एक और बदरीनाथ (हिमाचल)

हिमालय की गोद में बहुत से ऐसे स्थल हैं, जिनके साथ धार्मिक आस्थाएं तो जुडी ही हैं, साथ ही इन स्थलों की यात्रा रोमांचकारी पर्यटन का पर्याय भी मानी जाती हैं। मीलों लम्बा और दुर्गम सफर तय करके जब श्रद्धालु या पर्यटक इन स्थलों पर पहुंचते हैं, तो प्रकृति के बीच धार्मिक गीतों की स्वर लहरियां सुनकर अभिभूत हो उठते हैं। किन्नर कैलाश भी ऐसा ही एक स्थल है।

तिब्बत स्थित मानसरोवर कैलाश के बाद किन्नर कैलाश को ही दूसरा बडा कैलाश पर्वत माना जाता है। समुद्र तल से 18,168फुट की ऊंचाई पर स्थित किन्नर कैलाश भगवान शिव की साधना स्थली रहा है, शैव मतावलंबियों की ऐसी आस्था है और धर्म-ग्रन्थों में भी इस बात का जिक्र आया है। किन्नर कैलाश के बारे में अनेक मान्यताएं भी प्रचलित हैं। कुछ विद्वानों के विचार में महाभारत काल में इस कैलाश का नाम इन्द्रकीलपर्वत था, जहां भगवान शंकर और अर्जुन का युद्ध हुआ था और अर्जुन को पासुपातास्त्रकी प्राप्ति हुई थी। यह भी मान्यता है कि पाण्डवों ने अपने बनवास काल का अन्तिम समय यहीं पर गुजारा था। किन्नर कैलाश को वाणासुर का कैलाश भी कहा जाता है। क्योंकि वाणासुरशोणितपुरनगरी का शासक था जो कि इसी क्षेत्र में पडती थी। कुछ विद्वान रामपुर बुशैहररियासत की गर्मियों की राजधानी सराहन को शोणितपुरनगरी करार देते हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि किन्नर कैलाश के आगोश में ही भगवान कृष्ण के पोते अनिरुधका विवाह ऊषा से हुआ था। इसी पर्वत श्रृंखला के सिरे पर करीब साठ फुट ऊंचा तिकोना पत्थर का शिवलिंगबना है, जिसके दर्शन किन्नौरघाटी के कल्पानगरसे भी किए जा सकते हैं। यह शिवलिंग21हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है और इस शिवलिंगकी एक चमत्कारी बात यह है कि दिन में कई बार यह रंग बदलता है। सूर्योदय से पूर्व सफेद, सूर्योदय होने पर पीला, मध्याह्न काल में यह लाल हो जाता है और फिर क्रमश:पीला, सफेद होते हुए संध्या काल में काला हो जाता है। क्यों होता है ऐसा, इस रहस्य को अभी तक कोई नहीं समझ सका है। किन्नौरवासी इस शिवलिंगके रंग बदलने को किसी दैविक शक्ति का चमत्कार मानते हैं, कुछ बुद्धिजीवियों का मत है कि यह एक स्फटिकीयरचना है और सूर्य की किरणों के विभिन्न कोणों में पडने के साथ ही यह चट्टान रंग बदलती नजर आती है। बुद्धिजीवियों का दलील है कि यदि आसमान मेघों से आच्छादित हो तो यह चट्टान रंग नहीं बदलती और अपने सामान्य स्वरूप में ही रहती है। कुछ विद्वानों की यह भी मान्यता है कि पाण्डवों ने अपने गुप्तवासके दौरान यहां इस पवित्र शिवलिंगकी स्थापना करके भगवान शिव की आराधना की थी।