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देवी-देवताओं की साकार रूप की पूजा
होती है लेकिन भगवान शिव ही एक मात्र ऐसे देवता हैं जिनकी पूजा साकार और निराकार
दोनों रूप में होती है। साकार रूप में शिव मनुष्य रूप में हाथ में त्रिशूल और डमरू
लिये और बाघ की छाल पहने नज़र आते हैं। जबकि निराकार रूप में भगवान शिवलिंग रूप
में पूजे जाते हैं। शिवपुराण में कहा गया है कि साकार और निराकार दोनों ही रूप में
शिव की पूजा कल्याणकारी होती है लेकिन शिवलिंग की पूजा करना अधिक उत्तम है।
शिव पुराण के अनुसार शिवलिंग की पूजा
करके जो भक्त शिव को प्रसन्न करना चाहते हैं उन्हें प्रातः काल से लेकर दोपहर से
पहले ही इनकी पूजा कर लेनी चाहिए। इस दौरान शिवलिंग की पूजा विशेष फलदायी होती है।
शिवलिंग की ही पूजा क्यों होती है, इस विषय में शिव पुराण कहता है कि महादेव के अतिरिक्त अन्य कोई भी देवता
साक्षात् ब्रह्मस्वरूप नहीं हैं। संसार भगवान शिव के ब्रह्मस्वरूप को जान सके
इसलिए ही भगवान शिव ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हुए और शिवलिंग के रूप में इनकी
पूजा होती है।
एक कथा है कि एक बार ब्रह्मा और
विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद होने लगा। दोनों निर्णय के लिए भगवान शिव के
पास गये। विवाद का हल निकालने के लिए भगवान शिव साकार से निराकार रूप में प्रकट
हुए। शिव का निराकार रूप अग्नि स्तंभ के रूप में नज़र आ रहा था।
ब्रह्मा और विष्णु दोनों इसके
आदि और अंत का पता लगाने के लिए चल पड़े लेकिन कई युग बीत गए लेकिन इसके आदि अंत
का पता नहीं लगा। जिस स्थान पर यह घटना हुई, वह अरूणाचल के नाम से जाना जाता है।
ब्रह्मा और विष्णु को अपनी भूल
का एहसास हुआ। भगवान शिव साकार रूप में प्रकट हुए और कहा कि आप दोनों ही बराबर
हैं। इसके बाद शिव ने कहा, पृथ्वी पर अपने ब्रह्म रूप का बोध कराने के लिए मैं
लिंग रूप में प्रकट हुआ इसलिए अब पृथ्वी पर इसी रूप में मेरे परमब्रह्म रूप की
पूजा होगी। इसकी पूजा से मनुष्य को भोग और मोक्ष की प्राप्ति हो सकेगी।