सुखदुखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यप्ति।।


जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुख को एक जैसा समझकर, उसके बाद युद्ध के लिए तैयार हो जा; इस प्रकार युद्ध करने से तू पाप को नहीं प्राप्त होगा !

जीवन एक युद्ध की तरह है, जिसको हमें लड़कर ऐसे जीतना होगा कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं है। जीवन में सुख-दुख, नफा-नुकसान यह सब चलता रहेगा। इनसे हमें बचकर रहना है। अगर हम इनमें ही उलझ कर रह गए, तो जीवन की ऊंचाइयों तक नहीं पहुंच सकते।

हार के साथ जीत, नुकसान के साथ फायदा और सुख के साथ दुख ऐसे जुड़े हैं, जैसे सिक्के के दो पहलू। अगर इंसान को सुख की चाह है तो यह मान कर चलना चाहिए कि कल दुख भी आएगा। यदि हम आज जीत रहे हैं तो कल हार भी होगी।

हम चाहते हैं कि सब कुछ हमारी इच्छा के मुताबिक ही हो, जो मुमकिन नहीं है। जब इंसान यह समझ लेता है कि फायदा और हानि दोनों ही स्थितियों में एक जैसा रहना है और यह सब तो जीवन भर होता रहेगा। तब इन सब बातों का असर पड़ना भी उस पर बंद हो जाएगा।