जानिए, क्यों सुनाई जाती है भागवत?


महात्म्य- यहां एक बार फिर भागवत का महात्म्य बताया है। महात्म्य में वज्रनाभ और परीक्षित राजा की संक्षेप में कहानी आई है। परीक्षित कौरवों का अंतिम राजा था और वज्रनाभ यदुवंशियों का अंतिम राजा। दोनों एक-दूसरे के वंश की बात करते हैं। दोनों एक दूसरे की बात का समापन करते हैं। यहां धीरे-धीरे भागवत समाप्त हो रही है और भागवत के अंत में श्रोता और वक्ता के लक्षण बताते हुए दोनों को सावधान करते हुए समापन किया जा रहा है। 

भागवत कह रही है आप भागवत में उतरे हैं सावधान रहिएगा। 

श्रोता और वक्ता यह ध्यान रखें जिस उद्देश्य के लिए आपने भागवत में प्रवेश किया उस उद्देश्य को छोडि़एगा नहीं। भगवान साक्षात रूप से तैयार हैं आपके जीवन में आने के लिए। भगवान ने भागवत में दो बातें मांगी हैं आरंभ में भी और अतं में भी। मुझे आपका चित्त चाहिए, भागवत में चित्त मांगा गया है। उसी भागवत में आगे भी लिखा है कि मुझे आपका वित्त भी चाहिए। ऐसा कहते हैं कि तन की शुद्धि स्नान से, मन की शुद्धि ध्यान से और धन की शुद्धि दान से। भागवत कहती है खूब दान करिएगा, लेकिन घबराइएगा नहीं। 

भागवत आपसे जिस चित्त और वित्त की मांग कर रही है भागवत के समापन पर, चित्त तो आप दे रहे हैं, जो आपके भीतर है। लेकिन जो वित्त आपसे मांगा जा रहा है, हमारी सारी पूंजी क्या है आज आप इस भागवत समापन पर कम से कम इतना जरूर चढ़ाएं। भागवत आपसे मांग रही है कि आप अपनी अशांति चढ़ा दीजिएगा, आपका दुर्गुण चढ़ा दीजिए, आपका विषाद सौंप दीजिए इस पर, आपका दु:ख सौंप दीजिएगा, आपका काम, आपका क्रोध, आपका मद, आपका लोभ छोड़ दें इस पर। दुनिया गोल है, जीवन छोटा है पता नहीं कब और कहां मिलेंगे। भगवान कहते हैं एक हाथ से सौदा कर लो दुर्गुण का और एक हाथ से मुझे ले लो। 

अब इससे सस्ता सौदा क्या हो सकता है? आपको कुछ भी नहीं देना भगवान के लिए। यह तो भ्रम है कि हजारों चढ़ाएं, लाखों चढ़ाएं तो भगवान मिलता है। आपका जो भी दुर्गुण है आप सौंप दीजिए भागवत तैयार है। आपके जीवन की अशांति दे दीजिए स्वीकार है।

वक्ता को भागवत ने आदेश दिया है कि श्रोताओं की अशांति, उसका विषाद, उसकी निराशा, उसकी थकान, उसकी बैचेनी, उसकी परेशानी और उसके जीवन का दु:ख लेकर जाना तब भागवत संपन्न होती है।