तत्वदर्शी कौन ?



सत -असत को जो अपने अनुभव एवं आत्मबोध के स्तर पर यथार्थरूपसे जानता हो l वही वास्तव में तत्वदर्शी होता है l पोथी -पुरणोंको पढ़- पढ़ कर जिसने अपने  मस्तिष्क को बोझीला बना दिया हो , पोथी -पुराणोंकी जानकारी से अपना मस्तिष्क भर कर स्वयं को तत्वदर्शी घोषित करता हो तो निश्चित रूपसे जानना चाहिए वह व्यक्ति तत्वदर्शी नहीं है l 

  जो महापुरुष सत्य -असत्य का भेद अपने अनुभव के आधारपर बतावे वही अस्सल में तत्वदर्शी होते है l किस पुराण में क्या लिखा है ,इसकी चर्चा सच्चे तत्वदर्शी जादा करते ही नहीं है l पुरणोंका कचरा अपने मस्तिष्क में भरकर सत्य का दर्शन नहीं कराया जाता है l सत्य का बोध पुरणोंके , ग्रंथोंके आधारपर नहीं कराया जाता है ,वह तो आत्मज्ञानी गुरुओंकी करुणा कृपा से ही होता है l 
  हजारों पोथी -पुराण ,ग्रन्थ पढनेसे कोई तत्वदर्शी , तत्वज्ञानी नहीं होता है l पोथी -पुराण , ग्रन्थकी जानकारी अपने मस्तिष्कमें  भरनेवाला जादा से जादा पंडित बन सकता है , लेकिन वह कभी भी तत्वदर्शी बन नहीं सकता है l जरा सोचिये , कोई सच्चा संत पुराणोंकी अधूरी बात लोगोंको बताकर स्वयं को असली दूसरोंको नकली साबित करने में अपना जीवन बर्बाद करता है क्या ?
       नकली संत की पहचान केवल एक ही उदाहरण से समझे l 
अगर किसी  पुराण या ग्रन्थ में ऐसा लिखा हो कि अमुक - अमुक ने इतने दिन में सृष्टि बनाई l इस बात को सत्य मानकर स्वयं को तत्वदर्शी माननेवाला पुराण की जैसी की तैसी बात बताता हो तो वह निच्छित रूपसे अज्ञानी तथा नकली संत है ऐसा मानना चाहिए l क्योंकि असली संत यह सवाल खड़ा करता है कि -
  * जिस किसीने सृष्टि बनाई उसे देखा किसने ?
  * सृष्टि बनानेवालेने कहाँ बैठकर सृष्टि बनाई ?
  * सृष्टि बनानेवालेको देखा किसने ?
  * जिस किसीने सृष्टि बनानेवालेको देखा ,वह देखनेवाला 
          किस जगह  याने किस स्थान पर  बैठकर देखा ?
*   सृष्टि बनानेवाला  बड़ा  या सृष्टि को बनाते हुए देखनेवाला बड़ा  ?
*   वह कौन था जो सुष्टि के बनने के पहलेसे ही मौजूद था ?
       ग्रन्थ तथा पुराण की बात पढ़कर उपर्युक्त सवाल जिसके मन में उठते नहीं है  वह कैसा तत्वदर्शी है ? यही असली और नकली संत की पहचान है l