शनि को लगता है डर

www.balajidarbar.com


शनि देव से सभी लोग डरते हैं इसलिए शनि देव को खुश करने के लिए शनिवार को शनि मंदिर में सरसो तेल, तिल, लोहा, उड़द की दाल चढ़ाते हैं। लेकिन यह जानकर आपको हैरानी होगी कि शनि देव सिर्फ डराते नहीं हैं बल्कि इन्हें भी डर लगता हैं। शास्त्रों में कुछ ऐसी कथाएं मिलती हैं जो इस बात को साबित करती है कि शनि देव भी किसी से डरते है।

ऋषि पिप्लाद को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। इनका नाम जपने वाले व्यक्ति से शनि देव दूर ही रहना पसंद करते हैं। यह वही ऋषि हैं जिन्होंने शनि देव की चाल को मंद कर दिया।

पिप्लाद ऋषि के विषय में कथा है कि, जब इन्हें पता चला कि शनि देव के कारण उन्हें बचपन में ही माता-पिता को खोना पड़ा है तब तपस्या करने बैठ गये। ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके उनसे ब्रह्मदंड मांगा और शनि देव की खोज में निकल पड़े। इन्होंने शनि देव को पीपल के वृक्ष पर बैठा देख तो उनके ऊपर ब्रह्मदंड से प्रहार किया।

इससे शनि के दोनों पैर टूट गये। शनि देव दुखी होकर भगवान शिव को पुकारने लगे। भगवान शिव ने आकर पिप्पलाद का क्रोध शांत किया और शनि की रक्षा की। इस दिन से ही शनि पिप्पलाद से भय खाने लगे। पिप्लाद का जन्म पीपल के वृक्ष के नीचे हुआ था और पीपल के पत्तों को खाकर इन्होंने तप किया था इसलिए ही पीपल की पूजा करने से शनि का अशुभ प्रभाव दूर होता है।

कथाओं में यह आता है कि हनुमान जी ने शनि देव को रावण की कैद से मुक्ति दिलाई थी। शनिदेव ने उस समय हनुमान जी को वचन दिया था कि वह उनके भक्तों को नहीं सताएंगे। लेकिन कलियुग आने पर शनि अपने वचन को भूल गये और हनुमान जी को ही साढ़े साती का कष्ट देने पहुंच गये।

हनुमान जी ने शनि को अपने सिर पर बैठने की जगह दे दी। जब शनि हनुमान जी के सिर पर बैठ गये तब हनुमान जी पर्वत उठाकर अपने सिर पर रखने लगे। शनि पर्वत के भार से दबकर कराहने लगे और हनुमान जी से क्षमा मांगने लगे। जब शनि ने वचन दिया कि वह हनुमान के भक्तों के नहीं सताएंगे तब जाकर हनुमान ने शनि को क्षमा किया।


पिप्पलाद और हनुमान दोनों ही शिव के अवतार माने जाते हैं। भगवान शिव को शनि अपना गुरू मानते हैं और उनके प्रति भक्ति भाव रखते हैं। इसलिए पिप्पलाद, हनुमान एवं शिव के भक्तों को शनि कभी नहीं सताते हैं।

24 अक्षरों में ब्रह्माण्ड

www.balajidarbar.com

'ऊँ -  सर्वेश्वर परमात्मा है।
'भू:'- प्राण तत्व है, जो समस्त प्रणियों में ईश्वर का अंश है।

'भुव:' - समस्त दुखों का नाश ही कहलाता है।

'स्व:' - मन की स्थिरता का बोध होता है।
'तत्' - जीवन-मरण के रहस्य को जाना जाता है।
'सवितु' - सूर्य के समान बलवान बनाता है।
'वरेण्यं' - श्रेष्ठता की ओर ले जाता है।
'भर्गो' - निष्पाप करता है।
'देवस्य' - मरणधर्मा मनुष्य भी देवत्व प्राप्त करके अमर हो सकता है।

'धीमिहि' - पवित्र शक्तियों को धारण करना सिखाता है।

धियो' - शुद्ध बुद्धि से ही सत्य को जाना जा सकता है।
'योन:' - शक्तियों का प्रयोग करने की प्रेरणा देता है और शेष को छोडऩे की शक्ति देता है।
'प्रचोदयात्' - सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

गायत्री मंत्र Gayatri Mantra

www.balajidarbar.com

ॐ भूर्भुवः स्वः
Om bhoor-bhuvah svah,
तत्सवितुर्वरेण्यं
Tat-savitur-varennyam,
भर्गो देवस्यः धीमहि
Bhargo devasya dheemahi,
धियो यो नः प्रचोदयात्
Dhiyo yo nah prachodayaat.

जिसका अर्थ यह है कि:
उस प्राणस्वरूप, 
दुःखनाशक,
 सुखस्वरूप,
 श्रेष्ठ,
 तेजस्वी,
 पापनाशक,
 देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें।
 वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग कि ओर लै जाय।





ज्ञान, स्वयं अंदर से प्रकट होता है

अध्यात्म विद्या
www.balajidarbar.com

अध्यात्म विद्या के विषय में अधिकांश भौतिक विद्वान शिक्षा को ही विद्या मान बैठते हैं। वे विद्या और शिक्षा के अंतर को भी समझने में असमर्थ हैं विद्या और शिक्षा में धरती और आसमान का अंतर है। 

इस विषय को स्पष्ट करते हुए महात्मा परमचेतनानंद ने अपने प्रवचन में कहा कि शिक्षा शब्द शिक्ष धातु से बना है अर्थ है 'सीखना।' भौतिक शिक्षा अनुकरण के द्वारा सीखी जाती है जिसका संबंध ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेद्रिंयों व मन बुद्धि तक सीमित है। विद्या शब्द विद् धातु से बना है अर्थ है 'जानना' अर्थात्‌ 'वास्तविक ज्ञान।' 
यह ज्ञान स्वयं अंदर से प्रकट होता है, इसे ही अध्यात्म ज्ञान कहा जाता है। इसे आत्मा की गहराई में पहुंचने पर ही जाना जाता है। 
शिक्षा के विद्वान अहंकार से ग्रसित होते हैं, उनमें विनम्रता का अभाव होता है जबकि विद्या का प्रथम गुण विनम्रता है। विद्या वास्तव में मानव की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है। 
इस अध्यात्म विद्या से मानव 'निष्काम कर्म योगी' बनता है जो सभी को समान भाव से देखता है। पहले 'निष्काम कर्म योगी' को ही प्रजा अपना राजा चुनती थी। वे अपने पुत्र तथा अन्य प्रजा के साथ समान रूप से न्याय करते थे। 

आज के असमय में अध्यात्म विद्या का अभाव होने के कारण राजा और प्रजा दोनों ही अशांत हैं फिर भी इसे ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है जबकि 'अध्यात्म विद्या' के वेत्ता तत्वदर्शी संत आज भी मौजूद हैं।

महादेव के 10 अवतार

महादेव के 10 अवतार
www.balajidarbar.com


प्राणी को शिव का ही अंश माना गया है। इस तरह भगवान शंकर

के असंख्य अवतार हो चुके हैं। परंतु शिवपुराण के अनुसार शिव 

के दस प्रमुख अवतार बताए गए हैं।


यह दस अवतार इस प्रकार है 

महाकाल-  पहला अवतार महाकाल नाम से ख्यात है। महाकाल अपने भक्तों को भोग और मोक्ष प्रदान करने वाले हैं। इस अवतार की शक्ति मां महाकाली हैं।

तार-  दूसरा प्रमुख अवतार है तार। इसकी शक्ति तारादेवी हैं। यह अवतार भुक्ति-मुक्ति दोनों फल प्रदान करने वाला है।

बाल भुवनेश-  तीसरा अवतार बाल भुवनेश नाम से प्रसिद्ध है। इनकी शक्ति देवी बाला भुवनेशी है जो भक्तों को सुख, समृद्धि और शांति प्रदान करने वाली हैं।

षोडश श्रीविद्येश-  चौथा अवतार  षोडश श्रीविद्येश नाम से जाना जाता है। यह अवतार भक्तों को सुख, भोग और मोक्ष देने वाला है। इनकी शक्ति देवी षोडशी श्रीविद्या हुईं।

भैरव-  शिव का पांचवा अवतार भैरव नाम से ख्यात है। इनकी शक्ति भैरवी गिरिजा हैं। जो श्रद्धालुओं को मनोवांछित फल देने वाली है।

छिन्नमस्तक-  शिव का छठा अवतार छिन्नमस्तक नाम से प्रसिद्ध है। इनकी शक्ति देवी छिन्नमस्ता हैं जो भक्तों की कामनाओं को पूर्ण करती हैं।

धूमवान्-  शिव का सातवां अवतार धूमवान् नाम से प्रसिद्ध है। इनकी शक्ति देवी धूमावती हैं। यह अवतार भक्तों को समस्त व श्रेष्ठ फल प्रदान करने वाली है।

बगलामुख- शिव का आठवां अवतार बगलामुख के नाम से जाना जाता है। इनकी शक्ति देवी बगलामुखी है। यह अवतार श्रद्धालुओं को परम आनंद प्रदान करने वाला है।

मातंग-  शिवावतार में नौवां अवतार मातंग के नाम से प्रसिद्ध है। इनकी शक्ति शर्वाणी मातंगी हुईं जो संपूर्ण अभिलाषाओं को पूर्ण करती हैं।

कमल-  शिव का दसवां अवतार कमल है। इनकी शक्ति गिरिजाकमला के नाम से हैं। यह अवतार भुक्ति और मुक्ति देने वाला है।

कब होगा कल्की अवतार?

 कल्की अवतार
www.balajidarbar.com

धर्म ग्रंथों के अनुसार है कि कलयुग के अंत में भगवान विष्णु अवतरित होंगे तथा संसार को अधर्मियों से मुक्ति दिलाएंगे। महाभारत के वनपर्व में विस्तृत उल्लेख है कि।

उनके अनुसार कलयुग के अंत में जब सत्य की हानि होने के कारण मनुष्यों की आयु कम हो जाएगी। (मनुष्य आयु ज्यादा से ज्यादा सोलह वर्ष की होगी।) आयु की कमी के कारण मनुष्य पूर्ण विद्या का उपार्जन नहीं कर पायगा। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य आपस में संतानोत्पादन कर वर्ण संकर हो जाएंगे, इनका विभक्तिकरण करना मुश्किल हो जाएगा। कलियुग में वर-कन्या स्वयं का स्वयंवर कर लेंगे। कोई ईश्वर का नाम नहीं लेगा। तप, यज्ञ, पूजन आदि समापत हो जाएंगे। ब्राह्मण व्रत-नियमों का पालन नहीं करेंगे। जब चारो तरफ असत्य और अधर्म का साम्राज्य होगा। अधिकांश मनुष्य धर्महीन, मांसभोजी और शराब पीने वाले होंगे। उसी समय इस युग का अंत निकट होगा।

शम्भल नामक ग्राम में विष्णुयशा नाम के ब्राह्मण के घर में एक बालक का जन्म होगा। उसका नाम होगा कल्की विष्णुयशा। यह बालक बहुत ही बलवान, बुद्धिमान और पराक्रमी होगा। मन के द्वारा चिंतन करते ही उसके पास इच्छानुसार वाहन, अस्त्र-शस्त्र, योद्धा और कवच उपस्थित हो जाएँगे। ब्राह्मणों की सेना साथ लेकर संसार में सर्वत्र फैले हुए मलेच्छों का नाश कर देगा। वही सब दुष्टों का नाश करके सतयुग का प्रवर्तक होगा। यह होगा भगवान विष्णु का कल्की अवतार।


श्री हनुमान चालीसा

www.balajidarbar.com
दोहा
श्रीगुरू चरन सरोज रज निज मन मुकुरू सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु दो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तुन जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।

बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

|| चोपाई ||

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहूँ लोक उजागर।।
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेऊ साजै।।
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बंदन।।
बिद्याबान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे का रसिया।
राम लषन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामच्रंद के काज सँवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावै।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहिसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं किन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भय सब जग जाना।।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रच्छक काहू को डरना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक तें काँपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचने ध्यान जौ लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै।।
अंत काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहू गुरू देव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चलीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।
दोहा
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम  लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।