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पवनपुत्र हनुमान, मां भगवती और शिवशंकर भोलेनाथ की
विशेष रूप से आराधना की जाती है। शंकर के अवतार हनुमान जी ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं। आराधना से बल, कीर्ति,
आरोग्य और निर्भीकता बढती है।
इनका विराट स्वरूप पांच
मुख पांच दिशाओं में हैं। हर रूप एक मुख वाला, त्रिनेत्रधारी और दो भुजाओं वाला
है। यह पांच मुख नरसिंह, गरुड, अश्व,
वानर और वराह रूप है। इनके पांच मुख क्रमश: पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊर्ध्व
दिशा में प्रतिष्ठित माने गएं हैं।
पूर्व की ओर का मुख वानर का हैं। जिसकी प्रभा करोडों सूर्यो के तेज
समान हैं। इनका पूजन करने से समस्त शत्रुओं का नाश हो जाता है।
पश्चिम दिशा वाला मुख गरुड का हैं। जो भक्तिप्रद, संकट निवारक
माने जाते हैं। गरुड की तरह इनको भी अजर-अमर माना जाता हैं।
उत्तर की ओर मुख शूकर का है। इनकी आराधना करने से अपार धन-सम्पत्ति, ऐश्वर्य,
यश, दिर्धायु प्रदान करने वाल व उत्तम
स्वास्थ्य देने में समर्थ हैं।
दक्षिणमुखी स्वरूप भगवान नृसिंह का है। जो भक्तों के भय, चिंता,
परेशानी को दूर करता हैं।
श्री हनुमान का ऊर्ध्वमुख
घोडे के समान हैं। इनका यह स्वरुप ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर प्रकट हुआ था।
मान्यता है कि हयग्रीवदैत्य का संहार करने के लिए वे अवतरित हुए। ऐसे पंचमुखी हनुमान
रुद्र कहलाने वाले बडे कृपालु और दयालु हैं।
पंचमुखी हनुमान के बारे
में पौराणिक कथा।
एक बार पांच मुंह वाला एक भयानक राक्षस प्रकट हुआ। उसने तपस्या करके
ब्रह्माजी से वरदान पाया कि मेरे रूप जैसा ही कोई व्यक्ति मुझे मार सके। ऐसा वरदान
प्राप्त करके वह समग्र लोक में भयंकर उत्पात मचाने लगा। सभी देवताओं ने भगवान से
इस कष्ट से छुटकारा मिलने की प्रार्थना की। तब प्रभु की आज्ञा पाकर हनुमानजी ने
वानर, नरसिंह, गरुड, अश्व और शूकर का
पंचमुख स्वरूप धारण किया। पंचमुखी हनुमान की पूजा-अर्चना से सभी देवताओं की उपासना
के समान फल मिलता है। हनुमान के पांचों मुखों में तीन-तीन सुंदर आंखें आध्यात्मिक,
आधिदैविक तथा आधिभौतिक तीनों तापों को छुडाने वाली हैं। ये मनुष्य
के विकारों को दूर करने वाले माने जाते हैं।
भक्त को शत्रुओं का नाश करने वाले हनुमान जी का हमेशा स्मरण करना
चाहिए। पंचमुखी हनुमान जी की उपासना से किए गए सभी बुरे कर्म एवं चिंतन के दोषों
से मुक्ति प्रदान करने वाला हैं।
पांच मुख वाले हनुमान जी
की प्रतिमा धार्मिक और तंत्र शास्त्रों में चमत्कारिक मानी गई है।