प्राचीन काल से लेकर अब तक भारतीय समाज तंत्र विद्या, काली शक्तियों और जादू-टोने जैसी विधाओं में बहुत विश्वास करता है. तर्क विज्ञान का समाज में अपनी पहुंच बना लेने के बावजूद आज भी कई ऐसे प्रश्न हैं जिनका जवाब ना तो विज्ञान के पास है और ना ही किसी तर्क-वितर्क के जरिए ऐसी घटनाओं की वजह समझी जा सकती है. जिस देश में हमेशा से ही तंत्र साधना का महत्व रहा हो वहां कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं जो क्यों हुईं, कैसे हुईं, इनके पीछे वजह क्या है, यह सब सवाल मस्तिष्क में चोट तो करते हैं लेकिन इनका जवाब कभी कोई नहीं जान पाता. आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताएंगे जहां तंत्र-साधना से जुड़े कई ऐसे रहस्य छिपे हैं जिनका जवाब आज तक कोई नहीं ढूंढ़ पाया है.

 

देश का पहला शून्य मंदिर जिसे गुरु मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, ऐसा ही एक स्थान है जहां कई वर्षों से तंत्र साधना की जाती रही है. आपको यकीन नहीं होगा लेकिन सच यही है कि इस मंदिर का निर्माण तक सिर्फ तंत्र साधना के ही उद्देश्य से करवाया गया था. तीन मंजिला इस मंदिर का हर दरवाजा, यहां तक कि इसकी आकृति भी अष्टकोणीय है. पुरातत्व वैज्ञानिक, इतिहासकार और यहां तक कि जादू-टोने में सिद्ध व्यक्ति भी यह जानने की कोशिश में हैं कि इस मंदिर में कौन-कौन सी तांत्रिक क्रियाएं होती थीं.

 

क्षेत्रीय जानकारों का कहना है कि इस मंदिर के हर तल पर अलग-अलग देवताओं के मंदिर हैं. प्रथम तल पर गुरु वरिष्ठ, दूसरे तल पर राधा और तीसरे तल पर किसी देवता की मूर्ति नहीं है इसीलिए इसे शून्य का प्रतीक माना जाता है.


इस मंदिर की खासियत यह है कि इसमें मौजूद आठ द्वारों में से मात्र एक गुरु का था और बाकी सात सप्तपुरियों (अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, अवंतिका और पुरी) के नाम पर रखे गए थे.


बंगाल के तत्कालीन महाराज जयनारायण घोषाल ने जब सन 1814 में इस मंदिर का निर्माण करवाया था तब यह चौरासी बीघा जमीन पर फैला था लेकिन अब इसका ढांचा टूटने लगा है. योग और तंत्र साधना करने के उद्देश्य से बनाए गए ऐसे मंदिर भारत में सिर्फ दो जगहों पर ही हैं. पहला यही मंदिर जो बंगाल के हतेश्वरी में स्थित है और दूसरा दक्षिण भारत के भदलपुर में है.

 

योग साधकों और तांत्रिकों का मानना है कि इस मंदिर के तीनों तलों पर स्थित मंदिरों में सबसे ज्यादा अहमियत शून्य मंदिर का है क्योंकि शून्य को प्राप्त कर लेना ही सबसे बड़ी तपस्या है. ब्रह्मांड शून्य है, पृथ्वी शून्य है. उनका कहना है कि शून्य की साधना अद्भुत है, इसका संबंध सीधे ईश्वर पर केन्द्रित है, इसीलिए शून्य को प्राप्त कर लेने वाला ही सबसे बड़ा साधक है. तंत्र साधना करने वालों का कहना है कि कोई भी साधना तभी पूरी मानी जाती है जब आपका कोई गुरु या मार्गदर्शक हो. पहले तल पर गुरु और तीसरे तल पर शून्य के होने का यही अर्थ है कि गुरु से होती हुई यह साधना शून्य पर जाकर खत्म होती है और शून्य को प्राप्त कर लेना साधना की चरम सीमा है. यह वो अवस्था है जब हर चीज अनंत होने लगती है. मंदिर के हर तल पर अष्टकोणीय सात ऐसे खाने बने हैं जहां बैठकर प्राचीन काल में लोग तांत्रिक क्रियाएं और योग साधनाएं किया करते थे. इस मंदिर के भीतर बंगला भाषा में गुरु के शब्द भी लिखे हैं और कुछ ऐसी आकृतियां भी बनी हुई हैं जिनके पीछे के रहस्य आज तक शोध का ही एक विषय बने हुए हैं. इनके पीछे छिपी हकीकत को समझा नहीं जा पा रहा है.