अच्छे काम करने वाले लोगों को कैसे ले जाया जाता है स्वर्ग?


गरुड़ पुराण में हम आपको पहले बता चुके हैं कि पापी लोगों को दक्षिणमार्ग से यमपुरी ले जाया जाता है। दक्षिण मार्ग से यमलोक गए हुए पापी पुरूष उस सभा को नहीं देख सकते। धर्मराजपुर में जाने के लिए चार भाग होते हैं, उसमें पापियों का गमन मैंने पूर्व में कहा। पूर्वादि तीन मार्ग जो धर्ममंदिर गए वे पुण्यादि कर किस रीति से उसमें जाते हैं। उसको सुनो। पूर्व सांसारिक वस्तुओं के सति तथा परिजातवृक्ष की छाया में आच्छादित एक रत्न मंडप है। उस मार्ग में अनेक विमानों से प्याप्त हंस व पक्षियों से शोभित विद्रुम, बगीचा तथा अमृतविंदु आदि से सुशोभित है। इस मार्ग से ब्रहर्षि , पुनीत राजर्षि, विद्याधर, आदि होते हैं। देवताओं की आराधना करने वाले, शिव भक्ति में तत्पर रहने वाले, माघ महीने में काष्ठ देने वाला उस मार्ग से धर्मराजपुर को जाते हैं। वर्षाऋतु में वैरागी पुरुष आ जाए तो उनका दान मान से सत्कार क रने वाला, दुखी पुरुषों को मधुर वाणी कहने वाला, रहने को जो जगह देव ,सत्य धर्म में रत, क्रोध-लोभ से रहित, माता-पिता की भक्ति में रत, गुरूसेवा करने वाला, भूमिदान देनेवाला, घर दान देनेवाला, गाय दान देनेवाला, विद्यादान देनेवाला, 

शुद्ध परायण भी अच्छा पुरुष, पवित्र और शुद्ध निर्मल पुरुष पूर्व द्वार से धर्मराजसभा में जाते हैं।दूसरा मार्ग उत्तर दिशा का है। जिसमें बड़े-बड़े रथ व पालकी रखी है। उस मार्ग में हंस, सार, चकवा-चकवी, पक्षियों से सुशोभित अमृत बिंदु युक्त तलाब है। वेद पढऩे वाले, अभ्यागत की पूजा करने वाले, दुर्गा, सूर्य, की सेवा करने वाले, पर्व में तीर्थ पर स्नान वाले। जो धर्मयुद्ध कर संग्राम में मरे, अनशन व्रत धारण कर मरे, वाराणसी, गोगृह में, तीर्थ जल में गिरकर जो मरे। ब्राह्मण के अर्थ स्वामी के निमित्त, योगाभ्यास से जो मरे। जो सुपात्र पूजक है। महादान में रत है, वे उत्तर दिशा के मार्ग से धर्मराज की सभा में प्रवेश करते हैं। तीसरा मार्ग पश्चिमदिशा का है, वन,रत्नों से मंदिर व्याप्त है, अमृत रस से सदा पूर्ण बावडिय़ों से युक्त है। 

वह मार्ग हाथी, घोड़ों से पूर्ण है। हाथी ऐरावत वंश के हैं, इस मार्ग से आत्मा का विचार करने वाले, स्हास्त्र चिंतन करने वाले, विष्णु के अनन्य भक्त, गायत्रीमंत्र जप करने वाले, परहिंसा, परद्रव्य, पर निंदा इनको नहीं करने वाले, अपनी स्त्री में आसक्त सन्त, अग्रिहोत्र , वेदपाठी, ब्रह्मचार, वानप्रस्थी, तपस्वी, मोह, पाषाण, कांचन, जिनके समान संयासी, ज्ञान-वैराग्य में सम्पन्न, सब प्राणियों का हित करने वाले, शिव, विष्णु के व्रत को करने वाले, कर्म को ब्रह्म में समर्पण करने वाले, कर्म ब्रह्म में समर्पण करने वाले, तीन ऋणों से विर्नियुक्त, पंचयज्ञ में रत, पितरों श्राद्ध करने वाले, समय पर संध्या के उपासक, नीच संगति से रहित तथा सत्संगति करने वाले ऐसे पुरुष अप्सरागणों के सहित विमान में बैठे अमृतपान करते हुए धर्मराज के मंदिर में जाते हैं। वे पश्चिम द्वार से प्रवेशकर सभा के अन्दर जाते हैं।