कौन लोग बनते हैं प्रेत और ये कैसे होते हैं?


मरने के बाद क्या होता है? यह जानना हर मनुष्य की जिज्ञासा का विषय है। इस जिज्ञासा को कुछ हद तक हमारे धर्मग्रंथों में मिली जानकारी से संतुष्ट किया जा सकता है। प्रेतों के बारे में कहानियां तो हम सभी बचपन से सुनते आए है मगर ये प्रेत होते कौन हैं इनका स्वरूप क्या होता है आइए जानते हैं.... 

इस संसार में मनुष्य योनि, पशुयोनि, आदि दृश्य योनियों के अलावा अदृश्य एक प्रेतयोनि भी हैं। संसार में जितने पदार्थ हैं। मनुष्य पशु-पक्षी जीव-जन्तु, अन्न-फल-मूल सब के सब पश्चभौतिक है। ये प्रेत भी पश्चभौतिक हैं पर पार्थक्य इतना ही है कि मनुष्य-पशु-पक्षियों में पृथ्वी के अंश नहीं के बराबर है। प्रेत अदृश्य और बलवान होता है। अदृश्य होने के कारण उसका प्रत्यक्ष प्रमाण कोई नहीं दे सकता। अर्थववेद में इनके निराकरण के लिए मारण प्रयोग के लिए अनेक यंत्र-मंत्रों भरमार है। पुराणों में भूतोमि देवनोय: ऐसा लिखा है। मृत व्यक्तियों का जब श्राद्ध होता है तो उनको प्रेत कहकर पिण्ड दिया जाता है। ऐसा कहा जाता है प्रेतत्वविमुक्तये एष पिण्डस्तुभ्यं स्वधा।। 

ऐसा कहा जाता है इन सभी से प्रमाणित होता है कि प्रेतयोनी अवश्य है। इसमें अनेक विभाग हैं। आयुर्वेद के अनुसार अठारह प्रकार के प्रेत हैं। जैसे प्रसुता, स्त्री या नवयुवती मरती है तो चुड़ैल कुमारी कन्या मरती है तो देवी होती है। इन सभी की उत्पति अपने जन्मार्जित पापों से अभिचार से अकाल मृत्यु से, ओझा डाइन के मारण प्रयोग से, अंत्येष्टी एवं श्राद्ध को पवित्र नहीं होने देती। 

इनको खाने की इच्छा अधिक रहती है। इच्छा होती है कि समुद्र सोख ले। लेकिन इनका आकार सुई के बराबर होने के कारण ये जल नहीं पी सकते है। जरा सा अपराध होने पर वे बिगड़ जाते हैं। उपद्रव करने लगते हैं। अच्छी चीजों पर इनका अधिकार नहीं रहता है। यहां तक की वे उन्हें स्पर्श भी नहीं कर सकते हैं। वे बहुत दुखी और चिड़चिड़ा होता है। जीवित अवस्था में जिस स्वभाव के रहते हैं वही अवस्था प्रेत अवस्था कहलाती है। इनका शरीर कुष्ट सा रहता है। बलिष्ट इतने होते हैं कि बड़े-बड़े वृक्षों को उखाड़ फेंके।