बरसाना में राधा-कृष्ण भक्तों का साल भर तांता लगा रहता है। बरसाना जिसका मूल नाम ब्रह्मशरण है एक टिले पर बसा हुआ शहर है। जिसके बीचों-बीच एक पहाड़ी है जो कि बरसाने के मस्तिष्क पर आभूषण के समान है। यहाँ लाड़ली जी का बहुत बड़ा मंदिर है। राधा रानी को लोग यहाँ प्यार से 'लाड़लीजी' कहते हैं।
राधा रानी का मंदिर बहुत ही सुन्दर और मनमोहक है। मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढिय़ों से होकर जाना होता है। बरसाना गांव के पास दो पहाडिय़ां मिलती है। उनकी घाटी बहुत ही कम चौड़ी है। मान्यता है कि गोपियां इसी मार्ग से दही-मक्खन बेचने जाया करती थी। यहीं पर कभी-कभी कृष्ण उनकी मटकी छीन लिया करते थे।
राधा रानी श्री कृष्ण की आह्लादिनी शक्ति एवं निकुच्जेश्वरी मानी जाती है। इसलिए राधा किशोरी के उपासकों का यह अतिप्रिय तीर्थ है। बरसाने की पुण्यस्थली बड़ी हरी-भरी तथा रमणीक है। इसकी पहाडिय़ों के पत्थर श्याम तथा गौरवर्ण के हैं जिन्हें यहाँ के निवासी कृष्णा तथा राधा रानी के अमर प्रेम का प्रतीक मानते हैं। बरसाने से 4 मील पर नन्दगांव है, जहां श्रीकृष्ण के पिता नंद जी का घर था। बरसाना-नंदगांव मार्ग पर संकेत नामक स्थान है।
जहां किंवदंती के अनुसार कृष्ण और राधा रानी का प्रथम मिलन हुआ था। (संकेत का शब्दार्थ है पूर्वनिर्दिष्ट मिलने का स्थान) यहाँ भाद्र शुक्ल अष्टमी (राधाष्टमी) से चतुर्दशी तक बहुत सुन्दर मेला लगता हैं। इसी प्रकार फाल्गुन शुक्ल अष्टमी, नवमी एवं दशमी को आकर्षक लीला होती है।
बसंत पंचमी से बरसाना होली के रंग में सरोबार हो जाता है। यहां के घर-घर में होली का उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। टेसू (पलाश) के फूल तोड़कर और उन्हें सुखा कर रंग और गुलाल तैयार किया जाता है। गोस्वामी समाज के लोग गाते हुए कहते हैं- "नन्दगाँव को पांडे बरसाने आयो रे।"
शाम को 7 बजे चौपाई निकाली जाती है जो लाड़ली मन्दिर होते हुए सुदामा चौक रंगीली गली होते हुए वापस मन्दिर आ जाती है। सुबह 7 बजे बाहर से आने वाले कीर्तन मंडल कीर्तन करते हुए गहवर वन की परिक्रमा करते हैं। बारहसिंघा की खाल से बनी ढ़ाल को लिए पीली पोखर पहुंचते हैं। बरसानावासी उन्हें रुपये और नारियल भेंट करते हैं, फिर नन्दगाँव के हुरियारे भांग-ठंडाई छानकर मद-मस्त होकर पहुंचते हैं। राधा-कृष्ण की झांकी के सामने समाज गायन करते हैं। बरसाना अपनी लठमार होली के लिए काफी प्रसिद्ध है।
लाड़ली जी के मंदिर में राधाष्टमी का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्यौहार भद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। राधाष्टमी के उत्सव में राधाजी को लड्डूओं का भोग लगाया जाता है और उस भोग को मोर को खिला दिया जाता है। जिन्हें राधा कृष्ण का स्वरूप माना जाता है। राधाष्टमी के उत्सव के लिए राधाजी के महल को काफी दिन पहले से सजाया जाता है। बरसाने में काफी सारे मनमोहक सरोवर है। जिनमें प्रमुख हैं प्रेम सरोवर,जल महल और बनोकर तालाब जो अपने अन्दर प्राकृतिक सौन्दर्य को समाहित किये हुए है।