कलयुग को कलह का युग कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी , जहाँ चारों तरफ वेदना , पीड़ा एवं कल्मष कषायें ही व्याप्त हैं । यहाँ तक कि प्रकृति भी सिसक रही है। इस सिसकारी की गूंज से परमात्मा भी परेशान हो गये । उनसे अपने बच्चों की पीड़ा नहीं देखी गयी।
प्राणी प्रेम भूल गया है। प्राणी ही प्राणी का भक्षक बनकर एक दूसरे पर टूट पड़ रहा है । चारों तरफ आतंक ही आतंक व्याप्त है।
इसके अलावा कल्युग को अर्थ का युग कहा जाये तो कुछ गलत नहीं होगा । जहाँ बुराई का बोलबाला है और अच्छाई का गला घुट रहा है । इस युग का मानव अपनी सम्पूर्ण शक्ति एवं समय धन को संचित करने में लगा रहा है और यह समझ रहा है कि वह धन इकट्ठा कर सम्पूर्ण सुख एवं श्रेष्ठता प्राप्त कर लेगा । बल्कि सम्पूर्ण जीवन धन संचित करने में लगा देता है फिर भी सुख का एक कण भी नहीं प्राप्त करता है । धन संचित करने में प्राणी अपना धर्म , नाते - रिश्ते तक भूलता जा रहा है । एक दूसरे के प्रति प्रेम एवं जुड़ाव एकदम समाप्त हो गया है । यहाँ तक कि जो पेड़ - पौधे फल देते हैं उन्हें भी मानव जड़ से समाप्त कर दे रहा है और नदियों से जो मीठा एवं स्वच्छ जल मिलता है उसे भी इतना मैला व अपवित्र कर दिया गया है क़ि वह भी अपना दम तोड़ दे रही है | यहाँ तक क़ि इस युग का मानव इतना अधिक पतित हो गया है क़ि अरबों खरबों मील दूर सूर्य भी रो पड़ा है | उसकी ओज़ोन परत भी टूट गयी है जिससे धरती पर प्राणों का संकट आ गया है | आसमान से पक्षियों क़ि चहचहाहट समाप्त हो गयी है | नदियों एवं सागर में भी प्राणी अपना दम तोड़ दे रहे हैं | मानव ऐसा आचरण एवं कर्म कर रहा है क़ि स्वयं तो अपने प्राण संकट में डाल चुका है बल्कि इस सृष्टि का अस्तित्व भी संकट में डाल चुका है |
मानव अपने बच्चों को श्रेष्ठ बनाने के लिये प्रतियोगिता रूपी अंधकार में झोंककर बच्चों के अन्दर एक दूसरे के प्रति प्रेम को समाप्त कर दे रहा है | प्रतियोगिता से प्रेम का अंत कर रहा है और द्वेष पनपा रहा है |
मानव अपने बच्चों को श्रेष्ठ बनाने के लिये प्रतियोगिता रूपी अंधकार में झोंककर बच्चों के अन्दर एक दूसरे के प्रति प्रेम को समाप्त कर दे रहा है | प्रतियोगिता से प्रेम का अंत कर रहा है और द्वेष पनपा रहा है |
जब मानव परेशान होकर भटकता हुआ अध्यात्म के मठाधीशों अर्थात गुरुओं के पास जाता है तो उसे बड़े – बड़े मन्त्रों एवं कर्मकांडों के बारे में बता कर एक भार और लाद दिया जाता है जिससे उनके अन्दर सदविचार नहीं आते हैं बल्कि वह उनमें ही भटक कर उसी भंवर में फंसकर सम्पूर्ण जीवन नष्ट कर देता है | जगत की स्थिति , मानव के प्राण संकट एवं प्रकृति की सिसकारी की गूंज सुन परमात्मा को काफी पीड़ा हुई | परमात्मा ने “ परम धर्म ” के माध्यम से जगत में परम अमृत भेजा | जो भी प्राणी “ परम धर्म ” के एक भी अमृत का पान कर लेता है उसका जीवन श्रेष्ठ हो जाता है और वह कलयुग के अंधकार से हटकर प्रकाश की ओर अग्रसित हो जाता है |
“ परम धर्म ” महाग्रंथ का अमृत से भरा कलश धरती पर आते ही कलयुग का घोर अंधकार दूर भगा जा रहा है और “ परम धर्म ” के प्रकाश से इस भवसागर में सतयुग के आगमन अर्थात धरती पर स्वर्ग के आगमन का शंखनाद हो चुका है |
सतयुग , स्वर्ग मात्र कुछ ही कदम की दूरी पर है बस कमी हम सब की है की “ परम धर्म ” महाग्रंथ के अमृतों का पान कर उसे विश्व के कोने – कोने में ले जाएँ जिससे जगत “ परम धर्म ” के अलौकिक प्रकाश से प्रकाशित हो सके |
" परम धर्म " प्रेम का सागर है जिसकी सुगंध से प्रकृति खिलखिला एवं उल्लास कर रही है | जहाँ - जहाँ " परम धर्म " का पाठ होता है वहां मीलों दूर तक खुशबू बिखरती जा रही है | धरती पर सतयुग का दिया जल गया है जिसका प्रकाश एवं सुगंध विश्व के कोने - कोने में महकेगी एवं प्रकाशित होगी |
" परम धर्म " महाग्रंथ का गर्भवती महिलाएं पाठ सुनती या करती हैं तो अलौकिक व दिव्य बच्चों को जन्म देंगी और बच्चों का भविष्य श्रेष्ठ होगा | जो बच्चे " परम धर्म " का पाठ करते हैं उन बच्चों के अंदर की मलिनताएँ दूर भाग जाती हैं और श्रेष्ठता प्रवेश कर बच्चों के जीवन को उज्ज्वल एवं निर्मल बनाती है | बल्कि बच्चे एक योद्धा बन जाते हैं | यह धर्म मानव को महामानव बनाता है |
" परम धर्म " महाग्रंथ एक सरल भाष्य का ग्रन्थ है जिसे अक्षर ज्ञान रखने वाले बच्चे भी पढ़ समझ और धारण कर सकते हैं | आइये हम सभी " परम धर्म " महाग्रंथ को स्थापित कर कलयुग के अन्धकार को दूर भगाएं | परमात्मा द्वारा बसाये गए इस जगत को दिव्य एवं अलौकिक बनाएं |