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हिन्दू धर्म में माना
जाता है कि भगवान शिव इस पूरे जगत का संचालन करते हैं और संहार भी। यही कारण है कि
धर्म शास्त्रों में श्रावण मास में भगवान शिव की आराधना का शेष मासों की तुलना में
अधिक महत्व है। शास्त्रों में श्रावण मास के महत्व को बताने वाली अनेक धार्मिक
प्रसंग हैं। इनमें अमरनाथ तीर्थ में भगवान शंकर द्वारा माता पार्वती को सुनाई
अमरत्व की कहानी का सबसे अधिक धार्मिक महत्व है। पौराणिक मान्यता है कि भगवान शंकर
ने अमरत्व का रहस्य बताने के लिए कहानी माता पार्वती को एकांत में सुनाई। कहानी
सुनने के दौरान माता पार्वती को नींद आ गई। किंतु उस कहानी को उस स्थान पर मौजूद
शुक यानि तोते ने सुन लिया। कहानी सुनकर शुक अमर हो गया। इसी शुक ने भगवान शंकर के
कोप से बचकर बाद में शुकदेव जी के रुप में जन्म लिया। इसके बाद नैमिषारण्य क्षेत्र
में शुकदेव जी ने यह अमर कथा भक्तों को सुनाई। मान्यता है कि यही पर भगवान शंकर ने
ब्रह्मा और विष्णु के सामने शाप दिया कि आने वाले युग में अमर कथा को सुनने वाले
अमर नहीं होंगे। किंतु यह कथा सुनकर पूर्व जन्म और इस जन्म में किए पाप और दोषों
से मुक्त हो जाएंगे। उन भक्तों को शिवलोक मिलेगा। खास तौर पर सावन के माह में इस
अमर कथा का पाठ करने या सुनने वाला जनम-मरण के बंधन से छूट जाएगा। दूसरी पौराणिक
मान्यता के अनुसार मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी उम्र के लिए शिव की
प्रसन्नता के लिए श्रावण मास में कठिन तप किया। जिसके प्रभाव से मृत्यु के देवता
यमराज भी पराजित हो गए। यही कारण है कि श्रावण मास में शिव आराधना का विशेष महत्व
है। इस मास में शंकर जी की यथोपचार पूजा, अमर
कथा का पाठ करना या सुनने पर लौकिक कष्टों जिनमें पारिवारिक कलह,
अशांति, आर्थिक हानि और कालसर्प योग से आने वाली बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
इस प्रकार श्रावण मास में शिव पूजा से ग्रह बाधाओं और परेशानियों का अंत होता है।