जब भी आप एक बार एकाग्रचित्त होकर “ परम धर्म ” का पाठ करेंगे तो सहज रूप से जीवन की एक बहुत सुन्दर छवि आपके मन में बन जाएगी |
सामान्यतः लोग धर्म को जीवन का एक हिस्सा मानते हैं जिसे परमात्मा को प्रसन्न करने के लिए किया जाता हो या फिर ऐश्वर्यपूर्ण जीवन से दूर अत्यधिक सादगी वाला जीवन ही लोगों को धर्म लगता है | अच्छा खान - पान , पहनावा , ऐश्वर्य रखने वाला व्यक्ति जो अपनी इच्छाओं , पसंद - नापसंद आदि को भी महत्व देता हो उसको अगर हम संत या धार्मिक व्यक्ति कहें तो आपके लिए हजम करना काफी मुश्किल होगा | संत तो शायद पीले , सफ़ेद या सादे रंग के वस्त्र ही पहनते हैं | ज़मीन में आसन पर बैठकर ही खाना खाते हैं ( वो भी पत्तल में खाएं तो ज्यादा सूट करेगा ) , माथे पर बड़ा सा तिलक जरूरी है , दाढ़ी न बनाये तो जल्दी संत या बाबा जी के रूप में विख्यात हो जायेंगे | बड़े - बड़े सुन्दर , आकर्षक प्रवचन उनको संत से महंत का दर्जा दिलाते हैं | जो जितना कुशल कथावाचक वो उतना ही प्रख्यात |
पर हमारा ऐसा मानना है कि ये नहीं है संत होने का तात्पर्य | तो फिर क्या है धर्म ? क्या है संत का मतलब ? क्यों है धर्म ही जीवन का मूल ?
आरम्भ में ही हमने कहा था कि “ परम धर्म ” के पाठ से बहुत ही सुन्दर जीवन का चलचित्र मन में चलने लगता है | यही जीवन है धर्म का मूल स्वरुप | जिन लोंगो ने भी “ परम धर्म ” का पाठ सुना है , उनके धर्म के बारे में बने हुए तमाम भ्रम टूट गए | उन्हें खुशहाल जीवन जीने का बहुत ही आसान तरीका मिल गया |
जीवन जीने के तरीकों पर ही लोंग सबसे ज्यादा उलझते व परेशान होते हैं | कुछ संस्कृति के नाम पर उछलते हैं तो कुछ बड़े - बड़े दर्शनवादियों के सुन्दर - सुन्दर वाक्यों को बोलकर अपना ज्ञान बघारते हैं | संस्कृति के नाम पर तमाम तरह कि बात करने वाले लोंग परंपरागत और रूढ़िवादी बातों पर जोर देते वक़्त शायद भूल जाते हैं कि इन्हीं परम्पराओं में हमें कितना कूड़ा - कचरा विरासत में मिला है | ऐसी - ऐसी मान्यताएं हैं जो किसी व्यक्ति का मन घोट दें | इसके ठीक विपरीत मन के सच के लिए किसी भी स्तर तक गिरने का रास्ते दिखाते हैं और लोंग उसे स्टेटस सिम्बल के रूप में अपनाते हैं |
लोंगो कि तो सर्वाधिक फितरत है मन पर रिसर्च करने की | मन को किस बात से ज्यादा से ज्यादा सच मिलता है , ये ढूंढना उनका परमप्रिय कार्य है | अगर आपने आज़माया हो तो देखा होगा की बड़े से बड़ा सुख अगर मन को भरपूर मात्र में मिल जाए तो मन और अतृप्त और खालीपन महसूस करने लगता , इसलिए लोग भोग - विलास की अति के कारण अत्यधिक अतृप्त महसूस करते हैं और ऐसे में दर्शन की ओर खिंचते हैं | पर यहाँ उन्हें मिलता है तो सिर्फ धर्म और अध्यात्म के नाम पर हो रहा ढोंग |
जीवन पर तमाम रिसर्च करने के बाद भी कोई सही रास्ता किसी के पास नहीं है | विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है तो और क्या चाहिए दुष्टों को ? अपने - अपने दिमाग में जीवन के अलग - अलग पहलुओं पर रिसर्च करते हैं और अपने आधे - अधूरे बकवास विचार सामने परोस देते हैं | इतने सारे विचारों के बीच वो लोंग जो जीवन जीने का एक सरल व अच्छा मार्ग चाहते हैं , इतनी बुरी तरह उलझते हैं कि उनके जीवन की दुर्दशा आज चारों ओर दिख रही है |
ऐसे में धरती पर लोंगो को खुशहाल जीवन की सबसे श्रेष्ठ दिशा देने के लिए “ परम धर्म ” अवतरित हो चुका है | “ परम धर्म ” मन से विचार कर लिखी गयी कोई किताब नहीं है बल्कि समाधि की अवस्था में लिपिबद्ध किया गया ‘ ग्रन्थ ’ है | इसलिए इसमें विचारों के जंजाल जैसी कोई चीज नहीं है | “ परम धर्म ” इतना सरल है कि अगर कोई दस साल का बच्चा भी सुने तो समझ लेगा |