रामायण का पांचवा अध्याय क्यों कहलाता है सुंदरकांड?


जो लोग सफलता अर्जित करना चाहते हैं, वे अपनी सफलता को सौंदर्य से जरूर जोड़ें। जीवन की सुंदरता का अर्थ है सफलता के साथ शांति। हनुमानजी की सफलता के लिए सुंदरकांड को याद किया जाता है। 

श्रीरामचरितमानस के इस पांचवें सोपान को लेकर लोग चर्चा करते हैं कि इसका नाम सुंदरकांड क्यों रखा गया, जबकि मानस के अन्य कांडों के नाम व्यक्ति या स्थितियों के नाम पर रखे गए हैं। बाललीला का बालकांड, अयोध्या की घटनाओं का अयोध्याकांड, जंगल के जीवन का अरण्यकांड, किष्किंधा राज्य के कारण किष्किंधाकांड, लंका के युद्ध की चर्चा लंका कांड में और जीवन के प्रश्नों का उत्तर फिलॉसफी के साथ उत्तरकांड में दिया गया है। 

फिर अचानक सुंदरकांड का नाम सुंदर क्यों रखा गया? दरअसल, लंका त्रिकुटाचल पर्वत पर बसी हुई थी। तीन पर्वत थे- पहला सुबैल, जहां के मैदान में युद्ध हुआ था। दूसरा, नील पर्वत, जहां राक्षसों के महल बसे हुए थे और तीसरे पर्वत का नाम है सुंदर पर्वत, जहां अशोक वाटिका निर्मित थी और यहीं हनुमानजी को पहली बार सीताजी के दर्शन हुए थे। इसलिए इसका नाम सुंदरकांड है। 

सुंदरकांड पढ़कर उनके भक्त जान जाते हैं कि जगत का वैभव और जगदीश का ऐश्वर्य एक साथ कैसे प्राप्त होता है। इसी दृष्टि से हमें भी अपनी सफलता की यात्रा को जब भी जरूरत पड़े और अवसर मिले, सुंदरकांड से गुजारते रहना चाहिए।