जयपुर में दो ऐसे मंदिर हैं जिसके पट केवल शिवरात्रि के दिन ही खुलते हैं। चांदनी चौक स्थित चौथा मंदिर राजेश्वरजी का और मोती डूंगरी पर शिव मंदिर है। ये दोनों मंदिर जयपुर के पूर्व राज-परिवार के निजी मंदिर हैं तथा केवल शिवरात्रि के दिन ही आम जनता के लिए खोले जाते हैं।
जयपुर के फेमस मोती डूंगरी और बिरला मंदिर के पीछे सीना ताने खड़े शिव मंदिर का गेट खुलने का भक्त एक साल तक इंतजार करते हैं। मोती डूंगरी किले के भीतर एकलिंगेश्वर महादेव मंदिर है, जो की जयपुर राज परिवार का निजी मंदिर है। इस मंदिर को आम भक्तों के लिए साल में एक ही बार खोल जाता है। इस मंदिर में खुद जयपुर के महाराजा और महारानियां शीश झुकाती थीं। खुद जयपुर की राजमाता गायत्री देवी तक कई बार यहाँ महादेव की पूजा करने पहुँचती थीं।
जयपुर को मंदिरों की नगरी भी कहा जाता है। यहां कोई मोहल्ला, कोई सड़क चौराहा, कोई चौक अथवा चौपड़ ऐसी नहीं है जहां एक या दो मंदिर स्थापित न हों। इतिहासकार बताते हैं कि जयपुर की स्थापना अश्वमेघ यज्ञ के साथ हुई और भगवान वरदराज की मूर्ति के सान्निध्य में यज्ञ संपादित किया गया।
वरदराज का मंदिर आज भी आमेर रोड पर बलदेवजी परसराम द्वारा के पीछे की टेकरी पर स्थित है। यहां यज्ञ की बावडिय़ां भी हैं। गौड़ीय संप्रदाय के मंदिर गोविंददेवजी, गोपीनाथजी और मदनमोहनजी की स्थापना भी जयपुर बनने के साथ हुई। मोती डूंगरी के गणेशजी, गलता की लाल डूंगरी पर विराजमान गणेशजी और गढग़णेश के मंदिर भी प्राचीन हैं। शिव मंदिरों में ताड़केश्वरजी का मंदिर और झारखंड महादेव तथा मां दुर्गा के रूप में आमेर की शिला देवी मंदिर का इतिहास भी जयपुर की स्थापना के साथ-साथ चलता है।