" परम धर्म " स्वयं में परमात्मा का एक शासन है जो संतों को धर्मशासित कर उनके संतत्व को बढ़ाता है और उन्हें योगी की अवस्था में पहुंचाता है | यह संतों की आत्मा की मन पर जीत कराकर उनकी अभिव्यक्ति करने का सरलतम मार्ग है |
" परम धर्म " कोइ उपदेश नही है बल्कि परमात्मा द्रारा उनके बच्चों को दिया गया आदेश है | आदेश का पालन बच्चों को परमात्मा के समीप ले जाता है परन्तु आदेश का उल्लंघन उनके लिए कष्ट का कारण बन जाता है |
आज समाज में लोगों का ही नही बल्कि प्राणीमात्र का जीवन असहनीय कष्टों के बीच घिसट रहा है |
लोगों का मन इतना निराश हो चुका है कि वे अक्सर यह प्रश्न करते हैं कि आखिर हम जीवन क्यों जीते हैं ? मन अत्यधिक विकारों से भर चुका है | मन के इन विकारों के बोझ तले आत्मा इतनी गहराई में दब गई है कि वे स्वयं को (जो वो है अर्थात आत्मा) ही नहीं देख या महसूस कर पा रहे है | जब वो स्वयं को महसूस ही नहीं कर पा रहे हैं तो अपनी अभिव्यक्ति तो दूर की बात है | लम्बे समय से स्वयं (आत्मा ) के दर्शन न कर पाने के कारण अब तो लोग स्वयं को शरीर व मन मानने लगे हैं और मन के आदेशानुसार जीवन जीने लगे है | मन जैसा कहता है उनके गुलाम की तरह वैसा ही आचरण करते हैं | मन की इच्छा सदैव गन्दगी मे डूबने की होती है इसलिए मन में कुविचार लगातार बढ़ रहे है |
" परम धर्म " परमात्मा द्रारा मन पर किया जाने वाला शासन है | यह मन को इतना स्पष्ट आदेश देता है कि मन गलत आचरण करने से भयभीत होने लगता है और छटपटाने लगता है | आत्मा जो कि मन से हारकर दबी पड़ी है वह प्रसन्नता से नाच उठती है कि परमात्मा उसे मुक्ति दिलाने के लिए आ गए हैं | " परम धर्म " अर्थात परमात्मा के शासन से मन धीरे - धीरे हर गलत आचरण छोड़ देता है जिससे धीरे-धीरे उसका सारा मैल धुल जाता है | मन जितना साफ होता जाता है आत्मा का प्रकाश उतना ही बाहर आने लगता है | व्यक्ति स्वयं को महसूस करने व देखने लगता है | वह (उसकी आत्मा ) अभिव्यक्त होने लगती है ओर योगी की अवस्था प्रारंभ हो जाती है |
" परम धर्म " रूपी परमात्मा का आदेशात्मक शासन आत्मा को मन से मुक्ति दिलाकर परमात्मा तक तक ले जाता है |