उन्हें यह भी मालूम है कि पश्चिम से इस मेले को देखने आईं युवा महिलाओं को कैसे अपनी नंगई दिखानी है, चूंकि वो जानते हैं उनकी तस्वीरें अंतरराष्ट्रीय मीडिया में छपेंगी, दिखायी जाएंगी। वो नशा करते रहते है, इसलिए सर्दी का उनपर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। क्या इसे विरक्ति कहेंगे?
सुनने में आया है कि इस बार के कुंभ मेले में महिला नागा साधुओं की भी एक जमात है, उनका शिविर अलग है, लोगों की पहुंच से दूर। अगर यह सत्य है, तो वे लोगों के बीच क्यूं नहीं आतीं जैसे पुरुष नागा कर रहे हैं? खै़र, क्या यह अजीबोगरीब बात नहीं है कि अगर कोई सामान्य आदमी सार्वजनिक रूप से से नंगा होकर घूमे, तो उसे अश्लील और आपराधिक माना जाएगा जबकि यही काम एक धार्मिक व्यक्ति करे, तो कोई समस्या नहीं! अगर आप ऐसा करेंगे तो यक़ीन मानिए आपको हिरासत में ले लिया जाएगा और ज़ुर्माना भी भरना पड़ेगा। अगर वो करते हैं, तो लोग उनकी तस्वीरें लेते हैं, तस्वीरें व्यापक पैमाने पर दुनिया भर में छपती हैं और लोग बाग़-बाग़ हो जाते हैं, न कि आहत होते हैं।
अजीब दुनिया नहीं है ये?