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महाभारत की कथा का प्रारंभ हस्तिनापुर के महाप्रतापी राजा शांतनु से होता है।
महाराज शांतनु के पूर्वजों में महाराज भरत और उनके पिता महाराज दुष्यन्त का विशेष
उल्लेख है। महाराज दुष्यन्त चक्रवर्ती राजा थे उनके बल एवं पौरुष की मिसाल नहीं दी
जा सकती। उन्होंने महर्षि विश्वामित्र एवं मेनका द्वारा उत्पन्न एवं दुष्यन्त एवं
शकुंतला से उत्पन्न हुए थे भरत, जो बचपन में शेरों के साथ खेला करते
थे एवं उनके मुंह में हाथ डालकर उनके दांत गिना करते थे। वे बड़े ही निडर, बलशाली एवं बुद्धिमान थे। उन्हीं के नाम पर हमारे देश का नाम ‘भारत’ पड़ा।
महाराज शांतनु की कथा |
एक बार महाराज शांतनु शिकार खेलने
के लिए वन में गए। उसी वन से होकर गंगा नदी बहती थी। नदी के तट का दृश्य बड़ा ही
मनोहर एवं मुग्ध कर देने वाला था। तब महाराज शांतनु ने नदी किनारे रथ रुकवाया और
उतरकर वहीं टहलने लगे। अचानक उनकी दृष्टि एक सुंदर युवती पर पड़ी, जो नदी से निकलकर जल के ऊपर इस प्रकार चलने लगी मानो पृथ्वी पर
चल रही हो। उसकी अद्वितीय सुंदरता एवं जल पर चलने का चमत्कार देखकर महाराज शांतनु
उस पर मुग्ध हो गए और अपनी सुध-बुध खो बैठे।
वह सुंदरी चलती हुई महाराज शांतनु
के निकट आई तो अधीर होकर उन्होंने पूछा, ‘‘तुम कौन हो सुंदरी और इस वन प्रदेश
में अकेली क्यों घूम रही हो ?’’
‘‘आप क्यों पूछ रहे हैं ?’’ खनखनाते स्वर में स्त्री ने पूछा।
उसकी मधुर आवाज सुनकर तो राजा
शांतनु और अधिक बेचैन हो उठे और बोले, ‘‘हे मधुरभाषिणी ! तुम्हें देखकर मैं
अपने होश खो बैठा हूं। मैं हस्तिनापुर का शासक शांतनु हूं तथा तुमसे विवाह का
इच्छुक हूं।’’
‘‘मैं आपका प्रस्ताव स्वीकार कर सकती
हूं राजन, मेरी दो शर्तें हैं ?’’
‘‘कैसी शर्ते देवि ? जल्दी बताओ, हमें हर शर्त स्वीकार है।’’
‘‘पहली शर्त तो यह है कि आप मुझसे यह
नहीं पूछेंगे कि मैं कौन हूं अथवा कहां से आई हूं। दूसरी शर्त यह है कि मैं जो कुछ
भी करुंगी, आप उसे सिर्फ देखेंगे, किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेंगे। जिस दिन भी आप ने मेरी
शर्तों का उल्लंघन किया, मैं उसी दिन आपको छोड़कर चली
जाऊंगी।’’
ये शर्ते सुनते ही महाराज शांतनु
स्तब्ध रह गए। ये शर्तें सामान्य स्थिति में उन्हें किसी भी कीमत पर स्वीकार न
होतीं, किंतु इस समय उस सुंदरी के सौंदर्य
ने उन पर जादू किया हुआ था, अत: दिल के हाथों मजबूर होकर
उन्होंने ये शर्तें स्वीकार कर लीं और वचन दे दिया कि मैं तुम्हारी शर्तों के
अनुसार कभी तुमसे कुछ नहीं पूछूंगा और न कुछ कहूंगा।
यह वचन पाकर सुंदरी उनसे विवाह के
लिए राजी हो गई और वहीं दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया।
महाराज शांतनु को गंगा के किनारे
मिली थी, इसलिए उन्होंने उसे ‘गंगा’ नाम दिया और अपने महल में ले आए।
इसी बीच महाराज शांतनु राज-काज की बातें भूलकर गंगा के प्यार में खोए रहे और
राज-काज मंत्रियों ने संभाला। अब उन्हें गंगा के अतिरिक्त और कुछ सूझता ही न था।