कहते हैं "शरीर के घाव जल्दी भार जाते हैं पर आत्मा क घाव भरने में बहुत वक्त लगता है.
मानसिक प्रताड़ना को भावनात्मक और दिमागी प्रताड़ना भी कहा जा सकता है. लगातार किया जा रहा मानसिक दुर्व्यव्हार व्यक्ति के भावनात्मक विकास पर बहुत ही नकारात्मक असर छोड़ देता है. और आत्मा को छलनी कर देता है. किसी व्यक्ति को लगातार एहसास कराना कि वह बेकार है, नकारा है, प्यार और इज़्ज़त क काबिल नही है ये मानसिक प्रताड़ना ही होती है. व्यक्ति को विकास रंग रुप, व्यवहार और सामाजिक स्थिति कई बातों से नीचा दिखाया जाना भी मानसिक प्रताड़ना में आता है. बार बार उसकी कम़जोरियों को जताना तिरस्कार करना लगातार आलोचना करना अपमान करना मजाक बनाना आदि भी मानसिक प्रताड़ना है. ऐसा कम जो कोई व्यक्ति करने में असमर्थ है वो कम बार बार करने को कहना साथ ही ये उम्मीद रखना के वह व्यक्ति आपकी गुलामी करे भी मानसिक प्रताड़ना है. किसी इनसान कि भावनात्मक जरूरतों को नकारना, dominate करना, emotional ब्लैकमेल, अपशब्द बोलना ये सब कि पुनरव्रत्ति से पीड़ित व्यक्ति स्व्यं को कं आँकने लगता है. वह हर वक्त सहमा हुआ सा रहता है. बचपन में हुई मानसिक प्रताड़ना का असर व्यक्तितव पर ज़िंदगी भार रहता है. बहुत संभव है कि वह बच्चा आगे जाकर यही बर्ताव दूसरों के साथ करे. इस तरह कि प्रताड़ना भरे रिश्ते के बारे में किसी से बात करके अपने मन कि जमी हुई परतों को खोल देने से व्यक्ति का आत्मसम्मान और आत्मविश्वास वापस आ सकता है. आप उनसे संपर्क करे जो लगता है कि मनस्थिति को समझ सकते है. हो सकता है कि वे अपराधबोध, हीन भावना, उदासी एकाकिपन तिरस्कार कि भावना से बाहर आकर ज़िंदगी कि एक खुशनुमा शुरुआत कर सके. जब आप खुश रहोगे तभी आप दूसरों को खुश रख सकते हैं. अप्कने भयावह भूतकाल से बाहर निकले और भार मुक्त होकर आगे कि खुश्हाल ज़िंदगी बसर करें