परीक्षा में सफलता के लिए

किसी भी कक्षा की परीक्षा या प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता पाने के लिए इन अचूक मंत्रों कापाठ करने से सफलता की संभावना बेहद प्रबल हो जाती हैं। 

स्नान कर प्रात:काल में स्वच्छ और शुद्ध आसान पर बैठकर भगवान राम का चित्र स्थापित करें।उन्हें चंदन लगाकर इस मंत्र का 108 बार जाप करें। परीक्षा में सफलता के लिए प्रभु राम के अचूकमंत्र...

परीक्षा में सफलता दिलाएंगे निम्न मंत्र
यह मंत्र दिलाएगा आपको परीक्षा में सफलता :-

जेहि पर कृपा करहिं जन जानि। कवि उर अजिर नचावहिं वानी॥

मोरि सुधारहिं सो सब भांति। जासु कृपा नहिं कृपा अघाति॥


परीक्षा में सफलता के लिए प्रभु राम  मंत्र...

परीक्षा भवन में प्रवेश करते समय राम का ध्यान करें और निम्नलिखित मंत्र का ग्यारह बार जप करें।

 प्रवसि नगर कीजै सब काजा हृदय राखि कौशलपुर राजा।

शुरू अंत में चैपाई के संपुट अवश्य लगाएं। यह बहुत प्रभावी टोटका हैयदि श्रद्धापूर्वक किया जाए तो अत्यंत चमत्कारिक परिणाम देता है।

कामनाओं की भी पूर्ति

हनुमान जी को लड्डू का भोग लगाएं।
पांच लौंग पूजा स्थान में देशी कपूर के साथ जलाएं।
फिर भस्म से तिलक करके बाहर जाए।

यह प्रयोग जीवन में समस्त शत्रुओं को परास्त करने में सक्षम होगावहीं इस यंत्र के माध्यम से आपअपनी मनोकामनाओं की भी पूर्ति करने में सक्षम होंगे।

हनुमान जी के 12 चमत्कारी नाम


हनुमानजी के बारह नामों की महिमा

हनुमान जी के बारह नाम का स्मरण करने से ना सिर्फ उम्र में वृद्धि होती है बल्कि समस्त सांसारिक सुखों की प्राप्ति भी होती है। बारह नामों का निरंतर जप करने वाले व्यक्ति की श्री हनुमानजी महाराज दसों दिशाओं एवं आकाश-पाताल से रक्षा करते हैं।

प्रस्तुत है केसरीनंदन बजरंग बली के 12 चमत्कारी और असरकारी नाम :

हनुमान जी के 12 चमत्कारी नाम

1 ॐ हनुमान

2 ॐ अंजनी सुत

3 ॐ वायु पुत्र

4 ॐ महाबल

5 ॐ रामेष्ठ

6 ॐ फाल्गुण सखा

7 ॐ पिंगाक्ष

8 ॐ अमित विक्रम

9 ॐ उदधिक्रमण

10 ॐ सीता शोक विनाशन

11 ॐ लक्ष्मण प्राण दाता

12 ॐ दशग्रीव दर्पहा

श्री बालाजी मन्दिर मेंहदीपुर


प्रख्यात मन्दिर

राजस्थान के सवाई माधोपुर और जयपुर की  सीमा रेखा पर स्थित मेंहदीपुर कस्बे में बालाजी का एक अतिप्रसिद्ध तथा प्रख्यात मन्दिर है जिसे श्री मेंहदीपुर बालाजी मन्दिर के नाम से जाना जाता है । भूत प्रेतादि ऊपरी बाधाओं के निवारणार्थ यहां आने वालों का तांता लगा रहता है। तंत्र मंत्रादि ऊपरी शक्तियों से ग्रसित व्यक्ति भी यहां पर बिना दवा और तंत्र मंत्र के स्वस्थ होकर लौटते हैं । सम्पूर्ण भारत से आने वाले  लगभग एक हजार रोगी और उनके  स्वजन यहां नित्य ही डेरा डाले रहते हैं ।


बालाजी का मन्दिर मेंहदीपुर नामक स्थान पर दो पहाड़ियों के बीच स्थित है , इसलिए इन्हें घाटे वाले बाबा जी भी कहा जाता है । इस मन्दिर में स्थित बजरंग बली की बालरूप मूर्ति किसी कलाकार ने नहीं बनाई, बल्कि यह स्वयंभू है । यह मूर्ति पहाड़ के अखण्ड भाग के रूप में मन्दिर की पिछली दीवार का कार्य भी करती है । इस मूर्ति को प्रधान मानते हुए बाकी मन्दिर का निर्माण कराया गया है । इस मूर्ति के सीने के बाईं तरफ़ एक अत्यन्त सूक्ष्म छिद्र है, जिससे पवित्र जल की धारा निरंतर बह रही है । 

यह जल बालाजी के चरणों तले स्थित एक कुण्ड में एकत्रित होता रहता है, जिसे भक्त्जन चरणामृत के रूप में अपने साथ ले जाते हैं । यह मूर्ति लगभग 1000 वर्ष प्राचीन है किन्तु  मन्दिर का निर्माण इसी सदी में कराया गया है ।

 मुस्लिम शासनकाल में कुछ बादशाहों ने इस मूर्ति को नष्ट करने की कुचेष्टा की, लेकिन वे असफ़ल रहे । वे इसे जितना खुदवाते गए मूर्ति की जड़ उतनी ही गहरी होती चली गई । थक हार कर उन्हें अपना यह कुप्रयास छोड़ना पड़ा । ब्रिटिश शासन के दौरान सन 1910 में बालाजी ने अपना सैकड़ों वर्ष  पुराना चोला स्वतः  ही त्याग दिया । भक्तजन इस चोले को लेकर समीपवर्ती मंडावर रेलवेस्टेशन पहुंचे, जहां से उन्हें चोले को गंगा में प्रवाहित करने जाना था । ब्रिटिश स्टेशन मास्टर ने चोले को निःशुल्क ले जाने से रोका और उसका लगेज करने लगा, लेकिन चमत्कारी चोला कभी मन भर ज्यादा हो जाता और कभी दो मन कम हो जाता । असमंजस में पड़े स्टेशन मास्टर को अंततः चोले को बिना लगेज ही जाने देना पड़ा और उसने भी बालाजी के चमत्कार को नमस्कार किया । इसके बाद बालाजी को नया चोला चढाया गया । यज्ञ हवन और ब्राह्मण भोज एवं धर्म ग्रन्थों का पाठ किया गया । एक बार फ़िर से नए चोले से एक नई ज्योति दीप्यमान हुई । यह ज्योति सारे विश्व का अंधकार दूर करने में सक्षम है । बालाजी महाराज के अलावा यहां श्री प्रेतराज सरकार और श्री कोतवाल कप्तान ( भैरव ) की मूर्तियां भी हैं । प्रेतराज सरकार जहां द्ण्डाधिकारी के पद पर आसीन हैं वहीं भैरव जी कोतवाल के पद पर । यहां आने पर ही सामान्यजन को ज्ञात होता है कि भूत प्रेतादि किस प्रकार मनुष्य  को कष्ट पहुंचाते हैं और किस तरह सहज ही उन्हें कष्ट बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है । 

दुखी कष्टग्रस्त व्यक्ति को मंदिर पहुंचकर तीनों देवगणों को प्रसाद चढाना पड़ता है । बालाजी को लड्डू प्रेतराज सरकार को चावल और कोतवाल कप्तान (भैरव) को उड़द का प्रसाद चढाया जाता है । इस प्रसाद में से दो लड्डू रोगी को खिलाए जाते हैं और शेष प्रसाद पशु पक्षियों को डाल दिया जाता है । ऐसा कहा जाता है कि पशु पक्षियों के रूप में देवताओं के दूत ही प्रसाद ग्रहण कर रहे होते हैं । प्रसाद हमेशा थाली या दोने में रखकर दिया जाता है । लड्डू खाते ही रोगी व्यक्ति झूमने लगता है और भूत प्रेतादि स्वयं ही उसके शरीर में आकर बड़बड़ाने लगते है । स्वतः ही वह हथकडी और बेड़ियों में जकड़ जाता है । कभी वह अपना सिर धुनता है कभी जमीन पर लोट पोट कर हाहाकार करता है । कभी बालाजी के इशारे पर पेड़  पर उल्टा लटक जाता है । कभी आग जलाकर उसमें कूद जाता है । कभी फ़ांसी या सूली पर लटक जाता है । मार से तंग आकर भूत प्रेतादि स्वतः ही बालाजी के चरणों में  आत्मसमर्पण कर देते हैं अन्यथा समाप्त कर दिये जाते हैं । बालाजी उन्हें अपना दूत बना लेते हैं । संकट टल जाने पर बालाजी की ओर से एक दूत मिलता है जोकि रोग मुक्त व्यक्ति को भावी घटनाओं के प्रति सचेत करता रहता है । बालाजी महाराज के मन्दिर में प्रातः और सायं लगभग चार चार घंटे पूजा होती है । पूजा में भजन आरतियों और चालीसों का गायन होता है । इस समय भक्तगण जहां पंक्तिबद्ध हो देवताओं को प्रसाद अर्पित करते हैं वहीं भूत प्रेत से ग्रस्त रोगी चीखते चिल्लाते उलट पलट होते अपना दण्ड भुगतते हैं ।


श्री प्रेतराज सरकार 


बालाजी मंदिर में प्रेतराज सरकार दण्डाधिकारी पद पर आसीन हैं। प्रेतराज सरकार के विग्रह पर भी चोला चढ़ाया जाता है। प्रेतराज सरकार को दुष्ट आत्माओं को दण्ड देने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है ।  भक्ति-भाव से उनकी आरती , चालीसा , कीर्तन , भजन आदि किए जाते हैं । बालाजी के सहायक देवता के रूप में ही प्रेतराज सरकार की आराधना की जाती है। 

पृथक रूप से उनकी आराधना - उपासना कहीं नहीं की जाती , न ही उनका कहीं कोई मंदिर है। वेद , पुराण , धर्म ग्रन्थ आदि में कहीं भी प्रेतराज सरकार का उल्लेख नहीं मिलता। प्रेतराज श्रद्धा और भावना के देवता हैं। 
कुछ लोग बालाजी का नाम सुनते ही चैंक पड़ते हैं। उनका मानना है कि भूत-प्रेतादि बाधाओं से ग्रस्त व्यक्ति को ही वहाँ जाना चाहिए। ऐसा सही नहीं है। कोई भी - जो बालाजी के प्रति भक्ति-भाव रखने वाला है , इन तीनों देवों की आराधना कर सकता है। अनेक भक्त तो देश-विदेश से बालाजी के दरबार में मात्र प्रसाद चढ़ाने नियमित रूप से आते हैं।

किसी ने सच ही कहा है , नास्तिक भी आस्तिक बन जाते हैं , मेंहदीपुर दरबार में ।
प्रेतराज सरकार को पके चावल का भोग लगाया जाता है , किन्तु भक्तजन प्रायः तीनों देवताओं को बूंदी के लड्डुओं का ही भोग लगाते हैं और प्रेम-श्रद्धा से चढ़ा हुआ प्रसाद बाबा सहर्ष स्वीकार भी करते हैं।


कोतवाल कप्तान श्री भैरव देव


कोतवाल कप्तान श्री भैरव देव भगवान शिव के अवतार हैं और उनकी ही तरह भक्तों की थोड़ी सी पूजा-अर्चना से ही प्रसन्न भी हो जाते हैं । भैरव महाराज चतुर्भुजी हैं। उनके हाथों में त्रिशूल , डमरू , खप्पर तथा प्रजापति ब्रह्मा का पाँचवाँ कटा शीश रहता है । वे कमर में बाघाम्बर नहीं , लाल वस्त्र धारण करते हैं। वे भस्म लपेटते हैं । उनकी मूर्तियों पर चमेली के सुगंध युक्त तिल के तेल में सिन्दूर घोलकर चोला चढ़ाया जाता है ।

शास्त्र और लोककथाओं में भैरव देव के अनेक रूपों का वर्णन है , जिनमें एक दर्जन रूप प्रामाणिक हैं 
।  श्री बाल भैरव और श्री बटुक भैरव, भैरव देव के बाल रूप हैं।

 भक्तजन प्रायः भैरव देव के इन्हीं रूपों की आराधना करते हैं । भैरव देव बालाजी महाराज की सेना के कोतवाल हैं। इन्हें कोतवाल कप्तान भी कहा जाता है। बालाजी मन्दिर में आपके भजन , कीर्तन , आरती और चालीसा श्रद्धा से गाए जाते हैं । प्रसाद के रूप में आपको उड़द की दाल के वड़े और खीर का भोग लगाया जाता है। किन्तु भक्तजन बूंदी के लड्डू भी चढ़ा दिया करते हैं ।

सामान्य साधक भी बालाजी की सेवा-उपासना कर भूत-प्रेतादि उतारने में समर्थ हो जाते हैं। इस कार्य में बालाजी उसकी सहायता करते हैं। वे अपने उपासक को एक दूत देते हैं , जो नित्य प्रति उसके साथ रहता है।
कलियुग में बालाजी ही एकमात्र ऐसे देवता हैं , जो अपने भक्त को सहज ही अष्टसिद्धि , नवनिधि तदुपरान्त मोक्ष प्रदान कर सकते हैं ।

कुण्डली और पितृ दोष बाधाएं


जन्म कुण्डली में सूर्य के पीड़ित होने को पितृ दोष कहा जाता है। पितृ दोष के कारण जातक को धन हानि, संतान कष्ट, संतान जन्म में बाधाएं जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

कुण्डली का दशम भाव पिता से सम्बन्ध रखता है। दशम भाव का स्वामी यदि कुण्डली के छटे, आठवें अथवा बारहवें भाव में बैठा हो तथा गुरु पाप ग्रह से प्रभावित हो अथवा पापी ग्रह की राशि में हो और लग्न व पांचवे भाव के स्वामी पाप ग्रह से सम्बन्ध बनाते हों तो भी पितृ दोष माना जाता है। कमजोर लग्न का स्वामी यदि पांचवें भाव में हो और पांचवें भाव का स्वामी सूर्य से सम्बन्ध बनाता है तथा पंचम भाव में पाप ग्रह में हो तो भी पितृ दोष कहलाता है। 

पंचम भाव का स्वामी यदि सूर्य हो और वह पाप ग्रह की श्रेणी में हो तथा त्रिकोण में पाप ग्रह हो अथवा उस पर पाप ग्रह की दृष्टि हो तो इसे पितृ दोष प्रभावित कहा जाता है। कुंडली में सूर्य-शनि, सूर्य-राहू का योग केंद्र त्रिकोण 1, 4, 5, 7, 9, और 10 भाव में हो अथवा लग्न का स्वामी 6, 8, या 12 भाव में हो एवं राहु लग्न भाव में हो तो इसी कुण्डली भी पितृ दोष युक्त होती है।

अष्टम भाव में सूर्य, पंचम भाव में शनि, लग्न में पाप ग्रह और पंचम भाव के स्वामी के साथ राहु स्थित हो तो पितृ दोष के कारण संतान सुख में कमी आती है।कुण्डली में स्थित पितृ दोष को दूर करने के लिए जातक को प्रत्येक अमावस्या को पितरों की पूजा करनी चाहिए।  सोमवती अमावस्या को (जिस अमावस्या को सोमवार हो) पास के पीपल के पेड के पास जाइये,उस पीपल के पेड को एक जनेऊ दीजिये और एक जनेऊ भगवान विष्णु के नाम का उसी पीपल को दीजिये,पीपल के पेड की और भगवान विष्णु की प्रार्थना कीजिये,और एक सौ आठ परिक्रमा उस पीपल के पेड की दीजिये,हर परिक्रमा के बाद एक मिठाई जो भी आपके स्वच्छ रूप से हो पीपल को अर्पित कीजिये। कौओं और मछलियों को चावल और घी मिलाकर बनाये गये लड्डू हर शनिवार को दीजिये। रविवार का व्रत करें. गुरुजनों की सेवा करें, शाकाहार रहें. सूर्य पवित्रता को पसंद करते हैं. शिव अराधना करें. लाल मसूर दाल गरीबों को दें. लाल कंबल, चादर गरीबों को दें. हनुमान जी की उपासना करें. मछली को चारा दें. माता-पिता एवं पत्नी को सम्मान दें. अमावस्या का व्रत करें.

पूर्वजों की पुण्य तिथि मनाएं. दक्षिण दिशा में पैर रख कर नहीं सोयें. अमावस्या को सत्यनारायण व्रत की कथा सुनें. यथासंभव एकादशी व्रत एवं गीता पाठ करें. पुन: समय पर पितृदोष की शांति करा कर सत्य, अहिंसा और ईमानदारी का व्रत लें. ऐसा करने से सभी दोष अपने आप मिट जाते हैं. अपने बड़े-बुजुर्गों, गरीब और जरूरतमंदों की सेवा व सहायता करने से भी पितृ दोष का निवारण होता है।

ब्यक्ति एक समय में दो ग्रहो के प्रभाव में रहता है.

लाल किताब पद्धति के अनुसार ब्यक्ति एक समय में दो ग्रहो के प्रभाव में रहता है.एक तो 35 वर्षीय द्शा होता है जो कि प्रत्येक व्यक्ति के जन्म समय के अनुसार अलग -2 होता है.दुसरेप्रकार का ग्रह-चक्र प्रत्येक व्यक्ति की आयु में एक ही ग्रह का रहता है.


उदाहरण स्वरूप पाचँ या चालीस वर्ष कि आयु में प्रत्येक व्यक्ति शनि ग्रह से प्रभावित रहता है. जीवनके 16 से 21 वर्षो तक प्रत्येक व्यक्ति बृ्हस्पति ग्रह के प्रभाव में रहता है. द्शा का यह चक्र 35 वर्षो काही होता है. इसे हम निम्न तालिका से समझ सकते है.35 वर्षो के उपरान्त दोबारा से शनि ग्रह का चक्रप्रारम्भ  होता है अर्थात 36 से 41 वर्षो तक शनि  42 से 47 वर्षो तक राहु इत्यादि क्रमानुसार। इसप्रकार एक ही समय में प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में दो ग्रह अपना प्रभाब डाल रहे होते है

मान लो अपने जीवन के 31 वें वर्ष कोई व्यक्ति केतु की दशा से गुजर रहा है तो उस पर मंगल ग्रह का भीप्रभाव रहेगा. वैसे तो लाल किताब में 12 वर्षो तक की कुण्डली को नाबालिग ग्रहो की कुण्डली  मानाजाता है. 12 वर्ष तक बच्चे पर शनि  राहु ग्रह का प्रभाव रहता है तत्पश्चात13 वें वर्ष से केतु ग्रह काप्रभाव प्रारम्भ होता है.
 आमतौर पर यदि व्यावहारिक रूप से देखा जाये तो जीवन के सोलहवें वर्ष में व्यक्ति पर बृ्हस्पति ग्रहका प्रभाव शुरु होता  है जो कि उसकी शिक्षा के सम्बन्ध में फलितार्थ होता है
16 से 21 वर्ष तकबृ्हस्पति तथा इसके पश्चात 22 वें वर्ष में सूर्य का प्रभाव प्रारम्भ होता  है जो की 23 वर्षो तक रहता है. तोबृ्हस्पति अर्थात 16 वें वर्ष से यह क्रम प्रारम्भ होकर केतु अर्थात 48 वे़ वर्ष(48 से 51 वर्ष) में समाप्त होताहै. इन विशेष वर्षो में ग्रह अपना विशेष प्रभाव देते है चाहे वह प्रभाव शुभ हो या अशुभ.