दुनियाभरमें मशहूर हजारों साल पुरानी उत्तराखंडकी ऐतिहासिक और धार्मिक गाडूघडी तेल कलश शोभा यात्रा की अनोखी परंपरा आज भी परंपरागत तरीके से चल रही है। उत्तराखंडके टिहरी के नरेश के राजमहल नरेन्द्र नगर में इस कार्यक्रम की शुरुआत होती है।
सर्वप्रथम विश्व ख्याति प्राप्त बद्रीनाथ धाम के कपाट खोलने की तिथि राजमहल के राजा वर्तमान में मनुजेन्द्रशाह द्वारा घोषित की जाती है। तिथि घोषित होने के बाद महारानी वर्तमान में माला राजलक्ष्मीऔर राजमहल की कुंवारी राज कन्याओं द्वारा तिल का तेल निकालकर गाडूघडे में रखा जाता है। इस गाडूघडे को सुंदर वस्त्रों से सुसज्जित किया जाता है।
भगवान् बद्री विशाल के कपाट खुलने से सोलह दिन पहले बद्रीनाथ धाम के पुजारियों का एक जत्था उनके मूल गांव डिम्मर[सिमली] से गाजेबाजे के साथ राजमहल नरेन्द्र नगर, टिहरी के लिए रवाना होता है। राजमहल पहुंचने पर पुजारियों का भव्य स्वागत एवं आदर सत्कार किया जाता है। इस जत्थे की अगुवाई डिम्मरउमट्ठापंचायत के अध्यक्ष करते हैं। इस तेल कलश शोभा यात्रा का प्रतिनिधित्व डिम्मर, उमट्ठा, रविग्राम, जोशीमठ, सिरतोली, पाखी, जयकण्डी, नाकोट, कोला डुंग्री, राइखो, मज्याणीतथा लंगासूसे आए पुजारी करते हैं।
तेल कलश यात्रा का प्रथम चरण टिहरी के राजदरबारनरेन्द्र नगर से शुरू होकर ऋषिकेश, शिवपुरी, देवप्रयागतथा कर्णप्रयागहोते हुए पुजारियों के मूलग्रामडिम्मरमें समाप्त होता है। यहां पर स्थानीय पुजारी की देखरेख में नित्य पूजा एवं भोग के विधि-विधान के साथ चौरी नामक स्थान पर तेल कलश को श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ रखा जाता है। यहीं पर 27अप्रैल तक नित्य पूजा एवं भोग की परंपरा चलती है। गाडूघडी तेल कलश यात्रा के दूसरे चरण में 28अप्रैल को डिम्मर,कर्णप्रयागके लक्ष्मी नारायण एवं खाडूदेवता के मंदिर से सुबह आठ बजे बद्रीनाथ धाम के लिए रवाना होती है।
दूसरे चरण की यात्रा प्रारंभ होकर शिमलीबाजार पहुंचने पर इस यात्रा का भव्य स्वागत एवं पूजा-अर्चना श्रृद्धालुओं द्वारा की जाती है। यहां पर से तेल कलश शोभा यात्रा कर्णप्रयागकालेश्वर, लंगासू, नन्दाप्रयागा में ठाणा, चमोली, विरही, पीपलकोटी, पाखीतथा तन्गानों आदि स्थानों से होते हुए रात्रि विश्राम के लिए जोशीमठके नृसिंह मंदिर में पहुंचती है। मार्ग में यात्रा को अल्प समय के लिए भक्तों के दर्शनार्थ रोका जाता है तथा रात में पूजा-अर्चना की जाती है।
अगले दिन प्रात:तेल कलश शोभा यात्रा श्री बद्रीनाथ जी के मुख्य पुजारी श्री रावल जी तथा शंकराचार्य की गद्दी पांडुकेशरके लिए रवाना होती है। पांडुकेशरमें रात्रि विश्राम के बाद अगले दिन ३० अप्रैल को सुबह तेल कलश रावल जी शंकराचार्य की गद्दी एवं उद्धव जी की डोली के साथ अपने अंतिम पडाव भगवान् बद्री विशाल जी के लिए रवाना हो जाती है। जहां पर भगवान् बद्री विशाल के कपाट खुलने तक रात भर पूजा-अर्चना की जाती है। अगले दिन अर्थात् एक मई को भोर में भगवान् बद्रीनाथ जी के कपाट खुलने पर बद्रीनाथ जी के अभिषेक पर प्रतिदिन यह तिल का तेल उपयोग में लाया जाता है।