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शनि देव से सभी लोग डरते हैं इसलिए शनि
देव को खुश करने के लिए शनिवार को शनि मंदिर में सरसो तेल, तिल, लोहा, उड़द की दाल चढ़ाते
हैं। लेकिन यह जानकर आपको हैरानी होगी कि शनि देव सिर्फ डराते नहीं हैं बल्कि
इन्हें भी डर लगता हैं। शास्त्रों में कुछ ऐसी कथाएं मिलती हैं जो इस बात को साबित
करती है कि शनि देव भी किसी से डरते है।
ऋषि पिप्लाद को भगवान शिव का अवतार माना
जाता है। इनका नाम जपने वाले व्यक्ति से शनि देव दूर ही रहना पसंद करते हैं। यह
वही ऋषि हैं जिन्होंने शनि देव की चाल को मंद कर दिया।
पिप्लाद ऋषि के विषय में कथा है कि, जब इन्हें पता चला कि
शनि देव के कारण उन्हें बचपन में ही माता-पिता को खोना पड़ा है तब तपस्या करने बैठ
गये। ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके उनसे ब्रह्मदंड मांगा और शनि देव की खोज में निकल
पड़े। इन्होंने शनि देव को पीपल के वृक्ष पर बैठा देख तो उनके ऊपर ब्रह्मदंड से
प्रहार किया।
इससे शनि के दोनों पैर टूट गये। शनि देव
दुखी होकर भगवान शिव को पुकारने लगे। भगवान शिव ने आकर पिप्पलाद का क्रोध शांत
किया और शनि की रक्षा की। इस दिन से ही शनि पिप्पलाद से भय खाने लगे। पिप्लाद का जन्म
पीपल के वृक्ष के नीचे हुआ था और पीपल के पत्तों को खाकर इन्होंने तप किया था
इसलिए ही पीपल की पूजा करने से शनि का अशुभ प्रभाव दूर होता है।
कथाओं में यह आता है कि हनुमान जी ने
शनि देव को रावण की कैद से मुक्ति दिलाई थी। शनिदेव ने उस समय हनुमान जी को वचन
दिया था कि वह उनके भक्तों को नहीं सताएंगे। लेकिन कलियुग आने पर शनि अपने वचन को
भूल गये और हनुमान जी को ही साढ़े साती का कष्ट देने पहुंच गये।
हनुमान जी ने शनि को अपने सिर पर बैठने
की जगह दे दी। जब शनि हनुमान जी के सिर पर बैठ गये तब हनुमान जी पर्वत उठाकर अपने
सिर पर रखने लगे। शनि पर्वत के भार से दबकर कराहने लगे और हनुमान जी से क्षमा
मांगने लगे। जब शनि ने वचन दिया कि वह हनुमान के भक्तों के नहीं सताएंगे तब जाकर
हनुमान ने शनि को क्षमा किया।
पिप्पलाद और हनुमान दोनों ही शिव के
अवतार माने जाते हैं। भगवान शिव को शनि अपना गुरू मानते हैं और उनके प्रति भक्ति
भाव रखते हैं। इसलिए पिप्पलाद, हनुमान एवं शिव के भक्तों को शनि कभी नहीं सताते हैं।