ईश्वर से कुछ मांगना हो तो ईश्वर को ही मांग लेना, लेन-देन के इस युग में आध्यात्मिक जगत में भी यह सवाल उठता है कि परमात्मा यदि मिल जाए तो उससे क्या मांगा जाए? इस वक्त हर आदमी किसी-न-किसी से कुछ मांग रहा है।
माता-पिता संतानों से सम्मान मांग रहे हैं, संतान माता-पिता से ध्यान मांग रहे हैं, पति मांग रहा है कि पत्नी मेरे हिसाब से चले, पत्नी की मांग है कि मेरा सोचा होता रहे। मालिक नौकर से अधिकतम परिणाम मांग रहा है, काम करने वाले अधिक वेतन चाह रहे हैं।
सब जगह मांग है। ऐसे में लोगों ने तैयारी कर ली है कि कभी भगवान हाथ लग जाए तो उससे भी मांग का सौदा किया जाएगा। गुरुनानक देव ने एक जगह कहा है कि मालिक मिले तो मालिक से मालिक को ही मांगना। इससे कम का सौदा मत करना क्योंकि उससे दुनिया मांगोगे तो वह दे भी देगा।
मालिक देते-देते थकता नहीं, पर हम लेते-लेते थक जाएंगे। जो लोग लंबी-लंबी अरदासें करके मांगते हैं, उन्हें परमात्मा बार-बार जन्म दे देता है और हम देह के चक्कर से छुटकारा नहीं पा पाते। जितना देह से हटेंगे उतना ही शांति के निकट पहुंच जाएंगे। हमें मनुष्य शरीर उसने दिया ही इसलिए है कि हम इसकी सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि प्राप्त कर लें और वो है एक दिन उससे सामना हो जाना।
कई कथाओं में वर्णन है कि भगवान जिनको मिला, उनसे पूछता है- बोलो क्या दूं! और भगत यहीं चूक जाते हैं। बड़ी उपलब्धि हो तो सौदा भी बड़ा करें। परमात्मा से परमात्मा को ही मांग लें।