अखण्डित शिवलिंग पूजनीय है


शिव  पुराण में कहा गया है कि गंगा के वेग को नियंत्रित करने के लिए भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में स्थान दिया। जिससे गंगा शिव के सिर का ताज बन गयी और उन्हें स्नान कराने लगी।साक्षात शिव की बजाय गंगा को शिवलिंग का स्नान करवाते देखने की इच्छा हो तो गुराजत के सूरत में  खंडित शिवलिंग है जिसके चारों ओर कई छिद्र हैं। खंडित शिवलिंग की पूजा  शास्त्रों में वर्जित है मगर यह शिवलिंग अखण्डित शिवलिंग की तरह पवित्र और पूजनीय है। शिवलिंग के प्रत्येक छेद्र से जल की धारा बाहर निकल रही है और शिव का जलाभिषेक कर ही है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है कुछ लुटेरे मंदिर में प्रवेश कर गये और यह सोच कर शिवलिंग पर कुल्हाड़ी से प्रहार करने लगे कि शिवलिंग के नीचे खजाना गड़ा हुआ है। कुल्हाड़ी के प्रहार से शिवलिंग खंडित हो गया।शिव जी को गुस्सा आ गया जिससे कई छेद्रों में से भंवरे निकले और धारा फूट कर बाहर निकलने लगी। इस जलधारा को गुप्तगंगा के नाम से जाना जाता है। गुप्तगंगा द्वारा नित्य जलाभिषेक के कारण खंडित होते हुए भी यह शिवलिंग पूजनीय है।