एक बहुत लम्बी, गहरी चाशनी की नदी थी जिसकी चाशनी इतनी मीठी और इतनी स्वादिष्ट थी कि जो एक बार चख ले तो उसकी चाशनी ही पीता रहे | एक बार एक पिता ने अपने कई बच्चों को एक नाव में बैठाकर चाशनी की नदी में सैर के लिए भेजा और कहा जितनी चाशनी आवश्यक हो उतनी ही पीना | बच्चों ने जैसे ही चाशनी चखी उनहोंने सोचा कि जब जरा सी चाशनी इतनी स्वादिष्ट है तो नदी में रहना कितना आनन्ददायी होगा और वे नदी में कूद गए और गाढ़ी - गाढ़ी चाशनी में लिसढ़ गये | पिता ने जब देखा तो एक के बाद एक कई नावें और भेजीं | पर बच्चे चाशनी में पड़े उसे पीते रहे और नाव में नहीं बैठे|
इस बार पिता ने नाव भेजने से पहले नदी में हलचल मचा दी | लम्बी, ऊँची लहरों के थपेड़े बच्चों को पड़ने लगे तब बच्चे दर्द से कराहे और पिता को याद करने लगे | तब जो अगली नाव पिता ने भेजी तो बच्चे उसमें बैठकर वापस पिता के पास चले गए|
बिल्कुल इसी रूप में परमात्मा ने अपने बच्चे संसार में भेजे और बच्चे यहाँ लिप्त हो गए | परमात्मा समय - समय पर धर्म रुपी नाव भेजते हैं | परमात्मा भी जानते हैं कि बच्चे धर्म रुपी नाव में नहीं बैठेंगे | इसलिए संसार में हलचल मच गयी है | लोग तमाम रूप में कष्ट झेल रहे हैं | कष्टों के थपेड़े लोगों के लिए असहनीय होते जा रहे हैं | इसलिए जब व्यथित होकर बच्चों ने परमात्मा को याद किया तब परमात्मा ने "परम धर्म" रुपी नाव भेज दी और कहा कि आओ इसमें बैठकर मेरे पास चले आओ | आज लोगों का जीवन अत्यधिक कष्टों से घिरा है | लोग तमाम शारीरिक व मानसिक कष्टों को झेल रहे हैं | लोगों का पल-पल व्यथा से भरा है | छटपटा कर लोग अपनी समस्याओं का हल जगह - जगह तमाम रूपों में खोज रहे हैं | सारे हाथ - पाँव पटकने के बाद लोग निराश होते जा रहे हैं | अब निराश होने का समय गया | अब " परम धर्मं " का धरती पर अवतरण हो चुका है |
" परम धर्मं " मुक्ति का सरलतम मार्ग है | इसका पाठ सुनने मात्र से तमाम मानसिक विकार दूर हो जाते हैं| जिस स्थान पर " परम धर्मं " का पाठ होता है वहां खुशहाली व प्रेम विराजमान हो जाता है | " परम धर्मं " जीवन को उच्चता व श्रेष्ठता क़ी तरफ तीव्र गति से ले जाता है | नाव में बैठे व्यक्ति को भला लहरों के थपेड़े कैसे लगेंगे ?