“ परम धर्म ” पलायनवाद का समाधान है

 लोगों में तमाम रूपों में तमाम निराशा है | उनकी आशा इतनी प्रबल नहीं है की अपनी निराशा को हराकर वे उससे बहार आ पाएं | वे उस निराशा के आगे हर जाते हैं | तब लोग मानसिक रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं , तमाम कुंठित विचार अपने मन में भर लेते हैं , सही मार्ग से खुशियाँ मिलेंगी इसकी आशा छोड़ देते हैं और सिर्फ तभी किसी न किसी गलत मार्ग की और मुड़ जाते हैं | सब लोग अच्छे होना चाहते हैं पर अच्छे होकर खुश रह पायेंगे ये आश्वासन नहीं पाते | कोई व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में रिश्वत नहीं लेगा अगर उसे ये भरपूर विश्वास हो कि बिना रिश्वत लिए और अंधाधुंध धन बटोरकर बैंक बैलेंस बिना भी उसका वर्तमान और भविष्य खुशियों से भरा रहेगा | उसे धन की , ऐश्वर्य की , खुशहाली की , प्रेम की , किसी चीज़ की कोई कमी नहीं रहेगी , अगर वो रिश्वत न लें – ये विश्वास और आशा न होने की वजह से ही व्यक्ति रिश्वत लेता है |

              कोई व्यक्ति यश का इतना भूखा नहीं होगा कि गलत से गलत तरीका भी यश प्राप्ति के लिए अपनाए , अगर उसे ये विश्वास हो कि बगैर झूठे यश के भी लोग उसे ह्रदय से चाहेंगे , उसके साथ सम्मानपूर्ण व्यवहार करेंगे , उसकी हँसी नहीं उड़ायेंग |

             कोई व्यक्ति नशा नहीं करेगा अगर वो वास्तविकता से बेहद निराश होकर हार न जाए | अगर उसे ये उम्मीद और आश्वासन मिल जाए कि वास्तविकता में सही रास्ते पर चलकर भी वो खुशियाँ प्राप्त कर सकता है , अपनी समस्या से उबर सकता है तो वो वास्तविकता से पलायन कर नशे में धुत होना कतई नहीं चाहेगा | सिर्फ अपने दुःख और तकलीफ से हारकर उसे भूलने के लिए व्यक्ति नशे में धुत होता है |

            “ परम धर्म ” से ये दृढ़ आश्वासन मिलता है कि “ परम धर्म ” के अनुसार आचरण करने से वर्तमान और भविष्य दोनों में खुशहाली ही खुशहाली होगी | ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिए किसी गलत मार्ग कि कोई आवश्यकता नहीं है | “ परम धर्म ” के अनुसार जीवन आनंद से भरपूर है | उसमे किसी प्रकार की कोई कमी नहीं है , कोई कमजोरी नहीं है , कोई भय नहीं है | “ परम धर्म ” मनुष्य को संघर्ष करके वास्तविकता को सुंदर बनाने की कला सिखाता है | मनुष्य के अन्दर की सारी निराशाएं “ परम धर्म ” के आश्वासन के सामने हार जाती हैं जिससे मनुष्य तमाम निराशाओं से मुक्त होकर बहुत ही उल्लासपूर्ण व आशान्वित जीवन जीता है |