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श्रीराम के परम भक्त हनुमान को बल, बुद्धि व विद्या का
दाता कहा जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीराम की सहायता करने और
दुष्टों का नाश करने के लिए ही भगवान शिव ने हनुमान के रूप में अवतार लिया था।
हनुमानजी भगवान शिव के सबसे श्रेष्ठ अवतार माने जाते हैं। इस अवतार में शंकर ने एक
वानर का रूप धरा था।
हनुमानजी बचपन से ही बहुत बलवान थे
लेकिन एक बार उनके जीवन में ऐसी घटना घटी जिसके कारण वह परम शक्तिशाली हो गए और
इसी शक्ति के बल पर उन्होंने राम-रावण युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाई।
शिवमहापुराण के अनुसार देवताओं और दानवों को अमृत
बांटते हुए विष्णुजी के मोहिनी रूप को देखकर लीलावश शिवजी ने कामातुर होकर अपना
वीर्यपात कर दिया। सप्तऋषियों ने उस वीर्य को कुछ पत्तों में संग्रहित कर लिया।
समय आने पर सप्तऋषियों ने भगवान शिव के वीर्य को वानरराज केसरी की पत्नी अंजनी के
कान के माध्यम से गर्भ में स्थापित कर दिया, जिससे
अत्यंत तेजस्वी एवं प्रबल पराक्रमी श्री हनुमानजी उत्पन्न हुए।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार बाल्यकाल में जब
हनुमान सूर्यदेव को फल समझकर खाने को दौड़े तो घबराकर देवराज इंद्र ने हनुमानजी पर
व्रज का वार किया था और वे निश्तेज हो गए थे तब वायु देव ने समस्त संसार की वायु
का प्रवाह रोक दिया था। तब भगवान ब्रह्मा ने हनुमान को स्पर्श कर पुन: चैतन्य किया
था। उस समय सभी देवताओं ने हनुमानजी को वरदान दिए थे। इन वरदानों से ही हनुमानजी
परम शक्तिशाली बन गए।
भगवान सूर्य ने हनुमानजी को अपने तेज का सौवां
भाग देते हुए कहा था कि जब इसमें शास्त्र अध्ययन करने की शक्ति आ जाएगी तब में ही
इसे शास्त्रों का ज्ञान दूंगा, जिससे
यह अच्छा वक्ता होगा और शास्त्रज्ञान में इसकी समानता करने वाला कोई नहीं होगा। धर्मराज यम ने हनुमानजी को वरदान दिया कि यह मेरे
दण्ड से अवध्य और नीरोग होगा। कुबेर ने वरदान दिया कि इस बालक को युद्ध में कभी
विषाद नहीं होगा तथा मेरी गदा संग्राम में भी इसका वध न कर सकेगी।
ब्रह्मा
ने हनुमानजी को वरदान दिया कि यह बालक दीर्घायु, महात्मा
और सभी प्रकार के ब्रह्दण्डों से अवध्य होगा। युद्ध में कोई भी इसे जीत नहीं
पाएगा। यह इच्छा अनुसार रूप धारण कर सकेगा, इसकी
गति इसकी इच्छा के अनुसार तीव्र या मंद हो जाएगी। भगवान शंकर ने यह वरदान दिया कि यह मेरे और मेरे
शस्त्रों द्वारा भी अवध्य रहेगा। देवशिल्पी विश्वकर्मा ने वरदान दिया कि मेरे बनाए
हुए जितने भी शस्त्र हैं, उनसे यह अवध्य रहेगा और चिंरजीवी होगा।
देवराज इंद्र ने हनुमानजी को यह वरदान दिया था कि
यह बालक आज से यह मेरे व्रज द्वारा भी अवध्य रहेगा। वरुण ने वरदान दिया कि दस लाख वर्ष की आयु हो
जाने पर भी मेरे पाश और जल से इस बालक की मृत्यु नहीं होगी।
हनुमान सुग्रीव के मंत्री बन गए। हनुमान ने ही
पत्नी की खोज में भटकते भगवान श्रीराम व सुग्रीव की मित्रता कराई। हनुमान सीता की
खोज में समुद्र को पार कर लंका गए और वहां उन्होंने अद्भुत पराक्रम दिखाए। हनुमान
ने राम-रावण युद्ध में भी अपना पराक्रम दिखाया और संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण के
प्राण बचाए। अहिरावण को मारकर लक्ष्मण व राम को बंधन से मुक्त कराया।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब हनुमानजी लंका में
माता सीता की खोज करते-करते रावण के महल में गए तो वहां रावण की पत्न मंदोदरी को
देखकर उन्हें माता सीता समझ बैठे और बहुत प्रसन्न हुए लेकिन बहुत सोच-विचार करने
के बाद हनुमानजी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि रावण के महल में इस प्रकार आभूषणों से
सुसज्जित यह स्त्री माता सीता नहीं हो सकती।
लंका में बहुत ढुंढने के बाद भी जब माता सीता का
पता नहीं चला तो हनुमानजी उन्हें मृत समझ बैठे लेकिन फिर उन्हें भगवान श्रीराम का
स्मरण हुआ और उन्होंने पुन: पूरी शक्ति से सीताजी की खोज प्रारंभ की और अशोक
वाटिका में सीताजी को खोज निकाला।
इस प्रकार हनुमान अवतार लेकर भगवान शिव ने अपने
परम भक्त श्रीराम की सहायता की।