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महाभारत
में कई घटना, संबंध और ज्ञान-विज्ञान के रहस्य छिपे हुए हैं।
महाभारत में जो कुछ भी लिखा है वो आपको दुनिया की किसी भी किताब में मिल जाएगा,
लेकिन जो कुछ नहीं लिखा है, कहीं भी नहीं मिलेगा अर्थात महाभारत में
संपूर्ण धर्म, दर्शन, समाज, संस्कृति, युद्ध और ज्ञान-विज्ञान की बातें शामिल
हैं। ऐसा कुछ भी नहीं है, जो महाभारत में नहीं है।
18 संख्या का महत्व महाभारत युद्ध में:-
18 दिनों तक चला था महाभारत का युद्ध।
18 दिन तक अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था भगवान कृष्ण ने।
18 अध्याय हैं श्रीमद्भगवत गीता में।
18 अध्याय:- अर्जुनविषादयोग, सांख्ययोग, कर्मयोग, ज्ञानकर्मसंन्यासयोग, कर्मसंन्यासयोग, आत्मसंयमयोग, ज्ञानविज्ञानयोग, अक्षरब्रह्मयोग, राजविद्याराजगुह्ययोग, विभूतियोग, विश्वरूपदर्शनयोग, भक्तियोग, क्षेत्र, क्षेत्रज्ञविभागयोग, गुणत्रयविभागयोग, पुरुषोत्तमयोग, दैवासुरसम्पद्विभागयोग, श्रद्धात्रयविभागयोग और मोक्षसंन्यासयोग।
18 पुराण:- ऋषि वेदव्यास ने महाभारत ग्रंथ की रचना की
जिसमें कुल 18 पर्व हैं- आदि पर्व, सभा
पर्व, वन पर्व, विराट पर्व, उद्योग पर्व, भीष्म पर्व, द्रोण
पर्व, अश्वमेधिक पर्व, महाप्रस्थानिक
पर्व, सौप्तिक पर्व, स्त्री पर्व,
शांति पर्व, अनुशासन पर्व, मौसल पर्व, कर्ण पर्व, शल्य
पर्व, स्वर्गारोहण पर्व तथा आश्रम्वासिक पर्व।
18 अक्षोहिनी सेना:- कौरवों और पांडवों की सेना भी कुल 18 अक्षोहिनी सेना
थी जिनमें कौरवों की 11 और पांडवों की 7 अक्षोहिनी सेना थी।
18 प्रमुख सूत्रधार के नाम:- धृतराष्ट्र, दुर्योधन, दुशासन, कर्ण,
शकुनि, भीष्म, द्रोण,
कृपाचार्य, अश्वस्थामा, कृतवर्मा,
श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर, भीम,
अर्जुन, नकुल, सहदेव,
द्रौपदी एवं विदुर।
18 योद्धा ही जीवित:- अंतिम आश्चर्य यह है कि महाभारत के युद्ध के पश्चात कौरवों की तरफ से 3 और पांडवों के तरफ से 15 यानी कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे। सवाल यह है कि सब कुछ 18
की संख्या में ही क्यों होता गया? इसमें कोई रहस्य छिपा है?