कहा जाता है कि सत्य व्यक्त नहीं होता, इसे अनुभव करने के लिए मौन से गुजरना पड़ता है, पर फिर भी हमारे महात्माओं ने संसार को सत्य समझाने के लिए अपने आप को मुखर किया। कई संत तो चिल्ला-चिल्लाकर लोगों से बोले हैं - जाग जाओ।
संत जीवन में आए और जो सोता रहे, समझ लीजिए वह राक्षस वृत्ति का है और जो जाग गया, उसके ऊंचे उठने की संभावना है। चलिए, इस प्रसंग को सुंदरकांड से समझते हैं। हनुमानजी लंका में प्रवेश कर चुके हैं। वे सीताजी को ढूंढ़ रहे हैं। तुलसीदासजी ने लिखा -
मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा। देखे जंह तंह अगनित जोधा।।
उन्होंने हर महल की खोज की, सभी जगह असंख्य योद्धा नजर आए। वे रावण के महल में गए। हनुमानजी ने रावण को शयन करते देखा, परंतु वहां जानकीजी नहीं दिखीं। हनुमानजी जीवन में आए और रावण सोता रहा। संत और भगवंत का प्रवेश हो जाए और मनुष्य सोता रहे तो समझिए उसके भीतर रावण आ गया है। कुछ लोग कहते हैं तुलसीदासजी ने रावण के महल को मंदिर क्यों लिखा। दरअसल हनुमानजी सभी स्थानों में मंदिर के जैसा पवित्र भाव रखते थे।
दूसरी बात, जहां हनुमानजी आ जाएं, वहां के स्थानों को फिर मंदिर जैसी दिव्यता प्राप्त होना ही है। रावण का महल भी उनकी नजर पड़ते ऐसा हो गया। हमारा घर-परिवार भी कई बार रावण वृत्ति से संचालित होता है, ऐसे में हनुमानजी की उपस्थिति उसे मंदिर जैसी प्रतिष्ठा दिला देगी।