संत
यह रूसी
कहानी किसी गांव में रहनेवाले एक युवक के बारे में है जिसे सभी मूर्ख कहते
थे. बचपन से ही वह सबसे यही सुनता आ रहा था कि वह मूर्ख है.
उसके माता-पिता, रिश्तेदार, पड़ोसी- सभी उसे मूर्ख कहते थे और वह इस बात पर
यकीन करने लगा कि जब इतने बड़े-बड़े लोग उसे मूर्ख कहते हैं तो वह यकीनन
मूर्ख ही होगा. किशारावस्था को पार कर वह जवान हो गया और उसे लगने लगा कि
वह पूरी ज़िंदगी मूर्ख ही बना रहेगा. इस अवस्था से बाहर निकलने के बहुत
प्रयास किए लेकिन उसने जो भी काम किया उसे लोगों ने मूर्खतापूर्ण ही कहा.
यह मानव
स्वभाव है. कोई कभी पागलपन से उबरकर सामान्य हो जाता है लेकिन कोई उसे
सामान्य मानने के लिए तैयार नहीं होता. वह जो कुछ भी करता है उसमें लोग
पागलपन के लक्षण खोजने लगते हैं. लोगों की आशंकाएं उस व्यक्ति को संकोची
बना देतीं हैं और उसके प्रति लोगों के संदेह गहरे होते जाते हैं. यह एक
कुचक्र है. रूसी गांव में रहनेवाले उस युवक ने भी मूर्ख की छवि से निकलने
के भरसक प्रयास किए लेकिन उसके प्रति लोगों के रवैये में बदलाव नहीं आया.
वे उसे पहले की भांति मूर्ख कहते रहे.
कोई संत वहां
से गुज़रा. युवक रात के एकांत में संत के पास गया और उनसे बोला, “मैं इस
छवि में बंधकर रह गया हूं. मैं सामान्य व्यक्ति की तरह रहना चाहता हूं
लेकिन वे मुझे मुक्त नहीं करना चाहते. उन्होंने मेरी स्वीकार्यता के सारे
मार्ग और द्वार बंद कर दिए हैं कि मैं कहीं उनसे बाहर न आ जाऊं. मैं उनकी
ही भांति सब कुछ करता हूं फिर भी मूर्ख कहलाता हूं. मैं क्या करूं?”
संत ने कहा,
“तुम एक काम करो. जब कभी कोई तुमसे कहे, ‘देखो, कितना सुंदर सूर्यास्त है,’
तुम कहो, ‘तुम मूर्ख हो, सिद्ध करो कि इसमें सुंदर क्या है? मुझे तो इसमें
कोई सौंदर्य नहीं दीखता, तुम सिद्ध करो कि यह सुंदर है.’ यदि कोई कहे, ‘यह
गुलाब का फूल बहुत सुंदर है,’ तो उसे आड़े हाथों लेकर कहो, ‘इसे साबित
करो! किस आधार पर तुम्हें यह साधारण सा फूल सुंदर लग रहा है? यहां गुलाब के
लाखों फूल हैं. लाखों-करोड़ों फूल खिल चुके हैं और लाखों-करोड़ों फूल
खिलते रहेंगे; फिर गुलाब के इस फूल में क्या खास बात है? तुम किन विशेषताओं
और तर्कों के आधार पर यह सिद्ध कर सकते हो कि यह गुलाब का फूल सुंदर है?”
“जब कोई
तुमसे कहे, ‘लेव तॉल्स्तॉय की यह कहानी बहुत सुंदर है,’ तो उसे पकड़कर उससे
पूछो, ’सिद्ध करो कि यह कहानी सुंदर है; इसमें सुंदर क्या है? यह सिर्फ एक
साधारण कहानी है— ऐसी हजारों-लाखों कहानियां किताबों में बंद हैं, इसमें
भी वही त्रिकोण है जो हर कहानी में होता है: दो आदमी और एक औरत या एक औरत
और दो आदमी… यही त्रिकोण हमेशा होता है. सभी प्रेम कहानियों में यह त्रिकोण
होता है. इसमें नई बात क्या है?”
युवक ने कहा, “ठीक है. मैं ऐसा ही करूंगा.”
संत ने कहा,
“हां, ऐसा करने का कोई मौका मत छोड़ना, क्योंकि कोई भी इसे सिद्ध नहीं कर
पाएगा, क्योंकि इन्हें सिद्ध नहीं किया जा सकता. और जब वे इसे सिद्ध नहीं
कर पाएंगे तो वे अपनी मूर्खता और अज्ञान को पहचान लेंगे और तुम्हें मूर्ख
कहना बंद कर देंगे. अगली बार जब मैं वापस आऊं, तब तुम मुझे यहां घटी सारी
बातें बताना.”
कुछ दिनों
बाद संत का उस गांव में दोबारा आना हुआ, और इससे पहले कि वह युवक से मिलते,
गांव के लोगों ने उनसे कहा, “यह तो चमत्कार ही हो गया. हमारे गांव का सबसे
मूर्ख युवक एकाएक सबसे बुद्धिमान व्यक्ति बन गया है. हम आपको उससे मिलवाना
चाहते हैं.”
संत को पता
था कि वे किस ‘बुद्धिमान व्यक्ति’ की बात कर रहे हैं. उन्होंने कहा, “हां,
मैं भी उससे मिलना चाहूंगा, बल्कि मैं उससे मिलना ही चाहता था.”
वे संत को
मूर्ख युवक के पास लेकर गए और मूर्ख ने उनसे कहा, “आप चमत्कारी पुरुष हैं,
दिव्य हैं. आपके उपाय ने काम कर दिया! आपके बताए अनुसार मैंने सभी को मूर्ख
और अज्ञानी कहना शुरु कर दिया. कोई प्रेम की बात करता था, कोई सौंदर्य की,
कला की, साहित्य की, शिल्प की बात करता था और मेरा एक ही व्यक्तव्य होता
था: ‘सिद्ध करो!’ वे सिद्ध नहीं कर पाते थे और मूर्खवत अनुभव करने लगते
थे.”
“यह कितना
अजीब है. मैं सोच ही नहीं सकता था कि इसमें कोई इतनी गहरी बात होगी. मैं
केवल इतना ही चाहता था कि वे मुझे मूर्ख समझना बंद कर दें. यह अद्भुत बात
है कि अब मुझे कोई मूर्ख नहीं कहता बल्कि सबसे बुद्धिमान वयक्ति कहता है,
लेकिन मैं जानता हूं कि वही हूं जो मैं था- और इस तथ्य को आप भी जानते
हैं.”
संत ने कहा,
“इस रहस्य की चर्चा किसी से न करना. इसे अपने तक ही रखना. तुम्हे लगता है
कि मैं कोई संत-महात्मा हूं? हां, यही रहस्य है लेकिन मैं भी उसी प्रकार से
संत बना हूं जिस तरह से तुम बुद्धिमान बन गए हो.”
दुनिया में
सब कुछ इसी सिद्धांत पर कार्य करता है. तुम कभी किसी से पूछते हो, इस जीवन
का अर्थ क्या है? तुम गलत प्रश्न पूछते हो. और कोई-न-कोई इसके उत्तर में
कहता है, “जीवन का उद्देश्य यह है” — लेकिन उसे कोई सिद्ध नहीं कर सकता.
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There is one Russian story, a small story. In a village a man, a young man, is called an idiot by everybody. From his very childhood he has heard that, that he is an idiot. And when so many people are saying it — his father, his mother, his uncles, the neighbors, and everybody — of course he starts believing that he must be an idiot. How can so many people be wrong? — and they are all important people. But when he becomes older and this continues, he becomes an absolutely sealed idiot; there is no way to get out of it. He tried hard but whatsoever he did was thought to be idiotic.
There is one Russian story, a small story. In a village a man, a young man, is called an idiot by everybody. From his very childhood he has heard that, that he is an idiot. And when so many people are saying it — his father, his mother, his uncles, the neighbors, and everybody — of course he starts believing that he must be an idiot. How can so many people be wrong? — and they are all important people. But when he becomes older and this continues, he becomes an absolutely sealed idiot; there is no way to get out of it. He tried hard but whatsoever he did was thought to be idiotic.
That is very
human. Once a man goes mad he may become normal again but nobody is
going to take him as normal. He may do something normal but you will
suspect that there must be something insane about it. And your suspicion
will make him hesitant and his hesitancy will make you suspicion
stronger; then there is a vicious circle. So that man tried in every
possible way to look wise, to do wise things, but whatsoever he did
people would always say it was idiotic.
A saint was
passing by. He went to the saint in the night when there was nobody
about and asked him, “Just help me to get out of this locked state. I am
sealed in. They don’t let me out; they have not left any window or door
open so that I can jump out. And whatsoever I do, even if it is exactly
the same as they do, still I am an idiot. What should I do?”
The saint
said, “Do just one thing. Whenever somebody says,’Look how beautiful the
sunset is,’ you say, “you idiot, prove it! What is beautiful there? I
don’t see any beauty. You prove it.’ If somebody says,’Look at that
beautiful rose flower,’ catch hold of him and tell him,’Prove it! What
grounds have you to call this ordinary flower beautiful? There have been
millions of rose flowers. There are millions, there will be millions in
the future; what special thing has this rose flower got? And what are
your fundamental reasons which prove logically that this rose flower is
beautiful?’
“If somebody
says,’This book of Leo Tolstoy is very beautiful,’ just catch hold of
him and ask him,’Prove where it is beautiful; what is beautiful in it?
It is just an ordinary story — just the same story which has been told
millions of times, just the same triangle in every story: either two men
and one woman or two women and one man, but the same triangle. All love
stories are triangles. So what is new in it?”‘
The man said, “That’s right.”
The saint
said, “Don’t miss any chance, because nobody can prove these things;
they are unprovable. And when they cannot prove it, they will look
idiotic and they will stop calling you an idiot. Next time, when I
return, just give me the information how things are going.
And next
time when the saint was coming back, even before he could meet the old
idiot, people of the village informed him, “A miracle has happened. We
had an idiot in our town; he has become the wisest man. We would like
you to meet him.”
And the saint knew who that “wisest man” was. He said, “I would certainly love to see him. In fact I was hoping to meet him.”
The saint
was taken to the idiot and the idiot said, “You are a miracle-worker, a
miracle man. The trick worked! I simply started calling everyone an
idiot, stupid. Somebody would be talking of love, somebody would be
talking of beauty, somebody would be talking of art, painting,
sculpture, and my standpoint was the same:’Prove it!’ And because they
could not prove it, they looked idiotic.
And it is a
strange thing. I was never hoping to gain this much out of it. All that I
wanted was to get out of that confirmed idiocy. It is strange that now I
am no longer an idiot, I have become the most wise man, and I know I am
the same — and you know it too.”
But the
saint said, “Never tell this secret to anybody else. Keep the secret to
yourself. Do you think I am a saint? Yes, the secret is
between us. This is how I became a saint. This is how you have become a wise man.”
between us. This is how I became a saint. This is how you have become a wise man.”
This is how
things go on in the world. Once you ask, What is the meaning of life?
you have asked the wrong question. And obviously somebody will say,
“this is the meaning of life” — and it cannot be proved