मन को झंकृत कर उसमें बदलाव लाने की क्रिया को मंत्र द्वारा संचालित किया जाता है |
मंत्र = मन + त्र
मन = पंच इन्द्रियों का पुंज
त्र = सत , रज , तम ( सतोगुण , रजोगुण , तमोगुण )
मंत्र = मानव के समस्त इन्द्रियों के दुर्गुण अर्थात तमोगुण को दूर कर उसे सतोगुण की तरफ अग्रसित करती है |
महामंत्र = महामंत्र उस मंत्र को कहते हैं जो प्रकृति में दिव्यता , अलौकिकता प्राणियों में श्रेष्ठता , उत्कृष्टता , निर्मलता , प्रेम का संचार एवं उनका उद्धार करती है |
“ परम धर्म ” महामंत्र है जो परमात्मा द्वारा फलित है जिसके चिंतन , मनन एवं श्रवण मात्र से प्राणियों में खुशहाली एवं श्रेष्ठता आ जाती है और सारे कष्ट दूर हो जाते हैं | “ परम धर्म ” को धारण करने से प्राणी जगत के समस्त सुख भोग कर भवसागर में आवा – गमन से मुक्ति प्राप्त कर परमात्मा में विलीन हो जाता है |
“ परम धर्म ” महामंत्र सरलतम भाष्य का मंत्र है जिसमें उच्चारण में त्रुटि नही होती है और त्वरित फलदायी है | “ परम धर्म ” महामंत्र धरती पर अलौकिक एवं दिव्य शक्ति को धारण कर परमात्मा द्वारा अवतरित हुआ है | यह महामंत्र प्राणियों की कायाकल्प कर उनमें निर्मलता , श्रेष्ठता एवं प्रेम का संचार करती है |
“ परम धर्म ” का मंत्र प्राणी के समस्त संकट का निवारण करता है एवं रुष्ट हुई प्रकृति को मनाता है | “ परम धर्म ” के मन्त्रों का जिस स्थान पर चिंतन , मनन , श्रवण , ध्यान व साधना किया जाता है उस स्थान पर अलौकिक शक्ति एवं प्रकाश वातावरण को सुगंधि से भरपूर कर जड़ – चेतन में शक्ति का संचार करती है |