क्रोध को कैसे नियंत्रित करें?
कुछ लोगों को लगता है कि क्रोध किए बिना वे अपना काम नहीं करवा सकते। हम क्यों हमेशा बच्चों, पत्नी, कर्मचारियों,वेटर या दुकानदार वगैरह, जो लोग हम पर निर्भर हैं उन पर क्रोधित हो जाते हैं? क्या यह हमारी कमज़ोरी है या ताकत? क्या हमने कभी यह महसूस किया है कि जब वे हमारे क्रोध का शिकार बनते हैं , तब उनमें हमारे लिए कितनी बुरी भावनाएँ पैदा होती हैं? क्रोध वास्तव में क्या कारण है जो टाला न जा सके या परिणाम है, जो हमारी दैनिक समस्याओं से निपटने में असमर्थता के कारण उत्पन्न होता है? - क्या गुस्सा कमज़ोरी है या ताकतप्रश्नकर्ता : तब फिर मेरा कोई अपमान करे और मैं शांति से बैठा रहूँ तो वह निर्बलता नहीं कहलाएगी?
: नहीं, ओहोहो! अपमान सहन करना, वह तो महान बलवानता कहलाएगी! अभी हमें कोई गालियाँ दे, तो हमें कुछ भी नहीं होगा। उसके प्रति मन भी नहीं बिगड़ेगा, यही बलवानता! और निर्बलता तो ये सभी किच-किच करते ही रहते हैं न, जीव मात्र लड़ाई-झगड़े करते ही रहते हैं न, वह सब निर्बलता कहलाएगी। यानी कि अपमान शांति से सहन करना, वह महान बहादुरी है और ऐसा अपमान एक बार ही पार कर जाए, एक स्टेप लाँघ जाएँ, तो सौ स्टेप लाँघने की शक्ति आ जाती है। आपकी समझ में आया न? सामनेवाला यदि बलवान हो, तो उसके सामने तो जीवमात्र निर्बल हो ही जाता है, वह तो उसका स्वाभाविक गुण है। लेकिन यदि निर्बल मनुष्य हमें छेड़े, फिर भी यदि हम उसे कुछ भी नहीं करें, तब वह बहादुरी कहलाएगी।
वास्तव में निर्बल का रक्षण करना चाहिए और बलवान का सामना करना चाहिए, लेकिन इस कलियुग मे ऐसे लोग रहे ही नहीं हैं न! अभी तो निर्बल को ही मारते रहते हैं और बलवान से भागते हैं। बहुत कम लोग ऐसे हैं, जो निर्बल की रक्षा करें और बलवान का प्रतिकार करें। यदि ऐसे हों तो वह क्षत्रिय गुण कहा जाएगा॒। बाकी, सारा संसार कमज़ोर को मारता रहता है, घर जाकर आदमी पत्नी पर बहादुरी दिखाता है। खूँटे से बंधी गाय को मारेंगे तो वह कहाँ जाएगी? और खुला रखकर मारें तो? भाग जाएगी या सामना करेगी।
खुद की शक्ति होने के बावजूद मनुष्य सामनेवाले को परेशान नहीं करे, अपने दुश्मन को भी परेशान नहीं करे, वह बहादुरी कहलाती है। अभी कोई आप पर क्रोध करे और आप उस पर क्रोध करो, तो वह कायरता नहीं कहलाएगी? अर्थात् मेरा क्या कहना है कि ये क्रोध-मान-माया-लोभ, वे सभी निर्बलताएँ ही हैं। जो बलवान है, उसे क्रोध करने की ज़रूरत ही कहाँ रही? लेकिन यह तो क्रोध का जितना ताप है, उस ताप से सामनेवाले को वश में करने जाता है, लेकिन जिसमें क्रोध नहीं है, उसके पास कुछ तो होगा न? उसके पास 'शील' नाम का जो चारित्र है, उससे जानवर भी वश में आ जाते हैं। बाघ, शेर, सारे दुश्मन, सभी वश में आ जाते हैं!
क्रोध क्या है?
क्रोध खतरनाक क्यों है?क्रोध यानी खुद अपने घर को आग लगाना। खुद के घर में घास भरी हो और दियासलाई जलाए, उसका नाम क्रोध। अर्थात् पहले खुद जलता है और बाद में पड़ौसी को जलाता है।
घास के बड़े-बड़े गट्ठर किसी के खेत में इकट्ठे किए हो, लेकिन एक ही दियासलाई जलाने पर क्या होगा?
प्रश्नकर्ता : जल जाएगा।
: उसी तरह ही एक बार क्रोध करने पर, दो साल में जो कमाया हो, वह मिट्टी में मिल जाता है। क्रोध यानी प्रकट अग्नि। उसे खुद को पता नहीं चलता कि मैंने मिट्टी में मिला दिया। क्योंकि बाहर की चीज़ों में कोई कमी नहीं आती, लेकिन भीतर सब खत्म हो जाता है। अगले जन्म की जो सभी तैयारियाँ होगी न, उनमें से थोड़ा खर्च हो जाता है। और फिर ज़्यादा खर्च हो जाए तो क्या होगा? यहाँ मनुष्य था, तब रोटी खाता था फिर वहाँ चारा (घास) खाने (जानवर में) जाना पड़ेगा। यह रोटी छोड़कर चारा खाने जाना पड़े, वह अच्छा कहलाएगा?
वर्ल्ड में कोई मनुष्य क्रोध को नहीं जीत सकता। क्रोध के दो रूप हैं, एक कढ़ापा (कुढ़न) और दूसरा, अजंपा (बेचैनी के रूप में)। जो लोग क्रोध को जीतते हैं, वे कुढ़ापा को जीतते हैं। इसमें ऐसा रहता है कि एक को दबाने जाए, तो दूसरा बढ़ेगा और कहे कि 'मैंने क्रोध को जीता', तो फिर मान बढ़ेगा। ड्ढह्य वास्तव में क्रोध को पूर्णतया जीता नहीं सकता। दृश्य (जो दिखाई दे वैसा है) क्रोध को जीता, ऐसा कहा जाएगा।
उदासी क्या है?जिस क्रोध में तंत हो, वही क्रोध कहलाता है। उदाहरण के तौर पर, पति-पत्नि रात में खूब झगड़े, क्रोध ज़बरदस्त धधक उठा, पूरी रात दोनों जागते हुए पड़े रहे। सुबह बीवी ने चाय का प्याला ज़रा पटककर रखा, तो पति समझ जाएगा कि अभी तंत है! यही क्रोध है। फिर भले ही तंत कितने भी समय के लिए हो! अरे, कई लोगों को तो सारी ज़िंदगीभर रहता है! बाप बेटे का मुँह नहीं देखता और बेटा बाप का मुँह नहीं देखता! क्रोध का तंत तो बिगड़े हुए चेहरे पर से ही पता चल जाताहै।
तंत एक ऐसी चीज़ है कि पंद्रह साल पहले आपका अपमान किया हो और वह व्यक्ति पंद्रह साल तक आपको नहीं मिला हो, लेकिन वह व्यक्ति आपको आज मिल जाए तो मिलते ही आपको सब याद आ जाता है, वह तंत। बाकी तंत किसी का भी जाता नहीं है। बड़े-बड़े साधु महाराज भी तंतवाले होते हैं। रात को यदि आपने कुछ मज़ाक उड़ाया हो न, तो पंद्रह-पंद्रह दिनों तक आप से बात नहीं करेंगे, वह तंत!
मैं क्रोध करते-करते थक गया हूँ। क्रोध से छुटकारा कैसे पाएँ?लोग पूछते है, ''यह हमारे क्रोध का क्या इलाज करें?'' मैंने कहा, ''अभी आप क्या करते हैं?'' तब कहते हैं, ''क्रोध को दबाते रहते है।'' मैंने पूछा, ''पहचान कर दबाते हो या बिना पहचाने? क्रोध को पहचानना तो होगा न?'' क्रोध और शांति दोनों साथ-साथ बैठे होते है। अब हम क्रोध को नहीं पहचानें और शांति को दबा दें, तो शांति मर जाएगी बल्कि! अतः दबाने जैसी चीज़ नहीं है। तब उसकी समझ में आया कि क्रोध अहंकार है। अब किस प्रकार के अहंकार से क्रोध होता है, इसकी तह़कीकात करनी चाहिए।
इस बेटे ने ग्लास फोड़ा तो क्रोध आ गया, वहाँ हमारा क्या अहंकार है? इस ग्लास का नुकसान होगा, ऐसा अहंकार है। ऩफा-नुकसान का अहंकार है हमारा! इसलिए ऩफा-नुकसान के अहंकार को, उस पर विचार कर के, निर्मूल करो। गलत अहंकार को सँभालकर रखने से क्रोध होता रहता है। क्रोध है, लोभ है, वे सभी तो वास्तव में मूलतः सारे अहंकार ही हैं
कुछ लोगों को लगता है कि क्रोध किए बिना वे अपना काम नहीं करवा सकते। हम क्यों हमेशा बच्चों, पत्नी, कर्मचारियों,वेटर या दुकानदार वगैरह, जो लोग हम पर निर्भर हैं उन पर क्रोधित हो जाते हैं? क्या यह हमारी कमज़ोरी है या ताकत? क्या हमने कभी यह महसूस किया है कि जब वे हमारे क्रोध का शिकार बनते हैं , तब उनमें हमारे लिए कितनी बुरी भावनाएँ पैदा होती हैं? क्रोध वास्तव में क्या कारण है जो टाला न जा सके या परिणाम है, जो हमारी दैनिक समस्याओं से निपटने में असमर्थता के कारण उत्पन्न होता है? - क्या गुस्सा कमज़ोरी है या ताकतप्रश्नकर्ता : तब फिर मेरा कोई अपमान करे और मैं शांति से बैठा रहूँ तो वह निर्बलता नहीं कहलाएगी?
: नहीं, ओहोहो! अपमान सहन करना, वह तो महान बलवानता कहलाएगी! अभी हमें कोई गालियाँ दे, तो हमें कुछ भी नहीं होगा। उसके प्रति मन भी नहीं बिगड़ेगा, यही बलवानता! और निर्बलता तो ये सभी किच-किच करते ही रहते हैं न, जीव मात्र लड़ाई-झगड़े करते ही रहते हैं न, वह सब निर्बलता कहलाएगी। यानी कि अपमान शांति से सहन करना, वह महान बहादुरी है और ऐसा अपमान एक बार ही पार कर जाए, एक स्टेप लाँघ जाएँ, तो सौ स्टेप लाँघने की शक्ति आ जाती है। आपकी समझ में आया न? सामनेवाला यदि बलवान हो, तो उसके सामने तो जीवमात्र निर्बल हो ही जाता है, वह तो उसका स्वाभाविक गुण है। लेकिन यदि निर्बल मनुष्य हमें छेड़े, फिर भी यदि हम उसे कुछ भी नहीं करें, तब वह बहादुरी कहलाएगी।
वास्तव में निर्बल का रक्षण करना चाहिए और बलवान का सामना करना चाहिए, लेकिन इस कलियुग मे ऐसे लोग रहे ही नहीं हैं न! अभी तो निर्बल को ही मारते रहते हैं और बलवान से भागते हैं। बहुत कम लोग ऐसे हैं, जो निर्बल की रक्षा करें और बलवान का प्रतिकार करें। यदि ऐसे हों तो वह क्षत्रिय गुण कहा जाएगा॒। बाकी, सारा संसार कमज़ोर को मारता रहता है, घर जाकर आदमी पत्नी पर बहादुरी दिखाता है। खूँटे से बंधी गाय को मारेंगे तो वह कहाँ जाएगी? और खुला रखकर मारें तो? भाग जाएगी या सामना करेगी।
खुद की शक्ति होने के बावजूद मनुष्य सामनेवाले को परेशान नहीं करे, अपने दुश्मन को भी परेशान नहीं करे, वह बहादुरी कहलाती है। अभी कोई आप पर क्रोध करे और आप उस पर क्रोध करो, तो वह कायरता नहीं कहलाएगी? अर्थात् मेरा क्या कहना है कि ये क्रोध-मान-माया-लोभ, वे सभी निर्बलताएँ ही हैं। जो बलवान है, उसे क्रोध करने की ज़रूरत ही कहाँ रही? लेकिन यह तो क्रोध का जितना ताप है, उस ताप से सामनेवाले को वश में करने जाता है, लेकिन जिसमें क्रोध नहीं है, उसके पास कुछ तो होगा न? उसके पास 'शील' नाम का जो चारित्र है, उससे जानवर भी वश में आ जाते हैं। बाघ, शेर, सारे दुश्मन, सभी वश में आ जाते हैं!
क्रोध क्या है?
क्रोध खतरनाक क्यों है?क्रोध यानी खुद अपने घर को आग लगाना। खुद के घर में घास भरी हो और दियासलाई जलाए, उसका नाम क्रोध। अर्थात् पहले खुद जलता है और बाद में पड़ौसी को जलाता है।
घास के बड़े-बड़े गट्ठर किसी के खेत में इकट्ठे किए हो, लेकिन एक ही दियासलाई जलाने पर क्या होगा?
प्रश्नकर्ता : जल जाएगा।
: उसी तरह ही एक बार क्रोध करने पर, दो साल में जो कमाया हो, वह मिट्टी में मिल जाता है। क्रोध यानी प्रकट अग्नि। उसे खुद को पता नहीं चलता कि मैंने मिट्टी में मिला दिया। क्योंकि बाहर की चीज़ों में कोई कमी नहीं आती, लेकिन भीतर सब खत्म हो जाता है। अगले जन्म की जो सभी तैयारियाँ होगी न, उनमें से थोड़ा खर्च हो जाता है। और फिर ज़्यादा खर्च हो जाए तो क्या होगा? यहाँ मनुष्य था, तब रोटी खाता था फिर वहाँ चारा (घास) खाने (जानवर में) जाना पड़ेगा। यह रोटी छोड़कर चारा खाने जाना पड़े, वह अच्छा कहलाएगा?
वर्ल्ड में कोई मनुष्य क्रोध को नहीं जीत सकता। क्रोध के दो रूप हैं, एक कढ़ापा (कुढ़न) और दूसरा, अजंपा (बेचैनी के रूप में)। जो लोग क्रोध को जीतते हैं, वे कुढ़ापा को जीतते हैं। इसमें ऐसा रहता है कि एक को दबाने जाए, तो दूसरा बढ़ेगा और कहे कि 'मैंने क्रोध को जीता', तो फिर मान बढ़ेगा। ड्ढह्य वास्तव में क्रोध को पूर्णतया जीता नहीं सकता। दृश्य (जो दिखाई दे वैसा है) क्रोध को जीता, ऐसा कहा जाएगा।
उदासी क्या है?जिस क्रोध में तंत हो, वही क्रोध कहलाता है। उदाहरण के तौर पर, पति-पत्नि रात में खूब झगड़े, क्रोध ज़बरदस्त धधक उठा, पूरी रात दोनों जागते हुए पड़े रहे। सुबह बीवी ने चाय का प्याला ज़रा पटककर रखा, तो पति समझ जाएगा कि अभी तंत है! यही क्रोध है। फिर भले ही तंत कितने भी समय के लिए हो! अरे, कई लोगों को तो सारी ज़िंदगीभर रहता है! बाप बेटे का मुँह नहीं देखता और बेटा बाप का मुँह नहीं देखता! क्रोध का तंत तो बिगड़े हुए चेहरे पर से ही पता चल जाताहै।
तंत एक ऐसी चीज़ है कि पंद्रह साल पहले आपका अपमान किया हो और वह व्यक्ति पंद्रह साल तक आपको नहीं मिला हो, लेकिन वह व्यक्ति आपको आज मिल जाए तो मिलते ही आपको सब याद आ जाता है, वह तंत। बाकी तंत किसी का भी जाता नहीं है। बड़े-बड़े साधु महाराज भी तंतवाले होते हैं। रात को यदि आपने कुछ मज़ाक उड़ाया हो न, तो पंद्रह-पंद्रह दिनों तक आप से बात नहीं करेंगे, वह तंत!
मैं क्रोध करते-करते थक गया हूँ। क्रोध से छुटकारा कैसे पाएँ?लोग पूछते है, ''यह हमारे क्रोध का क्या इलाज करें?'' मैंने कहा, ''अभी आप क्या करते हैं?'' तब कहते हैं, ''क्रोध को दबाते रहते है।'' मैंने पूछा, ''पहचान कर दबाते हो या बिना पहचाने? क्रोध को पहचानना तो होगा न?'' क्रोध और शांति दोनों साथ-साथ बैठे होते है। अब हम क्रोध को नहीं पहचानें और शांति को दबा दें, तो शांति मर जाएगी बल्कि! अतः दबाने जैसी चीज़ नहीं है। तब उसकी समझ में आया कि क्रोध अहंकार है। अब किस प्रकार के अहंकार से क्रोध होता है, इसकी तह़कीकात करनी चाहिए।
इस बेटे ने ग्लास फोड़ा तो क्रोध आ गया, वहाँ हमारा क्या अहंकार है? इस ग्लास का नुकसान होगा, ऐसा अहंकार है। ऩफा-नुकसान का अहंकार है हमारा! इसलिए ऩफा-नुकसान के अहंकार को, उस पर विचार कर के, निर्मूल करो। गलत अहंकार को सँभालकर रखने से क्रोध होता रहता है। क्रोध है, लोभ है, वे सभी तो वास्तव में मूलतः सारे अहंकार ही हैं