प्रभु की तस्वीर प्रकृति के कण-कण

एक धार्मिक प्रवृति का व्यक्ति था,भगवान में उसकी बड़ी श्रद्धा व आस्था थी। उसने मन ही मन प्रभु की एक तस्वीर बना रखी थी।

एक दिन भक्ति से भरकर उसने भगवान से कहा," भगवान मुझसे बात करो और एक बुलबुल चहकने लगी लेकिन उस आदमी ने नहीं सुना।"

दूसरी बार वह जोर से चिल्लाया,"भगवान मुझसे कुछ बोलो तो और आकाश में घटाएं उमङऩे-घुमडऩे लगी बादलो की गडगड़ाहट होने लगी लेकिन आदमी ने कुछ नहीं सुना।"

उसने चारो तरफ निहारा, ऊपर-नीचे सब तरफ देखा और बोला,"भगवान मेरे सामने तो आओ और बादलो में छिपा सूरज चमकने लगा पर उसने देखा ही नहीं।"

आखिरकार वह आदमी गला फाड़कर चीखने लगा। भगवान मुझे कोई चमत्कार दिखाओ तभी एक शिशु का जन्म हुआ और उसका प्रथम रुदन गूंजने लगा किन्तु उस आदमी ने ध्यान नहीं दिया।
अब तो वह व्यक्ति रोने लगा और भगवान से याचना करने लगा,"भगवान मुझे स्पर्श करो मुझे पता तो चले तुम यहाँ हो, मेरे पास हो,मेरे साथ हो।"

उसी समय एक तितली उड़ते हुए आकर उसकी हथेली पर बैठ गयी लेकिन उसने तितली को उड़ा दिया और उदास मन से आगे चला गया। भगवान इतने सारे रूपों में उसके सामने आया, इतने सारे ढंग से उससे बात की पर उस आदमी ने पहचाना ही नहीं शायद उसके मन में प्रभु की तस्वीर ही नहीं थी।

ईश्वर प्रकृति के कण-कण में है लेकिन हम उसे किसी और रूप में देखना चाहते है इसलिए उसे कहीं देख ही नहीं पाते। इसे भक्ति में दुराग्रह भी कहते है। भगवन अपने तरीके से आना चाहते हैं और हम अपने तरीके से देखना चाहते हैं। जिससे बात नहीं बन पाती। हमें भगवान को हर जगह हर पल महसूस करना चाहिए।