बालाजी का परिचय

 
माँ अन्जनी की कथा
देवराज इन्द्र की अमरावती मे पुज्जिकस्थला नाम की एक अप्सरा थी | एक दीन उससे कुछ अपराध हो गया, जिसके कारण उसे वानरी होकर प्रथ्वी पर जन्म जेना पडा | शाप देने वाले रिषि ने बडी प्रार्थना के बाद इतना अनुग्रह कर दिया था कि वह जब चाहे तब मानवी | वानर राज केसरी ने उसे पत्तनी के रुप मे ग्रहण किया था | वह बडी सुन्दरी थी | वे उनसे बहुत ही प्रेम करते थे |
 एक दिन दोनो ही मनुष्य का रुप धारण करके अपने राज मे सुमेरू के श्र्रगों पर विचरण कर रहे थे | मन्द-मन्द वायु बह रही थी | वायु के एक हल्के से झोके से अंजना की साडी का पल्ला उड गया |अंजना को ऐसा मालूम हुआ कि मुझे कोई स्पर्श कर रहा है | वह अपने कपडे को सभालती हुई खडी हो गई | उसने डाँटते हुए कहा-ऐसा ढीठ कौन है, जू मेरी पति व्रता नष्ट करना चाहता है | मै अभी शाप देकर उसे भस्म कर दूँगी |उसे प्रतीत हुआ मानो वायुदेव कह रहे है- देवी ! मैने व्रत नष्ट नही किया है | देवी ! तुम्हे ऐसा पुत्र होगा, जो शक्ति मे मेरे समान होगा, बल और बुध्दि मे उसकी समानता कोई न कर सकेगा | मै उसकी रक्षा करुगा | वह भगवान का सेवक होगा | तदन्तर अंजना और केसरी अपने स्थान पर चले गए | भगवान शंकर ने अंशरुप से अंजना के कान के द्वारा उसके गर्भ मे प्रवेश किया |

शुभता और शुद्धता का प्रतीक दीपावली

कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला दीपावली पर्व हिन्दू धर्म का सबसे अधिक प्राचीन पर्वों में से एक है| इस पर्व को वर्तमान नजरिये से शुद्धता का भी पर्व कह सकते हैं, क्योंकि इस त्यौहार की तैयारी में घर की साफसफाई कर, कूड़े-कचरे आदि से मुक्त कर दिया जाता है| लेकिन यह शुद्धता सिर्फ घर तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसके सांस्कृतिक,आध्यात्मिक,भौतिक और आर्थिक आयाम भी है।

यह त्यौहार प्रकाश का पर्व है इसके साथ अनेक धार्मिक, पौराणिक और वैज्ञानिक मान्यताएं भी जुडी हैं| वहीं शास्त्रों के अनुसार दीपावली पर लक्ष्मी पूजा के दौरान हमारे घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर शुभ-लाभ और स्वस्तिक का चिन्ह बनाया जाना चाहिए| ऐसे पौराणिक मान्यता है कि ऐसा करने से शुभ पक्ष का आगमन शुरू हो जाता है और हमारे जीवन से जुड़े अशुभ पक्षों का खात्मा शुरू हो जाता है। सिंदूर या कुमकुम से शुभ और लाभ लिखने के पीछे ऐसी मान्यता है कि इससे महालक्ष्मी सहित श्री गणेश भी प्रसन्न होते हैं| यह इकलौता ऐसा पर्व है जिसमें भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की एक साथ अराधाना होती है। 

दिवाली से पहले मनाया जाने वाला पर्व धनतेरस का महत्व

धनतेरस कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के रूप में मनाया जाता है। दिवाली से पहले मनाये जाने वाले पर्व धनतेरस के दिन वैद्य धनवंतरी के पूजन का विशेष महत्व है। धनतेरस के दिन धनवंतरी वैद्य समुद्र से अमृत लेकर आए थे। इसलिए धनतेरस को धनवंतरी जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। धनतेरस का दिन खरिदारी के लिए तो विशेष है कि साथ ही यह चिकित्सकों के लिए भी विशेष महत्व रखता है, क्यों कि धनवंतरी को चिकित्सकों का देवता कहा जाता है।
धनतेरस के दिन बर्तन और चांदी खरीदने का विशेष महत्व है। इस दिन वैदिक देवता यमराज का भी पूजन किया जाता है। यम के लिए महिलाएं दीपक जलाती है। इस दिन सायंकाल घर के मुख्य द्वार पर यमराज के लिए एक अन्न से भरे पात्र में दक्षिण मुख करके दीपक रखने और उसका पूजन करके प्रज्जवलित करने से आकस्मिक मृत्यु से बचा जा सकता है। इसके साथ ही दीर्घ जीवन और आरोग्य की प्राप्ति होती है।

दिवाली पूजन में महालक्ष्मी का महत्व

श्री लक्ष्मी के पावन ‍दिव्य स्वरूप

श्री उत्तर ऋग्वेद के श्रीसूक्त के मुताबिक श्री यानी वैभव, समृद्धि, यश और सबसे बढ़कर यानी सुकून है। भगवान विष्णु के आदेश पर देव-दानवों ने क्षीरसागर का मंथन किया और अन्य रत्नों के साथ लक्ष्मी भी जल के ऊपर आईं। लक्ष्मी यानी चंचला लेकिन विष्णु को पति के रूप में वरण कर वे शेषशायी की सहचरी के आदर्श रूप पतिपरायण यानी श्री महालक्ष्मी के रूप में स्वीकार की गईं। 

श्री महालक्ष्मी जो तमोगुण रूप धारण कर महाकाली भी कहलाईं, सत्वगुण संपन्ना होने पर महासरस्वती हैं। दोनों का संयुक्त स्वरूप यानी स्थिर लक्ष्मी है। यही वजह है कि दीपावली पूजन में लक्ष्मीजी के साथ सरस्वतीजी भी शामिल रहती हैं।

दिवाली का महत्व

अँधेरे पर उजालों की जीत तथा असत्य पर सत्य की विजय के आधार को ध्यान में रख कार्तिक मास की अमावस्या के दिन दीपावली का त्यौहारपूरे भारतवर्ष में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है | इस महापर्व के सुअवसर पर हिंदू , सिख, बौध ,जैन सभी विघ्नहर्ताभगवान गणेश और माता महालक्ष्मीका पूजन करते हैं | हिन्दू धर्म ग्रन्थ में वर्णित कथाओं के अनुसार दीपावली का यह पावन त्यौहार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के 14 वर्ष के बाद बनवास के बाद अपने राज्य में वापस लौटने की स्मृति में मनाया जाता है | व्यापारीगण दिपावली के दिन दीपों की माला सजाकर नई बही खातों का मुहूर्त करते हैं 
इस दिन दीपकों की पूजा का विशेष महत्व होता है | इस दिन रात के अंधेरे को दूर करते हुए माना जाता है कि दीपमाला को लगा कर प्रकाश के द्वाराअसत्य पर सत्य की जीत व आध्यात्मिक अज्ञानता को दूर किया जा रहा है | इन सभी धर्मप्रेमियोंका ये विश्वास है कि मां लक्ष्मी की पूजा करने से उनके घर में कभी भी दरिद्रता का वास नहीं होगा और वे सदा ही अन्न, धन, धान्य व वैभव से संपन्न रहेंगे | दिपावली का ये पर्वसही अर्थोंमें समाज में उल्लास, भाई-चारे व प्रेम का सन्देश फैलता है |

कर्म का रहस्य

कर्म तीन प्रकार के बताये गए हैं : - [ १ ] संचित - अनेक पूर्व जन्मों से लेकर अब तक किये गए संग्रहित कर्मों को संचित कर्म कहते हैं | [ २ ] प्रारब्ध - अपार संचित कर्मों से , पुन्य - पाप के ढेर में से कुछ अंश लेकर जो शरीर बनता है , उसमें इस जन्म में भोगने वाले कर्म - फल , जो परिपक्व होने पर फल के रूप में मनुष्य को प्राप्त होते हैं , उनको प्रारब्ध कहते हैं | इस प्रकार जब तक संचित कर्म शेष हैं , उनसे प्रारब्ध [ कर्म - फल ] बनता ही रहता है | अर्थात जब तक सारे संचित कर्म नष्ट नहीं हो जाते , मनुष्य की मुक्ति नहीं हो सकती | क्योंकि संचित से स्फुरणा , स्फुरणा से क्रियमाण [ नए किये जाने वाले कर्म ] और क्रियमाण से पुन: संचित तथा संचित के अंश से प्रारब्ध | इस प्रकार जीव कर्म - प्रवाह में बहता ही रहता है | [ ३ ] क्रियमाण - मन वचन और शरीर से मनुष्य जो कुछ नए कर्म करता है , वह जब तक क्रिया रूप में रहता है , तब तक वह क्रियमाण कहलाता है और पूरा होते ही तत्काल संचित बन जाता है | जैसे नई कमाई करना क्रियमाण है और बैंक में जमा होते ही संचित हो जाता है | नए कर्म करने में , भगवान ने मनुष्य को स्वतंत्रता दी है | वह देवी संपदा का आश्रय भी ले सकता है और आसुरी का भी | 

आकस्मिक धन प्राप्ति केलिए ..(शेयर मार्केट या अन्य में लाभदायक )

धन प्राप्ति  तो  एक ऐसी  क्रिया हैं जो सबके मन को भांति हैं  जीवन मे  धन के  बिना  किसी  भी  चीज का  वैसा  अस्तित्व नही हैं जैसा  की होना  ही  चाहिए .आधिन्काश आवश्यकताए   तो केबल धन  के माध्यम से  कहीं जायदा  सुचारू  रूप  से  पूरी हो जाती हैं ..
पर  धन का आगमन भी  तो एक अनिवार्य आवश्यकता हैं  पर  जो एक बंधी   बंधाई  धन राशि   हर महीने मिलती हैं  वह  तो  एक निश्चित  रूप  से  खर्च  होती हैं.. पर कहीं से  यदि कोई आकस्मिक धन यदि हमें  मिल जाता हैं  तो   वह  बहुत  ही प्रसन्नता दायक  होता हैं .
पर  यह आकस्मिक धन आये कहाँ से ..यह  सबसे बड़ा प्रश्न  अब हर किसी  को   तो गडा धन  नही मिल  सकता हैं .  तो व्यक्ति  नए नए  माध्यम देखता हैं कि कैसे   इसकी  सम्भावनए बनायी  जाए   या  हो पाए  .
और सबसे  ज्यादा हर व्यक्ति   का  रुझान हैं  तो वह् हैं  शेयर मार्केट की ओर ..रो ज  जोभी  सुचनाये  आती हैं  वह   होती हैं  शेयर मार्केट  की.. की उसने  इतना फायदा   लिया या   वह  पूरी  तरह से  बर्बाद  हो गया  ..फिर  भी लोग धनात्मक पक्ष कहीं जयादा  देख्ते  हैं .मतलब की  फायदा  होता ही  हैं . अब  जो लंबी अवधि के लिए   अपना  धन लगाते  हैं  वह कहीं ज्यादा लाभदायक  होते हैं  और  जो कम अवधि के लिए  उनके लिए क्या  कहा जाए  यह बहुत ही ज्यादा  जोखिम भरा  सौदा हैं .
  पर  एक साधना  ऐसी भी हैं   जिसके  सफलता   पूर्वक करने  से  व्यक्ति का  जोखिम बहुत कम   हो जाता हैं .. और व्यक्ति   को लाभ की सम्भावनाये  कहीं  अधिक   होती हैं
जप संख्या – ११  हज़ार  हैं  दिन्  निर्धारित  नही हैं  जब जप समाप्त हो जाये  तो  १०८  आहुति इस  मन्त्र  से कर दे.  और आप देखेंगे  की स्वयं  ही नए  नए  स्त्रोत से  घनागम की  अवश्यकताए  पूरी  होती जाएँगी.

कैसे ज्ञात करें गडा हुआ धन!

कई बार हमें किसी स्थान पर गडे हुये धन के होने का अंदशा होता है। बिना किसी ठोस आधार एवं दिव्य आज्ञा के उस स्थान को खोदने की गलती कभी नहीं करनी चाहिये। ऎसे किसी भी संदेह की स्थिति में नित्य संध्याकाल के समय जहां धन का अंदेशा हो वहां एक शुद्ध घी का दीपक जिसमें एक लौंग भी हो, लगाना चाहिये। ऎसा करने से 40 दिनों के भीतर यदि वहां धन होता है तो दीपक लगाने वाले को स्वप्न के माध्यम से उसकी जानकारी हो जाती है, सवप्न में ही उसे खोदना है अथवा नहीं, यह भी निर्देश मिलता है। इसी प्रकार जहां धन का अंदेशा हो वहां एक छोटा सा स्थान स्वच्छ कर उस पर एक लकडी का पाटा रख दें। उस पर एक नागरबेल का पान अथवा पीपल का पत्ता रखकर उस पत्ते पर एक पूजा की सुपारी रखकर उस पर हल्दी, कुंकुम, अक्षत आदि अर्पित कर उसके समक्ष घी का दीपक लगायें जो कि 5-7 मिनट के लिये जलता रहे। नित्य ऎसा करें।
पत्ते और सुपारी को विसर्जन हेतु शुद्ध एवं स्वच्छ स्थान पर रख लें। इस प्रयोग को 40 दिनों तक इस प्रार्थना के साथ करें कि यहां जो भी शक्ति विराजित हो वह हमें मार्गदर्शन दे। यदि धन प्राçप्त के योग होंगे तो निpय ही प्रयोगकर्ता को संकेत प्राप्त होगा। अति उत्साह में आकर अथवा किसी तांत्रिक के बताने पर धन लिकालने के लिये खुदाई आदि करना प्रारम्भ नहीं कर दें। ऎसा करने पर कभी-कभी गम्भीर समस्या उत्पन्न हो सकती है। अनेक लोग अपने घरों में पशु पशुओं को पालते हैे। इनमें अधिकतर दूध देने वाले पशु होते हैं।
कभी-कभी बिना किसी विशेष कारण के उनके पशु मर जाते हैं। इस कारण उन्हें बहुत नुकसान होता है। इस समस्या से मुक्ति प्राप्त करने हेतु अग्रांकित प्रयोग काम में लायें। लोहे अथवा लकडी की एक ऎसी खूँटी बनवायें जो छ: भागों में विभाजित हो। इस खूँटी का पहले भली प्रकार से पूजन करें एवं पशु रक्षा की कामना करते हुये इसे पशुशाला में किसी भी एक कोने में गाड दें। इसके ठीक ऊपर छत पर एक बांसुरी किसी धागे या डोरी से लटका दें। ऎसा करने से पशुओं का आकरण मरना बंद हो जाता है। खुँटी चित्र में दर्शायी गई है। एक अन्य उपाय के अन्तर्गत जहां भी पशु बांधे जाते हैं वहां नित्य घी तथा गूगल की धूनी गाय के गोबर के कण्डे को जलाकर उस पर देनी चाहिये। इसी प्रकार संबंधित स्थान पर बांसुरी वादन करते हुये भगवान श्रीकृष्ण का ऎसा फोटो भी लगा देना चाहिये जिसमें एक या अधिक गायें श्रीकृष्ण के साथ हों।