जन्म कुण्डली में सूर्य के पीड़ित होने को पितृ दोष कहा जाता है। पितृ दोष के कारण जातक को धन हानि, संतान कष्ट, संतान जन्म में बाधाएं जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
कुण्डली का दशम भाव पिता से सम्बन्ध रखता है। दशम भाव का स्वामी यदि कुण्डली के छटे, आठवें अथवा बारहवें भाव में बैठा हो तथा गुरु पाप ग्रह से प्रभावित हो अथवा पापी ग्रह की राशि में हो और लग्न व पांचवे भाव के स्वामी पाप ग्रह से सम्बन्ध बनाते हों तो भी पितृ दोष माना जाता है। कमजोर लग्न का स्वामी यदि पांचवें भाव में हो और पांचवें भाव का स्वामी सूर्य से सम्बन्ध बनाता है तथा पंचम भाव में पाप ग्रह में हो तो भी पितृ दोष कहलाता है।
पंचम भाव का स्वामी यदि सूर्य हो और वह पाप ग्रह की श्रेणी में हो तथा त्रिकोण में पाप ग्रह हो अथवा उस पर पाप ग्रह की दृष्टि हो तो इसे पितृ दोष प्रभावित कहा जाता है। कुंडली में सूर्य-शनि, सूर्य-राहू का योग केंद्र त्रिकोण 1, 4, 5, 7, 9, और 10 भाव में हो अथवा लग्न का स्वामी 6, 8, या 12 भाव में हो एवं राहु लग्न भाव में हो तो इसी कुण्डली भी पितृ दोष युक्त होती है।
अष्टम भाव में सूर्य, पंचम भाव में शनि, लग्न में पाप ग्रह और पंचम भाव के स्वामी के साथ राहु स्थित हो तो पितृ दोष के कारण संतान सुख में कमी आती है।कुण्डली में स्थित पितृ दोष को दूर करने के लिए जातक को प्रत्येक अमावस्या को पितरों की पूजा करनी चाहिए। सोमवती अमावस्या को (जिस अमावस्या को सोमवार हो) पास के पीपल के पेड के पास जाइये,उस पीपल के पेड को एक जनेऊ दीजिये और एक जनेऊ भगवान विष्णु के नाम का उसी पीपल को दीजिये,पीपल के पेड की और भगवान विष्णु की प्रार्थना कीजिये,और एक सौ आठ परिक्रमा उस पीपल के पेड की दीजिये,हर परिक्रमा के बाद एक मिठाई जो भी आपके स्वच्छ रूप से हो पीपल को अर्पित कीजिये। कौओं और मछलियों को चावल और घी मिलाकर बनाये गये लड्डू हर शनिवार को दीजिये। रविवार का व्रत करें. गुरुजनों की सेवा करें, शाकाहार रहें. सूर्य पवित्रता को पसंद करते हैं. शिव अराधना करें. लाल मसूर दाल गरीबों को दें. लाल कंबल, चादर गरीबों को दें. हनुमान जी की उपासना करें. मछली को चारा दें. माता-पिता एवं पत्नी को सम्मान दें. अमावस्या का व्रत करें.
पूर्वजों की पुण्य तिथि मनाएं. दक्षिण दिशा में पैर रख कर नहीं सोयें. अमावस्या को सत्यनारायण व्रत की कथा सुनें. यथासंभव एकादशी व्रत एवं गीता पाठ करें. पुन: समय पर पितृदोष की शांति करा कर सत्य, अहिंसा और ईमानदारी का व्रत लें. ऐसा करने से सभी दोष अपने आप मिट जाते हैं. अपने बड़े-बुजुर्गों, गरीब और जरूरतमंदों की सेवा व सहायता करने से भी पितृ दोष का निवारण होता है।