माँ अन्जनी की कथा
देवराज इन्द्र की अमरावती मे पुज्जिकस्थला नाम की एक अप्सरा थी | एक दीन उससे कुछ अपराध हो गया, जिसके कारण उसे वानरी होकर प्रथ्वी पर जन्म जेना पडा | शाप देने वाले रिषि ने बडी प्रार्थना के बाद इतना अनुग्रह कर दिया था कि वह जब चाहे तब मानवी | वानर राज केसरी ने उसे पत्तनी के रुप मे ग्रहण किया था | वह बडी सुन्दरी थी | वे उनसे बहुत ही प्रेम करते थे |
एक दिन दोनो ही मनुष्य का रुप धारण करके अपने राज मे सुमेरू के श्र्रगों पर विचरण कर रहे थे | मन्द-मन्द वायु बह रही थी | वायु के एक हल्के से झोके से अंजना की साडी का पल्ला उड गया |अंजना को ऐसा मालूम हुआ कि मुझे कोई स्पर्श कर रहा है | वह अपने कपडे को सभालती हुई खडी हो गई | उसने डाँटते हुए कहा-ऐसा ढीठ कौन है, जू मेरी पति व्रता नष्ट करना चाहता है | मै अभी शाप देकर उसे भस्म कर दूँगी |उसे प्रतीत हुआ मानो वायुदेव कह रहे है- देवी ! मैने व्रत नष्ट नही किया है | देवी ! तुम्हे ऐसा पुत्र होगा, जो शक्ति मे मेरे समान होगा, बल और बुध्दि मे उसकी समानता कोई न कर सकेगा | मै उसकी रक्षा करुगा | वह भगवान का सेवक होगा | तदन्तर अंजना और केसरी अपने स्थान पर चले गए | भगवान शंकर ने अंशरुप से अंजना के कान के द्वारा उसके गर्भ मे प्रवेश किया |