अगर आता हो बार-बार गुस्सा तो ऐसे दूर करें...


मौन। चौबीस घंटे में पांच-सात मिनट मौन रखें। मौन का अर्थ है अपने से भी बात न करें। ध्यान रखिए मौन और चुप्पी में फर्क है। हम लोग चुप्पी रखते हैं और उसी को मौन मान लेते हैं। पति-पत्नी के बीच कुछ वार्तालाप हो जाए, कुछ खटपट हो जाए, बात नहीं करना हो तो बच्चों के माध्यम से बात की जाती है। बच्चे से बोल दिया पिताजी से कह देना यह ले आना, पिताजी ने कह दिया समय नहीं है। उनसे पूछो आज आप बात नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कह दिया आज अपना मौन है। 

चुप्पी बाहर का मामला है और मौन भीतर घटता है। चुप्पी वाला मौन तो लोगों को दिनभर में दस-बारह बार हो जाता होगा। इसलिए दो मिनट, पांच मिनट एकदम मौन हो जाइए। मौन का एक लाभ होता है, हमारा क्रोध नियंत्रित हो जाता है। क्रोध भक्ति में बाधा है। 

ध्यान के द्वारा विषय का संग होने से मन में विषय को प्राप्त करने, भोगने की कामना उत्पन्न हो जाती है और विघ्न उपस्थित होने पर क्रोध पैदा हो जाता है। यह क्रोध कोई नया पैदा नहीं होता, चित्त में प्रसुप्त क्रोध ही जाग्रत हो जाता है। यह तत्काल तो जीव के शरीर तथा मन को जलाता ही है और भी पुष्ट होकर विच्छिन्न अवस्था में लौटता है।

उस प्रकार बार-बार क्रोध करते रहने से क्रोध बलवान होता जाता है। जब जीव प्रबल क्रोध की पकड़ में होता है तो अपना 'मैं भूल जाता है। उसे कौन, क्या, कैसा, किस जगह का भी ध्यान नहीं रहता। बस साक्षात क्रोध रूप ही हो जाता है। इसका मूल कारण संग ही है जो प्रसुप्तावस्था से क्रोध को उदार बना देता है। योग और ध्यान के माध्यम से ही आप क्रोध से छुटकारा पा सकते हैं। योग और गुरुमंत्र का प्रभाव से क्रोध को कम किया जा सकता है। यदि अवसर मिले तो योग्य गुरु से दीक्षा अवश्य लें।