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नूरपूर की
वादियों में ही रावण ने सालों तक शिव की अराधना की थी। नूरपूर में एक बड़ी ही
रहस्यमय गुफा है। गुफा में सैकड़ों शिवलिंग हैं। तपस्या से जब भगवान शिव खुश होकर
प्रकट हुए और वर मांगने के लिए कहा तो रावण ने कहा कि इस गुफा में सैकड़ों शिवलिंग
हैं। लेकिन एक जो सबसे बड़ा शिवलिंग उसे मैं अपने साथ ले जाना चाहता हूं।
रावण
ने शिव से कहा आप उस शिवलिंग में साक्षात प्रकट हो जाइए जिसे मैं अपने साथ लेकर
जाना चाहता हूं। भगवान शिव ने कहा ठीक है तुम उस शिवलिंग में मुझे लेकर चलो। लेकिन
मेरी भी एक शर्त है कि कुछ भी हो जाए तुम मुझे रास्ते में नीचे नहीं उतारोगे। इसके
बाद रावण उस महाशिवलिंग को लेकर चल पड़ा।
दूर
चलने के बाद रावण शिव की बात भूलने लगा। आगे बढ़ा तो उसे बहुत तेज लघु शंका का
अहसास हुआ। उसने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया। जब वापस आकर शिवलिंग को उठाने लगा तो
शिवलिंग नहीं उठा। रावण को अपनी गलती का अहसास हुआ। जिस जगह पर रावण ने शिवलिंग को
उतारा था उस जगह को बैजनाथ कहते हैं।
आज
भी बैजनाथ में वह पुराना मंदिर है जहां रावण ने शिवलिंग को नीचे उतारा था।
शास्त्रों के मुताबिक वहां पर रावण काफी दिनों तक रुक गया था। उसे समझ में नहीं आ
रहा था कि अब आगे क्या करें। क्योंकि वह शिवलिंग को न तो अपने साथ ले जा सकता और न
ही वहां छोड़ सकता था। लिहाजा रावण वहां रुककर शिवलिंग की तपस्या करने लगा।
इलाके
के लोग आज भी दशहरा के दिन रावण का पुतला नहीं जलाते हैं। कुछ लोगों ने ऐसी कोशिश
की लेकिन नतीजा निकला कि पूरा इलाका महामारी की चपेट में आ गया। लोगों का कहना है
कि रावण को शिव का वरदान था कि उसका कोई तिरस्कार नहीं कर सकता।