सफलता और समृद्धि के योग
किसी कुण्डली में क्या संभावनाएं हैं, यह ज्योतिष में योगों से देखा जाता है। भारतीय ज्योतिष में हजारों योगों का वर्णन है जो कि ग्रह, राशि और भावों इत्यादि के मिलने से बनते हैं। हम उन सारे योगों का वर्णन न करके, सिर्फ कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों का वर्णन करेंगे जिससे हमें पता चलेगा कि जातक कितना सफल और समृद्ध होगा। सफतला, समृद्धि और खुशहाली को मैं 'संभावना' कहूंगा।
किसी कुण्डली की संभावना निम्न तथ्यों से पता लगाई जा सकती है
1- लग्न की शक्ति
2- चन्द्र की शक्ति
3- सूर्य की शक्ति
4- दशम भाव की शक्ति
5- योग
लग्न, सूर्य, चंद्र और दशम भाव की शक्ति पहले दिए हुए 14 नियमों के आधार पर निर्धारित की जा सकती है। योग इस प्रकार हैं -
योगकारक ग्रह
सूर्य और चंन्द्र को छोडकर हर ग्रह दो राशियों का स्वामी होता हैं। अगर किसी कुण्डली में कोई ग्रह एक साथ केन्द्र और त्रिकोण का स्वामी हो जाए तो उसे योगकारक ग्रह कहते हैं। योगकारक ग्रह उत्तम फल देते हैं और कुण्डली की संभावना को भी बढाते हैं।
उदाहरण कुम्भ लग्न की कुण्डली में शुक्र चतुर्थ भाव और नवम भाव का स्वामी है। चतुर्थ केन्द्र स्थान होता है और नवम त्रिकोण स्थान होता है अत: शुक्र उदाहरण कुण्डली में एक साथ केन्द्र और त्रिकोण का स्वामी होने से योगकारक हो गया है। अत: उदाहरण कुण्डली में शुक्र सामान्यत: शुभ फल देगा यदि उसपर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं है।
राजयोग
अगर कोई केन्द्र का स्वामी किसी त्रिकोण के स्वामी से सम्बन्ध बनाता है तो उसे राजयोग कहते हैं। राजयोग शब्द का प्रयोग ज्योतिष में कई अन्य योगों के लिए भी किया जाता हैं अत: केन््द्र-त्रिकोण स्वामियों के सम्बन्ध को पाराशरीय राजयोग भी कह दिया जाता है। दो ग्रहों के बीच राजयोग के लिए निम्न सम्बन्ध देखे जाते हैं -
1 युति
2 दृष्टि
3 परिवर्तन
युति और दृष्टि के बारे में हम पहले ही बात कर चुके हैं। परिवर्तन का मतलब राशि परिवर्तन से है। उदाहरण के तौर पर सूर्य अगर च्ंद्र की राशि कर्क में हो और चन्द्र सूर्य की राशि सिंह में हो तो इसे सूर्य और चन्द्र के बीच परिवर्तन सम्बन्ध कहा जाएगा।
धनयोग
एक, दो, पांच, नौ और ग्यारह धन प्रदायक भाव हैं। अगर इनके स्वामियों में युति, दृष्टि या परिवर्तन सम्बन्ध बनता है तो इस सम्बन्ध को धनयोगा कहा जाता है।
दरिद्र योग
अगर किसी भी भाव का युति, दृष्टि या परिवर्तन सम्बन्ध तीन, छ:, आठ, बारह भाव से हो जाता है तो उस भाव के कारकत्व नष्ट हो जाते हैं। अगर तीन, छ:, आठ, बारह का यह सम्बन्ध धन प्रदायक भाव (एक, दो, पांच, नौ और ग्यारह) से हो जाता है तो यह दरिद्र योग कहलाता है।
जिस कुण्डली में जितने ज्यादा राजयोग और धनयोग होंगे और जितने कम दरिद्र योग होंगे वह जातक उतना ही समृद्ध होगा।
किसी कुण्डली में क्या संभावनाएं हैं, यह ज्योतिष में योगों से देखा जाता है। भारतीय ज्योतिष में हजारों योगों का वर्णन है जो कि ग्रह, राशि और भावों इत्यादि के मिलने से बनते हैं। हम उन सारे योगों का वर्णन न करके, सिर्फ कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों का वर्णन करेंगे जिससे हमें पता चलेगा कि जातक कितना सफल और समृद्ध होगा। सफतला, समृद्धि और खुशहाली को मैं 'संभावना' कहूंगा।
किसी कुण्डली की संभावना निम्न तथ्यों से पता लगाई जा सकती है
1- लग्न की शक्ति
2- चन्द्र की शक्ति
3- सूर्य की शक्ति
4- दशम भाव की शक्ति
5- योग
लग्न, सूर्य, चंद्र और दशम भाव की शक्ति पहले दिए हुए 14 नियमों के आधार पर निर्धारित की जा सकती है। योग इस प्रकार हैं -
योगकारक ग्रह
सूर्य और चंन्द्र को छोडकर हर ग्रह दो राशियों का स्वामी होता हैं। अगर किसी कुण्डली में कोई ग्रह एक साथ केन्द्र और त्रिकोण का स्वामी हो जाए तो उसे योगकारक ग्रह कहते हैं। योगकारक ग्रह उत्तम फल देते हैं और कुण्डली की संभावना को भी बढाते हैं।
उदाहरण कुम्भ लग्न की कुण्डली में शुक्र चतुर्थ भाव और नवम भाव का स्वामी है। चतुर्थ केन्द्र स्थान होता है और नवम त्रिकोण स्थान होता है अत: शुक्र उदाहरण कुण्डली में एक साथ केन्द्र और त्रिकोण का स्वामी होने से योगकारक हो गया है। अत: उदाहरण कुण्डली में शुक्र सामान्यत: शुभ फल देगा यदि उसपर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं है।
राजयोग
अगर कोई केन्द्र का स्वामी किसी त्रिकोण के स्वामी से सम्बन्ध बनाता है तो उसे राजयोग कहते हैं। राजयोग शब्द का प्रयोग ज्योतिष में कई अन्य योगों के लिए भी किया जाता हैं अत: केन््द्र-त्रिकोण स्वामियों के सम्बन्ध को पाराशरीय राजयोग भी कह दिया जाता है। दो ग्रहों के बीच राजयोग के लिए निम्न सम्बन्ध देखे जाते हैं -
1 युति
2 दृष्टि
3 परिवर्तन
युति और दृष्टि के बारे में हम पहले ही बात कर चुके हैं। परिवर्तन का मतलब राशि परिवर्तन से है। उदाहरण के तौर पर सूर्य अगर च्ंद्र की राशि कर्क में हो और चन्द्र सूर्य की राशि सिंह में हो तो इसे सूर्य और चन्द्र के बीच परिवर्तन सम्बन्ध कहा जाएगा।
धनयोग
एक, दो, पांच, नौ और ग्यारह धन प्रदायक भाव हैं। अगर इनके स्वामियों में युति, दृष्टि या परिवर्तन सम्बन्ध बनता है तो इस सम्बन्ध को धनयोगा कहा जाता है।
दरिद्र योग
अगर किसी भी भाव का युति, दृष्टि या परिवर्तन सम्बन्ध तीन, छ:, आठ, बारह भाव से हो जाता है तो उस भाव के कारकत्व नष्ट हो जाते हैं। अगर तीन, छ:, आठ, बारह का यह सम्बन्ध धन प्रदायक भाव (एक, दो, पांच, नौ और ग्यारह) से हो जाता है तो यह दरिद्र योग कहलाता है।
जिस कुण्डली में जितने ज्यादा राजयोग और धनयोग होंगे और जितने कम दरिद्र योग होंगे वह जातक उतना ही समृद्ध होगा।